अजमेर. राजस्थान पुलिस के नए डीजीपी उमेश मिश्रा सोमवार को अजमेर दौरे पर थे. पद संभालने के बाद अजमेर और पुष्कर में उनकी यह पहली फील्ड विजिट है. इस दौरे पर पुलिस अधिकारियो संग आयोजित बैठक में डीजीपी ने कहा कि परंपरागत पुलिसिंग का अभी तक कोई काट नहीं (DGP urges to focus on traditional policing) है. इसकी मजबूती की दिशा में काम करने की जरूरत है.
मिश्रा ने अजमेर रेंज के पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक में अपराध रोकने और अनुसंधान की क्षमता में प्रगति समेत कई मुद्दों को लेकर चर्चा की. उन्होंने कहा कि पेशेवर अपराधियों की संख्या और संगठित अपराध में बढ़ोतरी हुई है. आर्थिक अपराध की संख्या में भी इजाफा हुआ है. साइबर फ्रॉड पर अंकुश लगाना भी चुनौती है. उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए गए कि वे जनता से अधिक जुड़ाव रखें.
परंपरागत पुलिसिंग का कोई नहीं है काट: मिश्रा ने कहा कि परंपरागत पुलिसिंग का अभी तक कोई काट नहीं है. पुलिस दिखती है, तो व्यक्ति आश्वस्त हो जाता है कि यहां पुलिस है. जनता के सामने पुलिस की विजिबिलिटी कैसे बढ़ाई जाए, इसको नवाचार तो नहीं कह सकते लेकिन रियासत काल में भी ऐसा होता था. अब तकनीक का इस्तेमाल बढ़ गया है. उन्होंने कहा कि ट्रेडिशनल पुलिसिंग के साथ यदि किसी तकनीक का सहयोग मिलता है तो वह हमारा सेकेंडरी विकल्प रहेगा. लेकिन परंपरागत पुलिसिंग को मजबूत करने की दिशा में काम करना जरूरी होगा.
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जनता से जुड़ाव होगा तो सूचना भी आएगी: मिश्रा ने कहा कि पुलिस में सूचना तंत्र को और प्रखर बनाने की जरूरत है. पुलिस का जनता से जुड़ाव होगा तो सूचना भी आएगी. पुलिस जनता से कटी रहेगी, तो पुलिस को सूचना कौन देगा. आवश्यक यह है कि पुलिस जनता के लिए उपलब्ध रहे. फरियादी अपनी बात बिना डर के थाने में आकर कह सके. जनता से संपर्क जितना बढ़ेगा, पुलिस को सूचनाएं उतनी ही तेजी से मिलेगी.
उपलब्ध संसाधनों में बेहतर पुलिसिंग करना हमारा काम: मिश्रा ने कहा कि पहले की तुलना में पुलिस की समस्या बढ़ी है. जनसंख्या के अनुपात में पुलिस की संख्या नहीं बढ़ रही. अब अपराध पंजीयन भी पहले की तुलना में काफी बढ़ा है. रिसोर्सेज बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाएंगे, लेकिन यह एक अनवरत प्रक्रिया है. इसलिए वर्तमान में जो पुलिस के पास संसाधन हैं, उन्हीं का कैसे बेहतर उपयोग हो सके, यह हमें देखना है.
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मिश्रा ने कहा कि सोशल मीडिया मॉनिटरिंग करना पुलिस की प्राइम फाइटर स्ट्रेटजी में शामिल है. इस रणनीति पर हर जिले में काम किया जा रहा है. जिनके पास ट्विटर हैंडल नहीं है, वे अपनी व्यथा ट्विटर पर नहीं कह सकते. यह कहने में अच्छा लगता है कि ट्विटर पर आया और हमने तुरंत एक्शन ले लिया. गांव कस्बों में जो लोग अनपढ़ या कम पढ़े लिखे हैं, हमें उनकी चिंता ज्यादा करनी है.