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Health Tips: मौसमी बीमारियों से रहे सावधान, करें ये प्रावधान, लापरवाही पड़ सकती है महंगी - लापरवाही पड़ सकती है महंगी

मौसम बदलाव का असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है. इस दौरान कई तरह की मौसमी बीमारियां लोगों को जकड़ लेती है. मौसमी बीमारियों से बचाव और लक्षण को लेकर आइए जानते है राजस्थान आयुर्वेदिक चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर घनश्याम जोशी से हेल्थ टिप्स.

beware of seasonal diseases
मौसमी बीमारियों से रहे सावधान, करें ये प्रावधान
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Published : Mar 22, 2023, 5:48 PM IST

मौसमी बीमारियों से रहे सावधान, करें ये प्रावधान

अजमेर. मौसम परिवर्तन में मौसमी बीमारियों के होने की संभावना ज्यादा रहती है. खासकर जिन लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम रहती है, उनमें मौसमी बीमारियों का प्रकोप ज्यादा रहता है. ऐसे में मौसम परिवर्तन के समय ज्यादा सजग रहने की जरूरत है. राजस्थान आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. घनश्याम जोशी बताते हैं कि मौसम परिवर्तन के दौरान होने वाली बीमारियों को मेडिकल भाषा में वायरल कहा जाता है. जबकि आयुर्वेद में इसे वातश्लैष्मिक ज्वर कहते हैं. इस बीमारी में सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार, गले में दर्द, कफ होना वातश्लेष्मिक ज्वर कहलाता है.

मौसमी बीमारियों को गंभीरता से लेना चाहिएः डॉ. जोशी ने बताया कि मौसमी बीमारी को गंभीरता से लेना चाहिए. ऐसा नहीं करने पर श्वास संबंधी गंभीर बीमारियां होने की संभावना रहती है. वहीं लंबे समय तक बुखार आने पर रोगी को टाइफाइड भी हो सकता है. ऐसे में मौसमी बीमारी होने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. लापरवाही रोगी के लिए महंगी भी पड़ सकती है. उन्होंने बताया कि सामान्य व्यक्ति और बच्चों को भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आयुर्वेद एवं घरेलू नुस्खों का उपयोग करना चाहिए.

Also Read: Health Tips for Typhoid : समय पर इलाज न मिले तो मामूली सा बुखार हो सकता है जानलेवा, डॉक्टर से जानिए कैसे करें बचाव

वातश्लेष्मीक ज्वर (वायरल) के लक्षण: डॉ. जोशी ने बताया कि मौसम परिवर्तन के दौरान तेज बुखार, गले में दर्द, भोजन निगलने में परेशानी, लंबी खांसी, सिर में भारीपन, आंखे लाल होना, शरीर में सुस्ती रहना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन होना यह सभी लक्षण वायरल यानी वातश्लेष्मीक ज्वर के लक्षण हैं. उन्होंने बताया कि गंभीर रोग से ग्रस्त रोगियों एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने वाले लोगों को ज्यादा सजग रहने की जरूरत है.

Also Read: Health Tips: कब्ज को हल्के में ना लें वरना भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम, जानें क्या कहते हैं वरिष्ठ चिकित्सक

वातश्लेष्मीक ज्वर ( वायरल ) से बचाव: राजकीय आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में चिकित्सा अधिकारी डॉ. घनश्याम जोशी ने बताया कि मौसम परिवर्तन के दौरान नियमित रूप से गुनगुना पानी पीनालाभदायक रहता है. उन्होंने बताया कि मौसमी बीमारी की चपेट में आने के दौरान खट्टी और ठंडी खाद्य सामग्री का सेवन नहीं करें. डॉक्टर जोशी ने बताया कि घरेलू उपचार से भी रोगी में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है. उसके लिए सुबह रोज दालचीनी, मुलेठी, काली मिर्च, गिलोय का काढ़ा पीने से लाभ मिलता है. इसके अलावा सात्विक और सुपाच्य भोजन करने से भी रोगी को लाभ मिलता है. मौसमी बीमारी होने पर रोगी को सुबह और शाम दूध के साथ हल्दी मिलाकर पीने से भी राहत मिलती है.

मौसमी बीमारियों से रहे सावधान, करें ये प्रावधान

अजमेर. मौसम परिवर्तन में मौसमी बीमारियों के होने की संभावना ज्यादा रहती है. खासकर जिन लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम रहती है, उनमें मौसमी बीमारियों का प्रकोप ज्यादा रहता है. ऐसे में मौसम परिवर्तन के समय ज्यादा सजग रहने की जरूरत है. राजस्थान आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. घनश्याम जोशी बताते हैं कि मौसम परिवर्तन के दौरान होने वाली बीमारियों को मेडिकल भाषा में वायरल कहा जाता है. जबकि आयुर्वेद में इसे वातश्लैष्मिक ज्वर कहते हैं. इस बीमारी में सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार, गले में दर्द, कफ होना वातश्लेष्मिक ज्वर कहलाता है.

मौसमी बीमारियों को गंभीरता से लेना चाहिएः डॉ. जोशी ने बताया कि मौसमी बीमारी को गंभीरता से लेना चाहिए. ऐसा नहीं करने पर श्वास संबंधी गंभीर बीमारियां होने की संभावना रहती है. वहीं लंबे समय तक बुखार आने पर रोगी को टाइफाइड भी हो सकता है. ऐसे में मौसमी बीमारी होने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. लापरवाही रोगी के लिए महंगी भी पड़ सकती है. उन्होंने बताया कि सामान्य व्यक्ति और बच्चों को भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आयुर्वेद एवं घरेलू नुस्खों का उपयोग करना चाहिए.

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वातश्लेष्मीक ज्वर (वायरल) के लक्षण: डॉ. जोशी ने बताया कि मौसम परिवर्तन के दौरान तेज बुखार, गले में दर्द, भोजन निगलने में परेशानी, लंबी खांसी, सिर में भारीपन, आंखे लाल होना, शरीर में सुस्ती रहना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन होना यह सभी लक्षण वायरल यानी वातश्लेष्मीक ज्वर के लक्षण हैं. उन्होंने बताया कि गंभीर रोग से ग्रस्त रोगियों एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने वाले लोगों को ज्यादा सजग रहने की जरूरत है.

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वातश्लेष्मीक ज्वर ( वायरल ) से बचाव: राजकीय आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में चिकित्सा अधिकारी डॉ. घनश्याम जोशी ने बताया कि मौसम परिवर्तन के दौरान नियमित रूप से गुनगुना पानी पीनालाभदायक रहता है. उन्होंने बताया कि मौसमी बीमारी की चपेट में आने के दौरान खट्टी और ठंडी खाद्य सामग्री का सेवन नहीं करें. डॉक्टर जोशी ने बताया कि घरेलू उपचार से भी रोगी में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है. उसके लिए सुबह रोज दालचीनी, मुलेठी, काली मिर्च, गिलोय का काढ़ा पीने से लाभ मिलता है. इसके अलावा सात्विक और सुपाच्य भोजन करने से भी रोगी को लाभ मिलता है. मौसमी बीमारी होने पर रोगी को सुबह और शाम दूध के साथ हल्दी मिलाकर पीने से भी राहत मिलती है.

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