अजमेर. अंतरराष्ट्रीय पुष्कर पशु मेला देसी और विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. पशु मेले को देखने के लिए सात समुंदर पार से विदेशी पर्यटक एक महीने पहले ही होटल में बुकिंग करवा लेते हैं, लेकिन इस बार चुनाव के कारण मेले की अवधि घटा दी गई है. इसके चलते पुष्कर के पर्यटन उद्योग को जबरदस्त झटका लगने वाला है. प्रशासन ने मैन पावर कम होने का हवाला देकर हाथ खड़े कर दिए हैं. वहीं, पर्यटन उद्योग से जुड़े पुष्कर के व्यवसायी पशु मेले को यथावत रखने की मांग कर रहे हैं.
चुनाव की तारीख मेले के बाद रखने की मांग : प्रशासन के मुताबिक दीपावली के बाद से ही पुष्कर पशु मेले का आयोजन शुरू होगा जो अष्टमी तक रहेगा, जबकि परंपरा के अनुसार पुष्कर मेला दीपावली के बाद से ही कार्तिक एकादशी तक रहता है. कार्तिक एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक धार्मिक मेला शुरू हो जाता है यानी अष्टमी से एकादशी तक पुष्कर मेला पीक पर रहता है. इस बार पुष्कर मेला चुनाव की भेंट चढ़ने जा रहा है. पूर्व में चुनाव की तारीख मेले के बाद रखने की भी मांग उठाई गई थी, लेकिन चुनाव आयोग ने मेले की तारीख में दो दिन का ही इजाफा किया.
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ये है लोगों का तर्क : बता दें कि 22 नवंबर को देवउठनी ग्यारस पर अबूझ सावे के कारण चुनाव 25 नवंबर को घोषित किया है. पुष्कर मेले के बाद ही चुनाव की तारीख घोषित करने की भी मांग उठाई गई थी, जो पूरी नहीं हो पाई. वहीं, पुष्कर पशु मेले की अवधि भी कम कर दी गई है. प्रशासन के इस निर्णय ने पुष्कर में पर्यटन उद्योग से जुड़े हुए लोगों की चिंता बढ़ा दी है. लोगों का तर्क है कि सदियों से पुष्कर में धार्मिक और पशु मेला परंपरा के अनुसार आयोजित होता रहा है. आजादी के बाद कितने चुनाव हुए और उनमें आचार संहिता भी लगी, लेकिन कभी भी इसका असर पुष्कर मेले पर नहीं पड़ा. मगर इस बार चुनाव ड्यूटी में कार्मिकों के व्यस्त रहने के कारण पुष्कर पशु मेले में कार्मिक नहीं लगाए गए. इस कारण मेले की अवधि को घटा दिया गया, जो पुष्कर पर्यटन उद्योग से जुड़े हुए छोटे बड़े कारोबारियों के हित में नहीं है.
यह बोले कारोबारी : सामाजिक कार्यकर्ता और होटल व्यवसायी अरुण पाराशर ने बताया कि प्रतिवर्ष जगत पिता ब्रह्मा की धरती पर पुष्कर पशु मेले का आयोजन हो रहा है, लेकिन इस बार ये चुनाव की भेंट चढ़ रहा है. पुष्कर मेले की परंपरागत तिथियां निर्धारित हैं. पुष्कर मेला दिवाली के बाद से कार्तिक एकादशी तक रहता था, लेकिन इस बार पुष्कर पशु मेला सलाहकार समिति ने दिवाली के बाद तृतीया से लेकर अष्टमी तक पुष्कर पशु मेले का आयोजन रखा है. तृतीया को पशु मेले का आगाज होगा और झंडा चढ़ेगा. इस दौरान दिखावटी तौर पर पशुओं की प्रतियोगिताएं होंगी और अष्टमी को मेला संपन्न हो जाएगा, जबकि अष्टमी से लेकर कार्तिक एकादशी तक पुष्कर मेला परवान पर चढ़ता था.
व्यवसायियों को होगा भारी आर्थिक नुकसान : उन्होंने दावा किया कि पुष्कर मेले की तिथियों में बदलाव करने की सूचना प्रशासन की ओर से पूर्व में नहीं दी गई. विगत 400 वर्षों में पुष्कर मेले की परंपरागत तिथि में पहले कभी कोई बदलाव नहीं किया गया. प्रशासन के निर्णय से पशुपालक, मेले में आने वाले व्यवसायी, होटल संचालकों को भारी नुकसान और असुविधा होगी. होटल की बुकिंग अष्टमी से कार्तिक पूर्णिमा के बीच होती है, लेकिन प्रशासन के निर्णय के कारण होटल में बुकिंग कैंसिल होगी. इस कारण पशुपालकों और होटल व्यवसायियों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा. प्रशासन से मांग की गई है कि परंपरागत रूप से पुष्कर पशु मेले की तिथियों के अनुसार ही मेले का आयोजन किया जाए.
मेले का आयोजन परंपरागत तिथियों पर ही हों : पुष्कर होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष रघु शर्मा बताते हैं कि पुष्कर पशु और धार्मिक मेला परंपरागत तिथियों पर ही होता आया है और उन तिथि पर ही होना चाहिए. प्रशासन के निर्णय के कारण देसी और विदेशी पर्यटकों को निराश होना होगा. इसी तरह प्रशासन का रवैया रहा तो भविष्य में यह मेला खत्म हो जाएगा. प्रशासन से आग्रह है कि अपने निर्णय पर दोबारा से विचार करें और पुष्कर पशु और धार्मिक मेले का आयोजन परंपरागत तिथियों पर ही होने दें.
सदियों से परंपरा के अनुसार होता है मेला : व्यवसायी गोविंद पाराशर बताते हैं कि पुष्कर पशु मेला एक दशक पहले तक कार्तिक पूर्णिमा तक रहता था. इसके बाद कार्तिक एकादशी तक पुष्कर मेला संपन्न किया जाने लगा. इस बार चुनाव की आड़ में पुष्कर पशु मेले को अष्टमी पर सम्पन्न किया जा रहा है. पुष्कर के पर्यटन उद्योग को बचाने के लिए सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार ही पुष्कर पशु और धार्मिक मेले का आयोजन किया जाए.
कार्मिकों का आभाव : उपखंड अधिकारी निखिल कुमार पोद्दार ने बताया कि चुनाव की तिथि पुष्कर मेले के दौरान आने से निर्धारित तिथि से पहले पुष्कर पशु मेले को संपन्न किया जाएगा. चुनाव की तिथि के समय ही मेले का पीक समय रहेगा. पोद्दार ने बताया कि पुष्कर मेला समिति की बैठक में यह तय किया गया है कि मेला भी संपन्न हो और चुनाव में भी किसी तरह की कोई बाधा न आए. उन्होंने बताया कि मेला अपने चरम पर होता है तब कार्मिकों की आवश्यकता ज्यादा होती है. उस वक्त चुनाव भी है, इसलिए कार्मिकों की व्यवस्था नहीं हो पा रही है. ऐसे में निर्णय लिया गया है कि मेला कम समय के लिए आयोजित हो और चुनाव का कार्य भी निर्विघ्न पूर्ण हो जाए.
चिंतित हैं पर्यटन उद्योग से जुड़े कारोबारी : पहले कोरोनो काल में पुष्कर मेले पर ग्रहण लगा, जब हालात सामान्य हुए तो घोड़ों में ग्लैंडर्स बीमारी ने मेले को प्रभावित किया. इस बार इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध का असर पहले ही पुष्कर के पर्यटन उद्योग पर पड़ रहा था. अब मेले के दौरान चुनाव आने से पुष्कर पशु मेला की अवधि कम करने से पर्यटन उद्योग को जबरदस्त झटका लगेगा. दरअसल, देसी-विदेशी पर्यटक पुष्कर पशु मेले में ऊंट और घोड़े के अलावा लोक संस्कृति की झलक को निहारने के लिए आते हैं. पशु मेले में बड़ी संख्या में पशुओं की खरीद-फरोख्त भी होती है. पुष्कर मेले के दौरान पर्यटन उद्योग से जुड़े सभी व्यवसाय में 1 हजार करोड़ के लगभग का कारोबार होता है.