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मेवाड़ में बारूद की होली, यहां गुलाल अबीर से नहीं आतिशबाजी से जमता है रंग!

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Published : Mar 20, 2022, 10:32 AM IST

उदयपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर मेनार गांव में होली के दूसरे दिन जमराबीज में भव्य आतिशबाजी और हवाई फायर (Menar Ki Baroodi Holi) होता है. ऐतिहासिक महत्व है इस पर्व का.इस गांव के लोगों ने अपने एकजुटता के साथ मुगल आक्रांताओं को कड़ी मात दी थी. इस युद्ध में मिली जीत की खुशी में जमराबीज के अवसर पर हर साल ठाठ बाट के साथ यह अनूठी होली (not colors but bullets are fired) खेली जाती है.

Menar Ki Baroodi Holi
मेवाड़ में बारूद की होली

उदयपुर. धांय धांय करती बंदूकें, चौतरफा गूंजते बम पटाखों की आवाजें सुन एकाएक लगता है कि शायद हम होली की नहीं दीवाली की बात कर रहे हैं. लेकिन ये आवाजें बताती हैं कि यहां होली महज परम्परा नहीं बल्कि जश्न है जीत (Menar Ki Baroodi Holi) का. मुगलों को शिकस्त देने का. आज भी गांव अपने पुरखों की कुर्बानी और उनकी शौर्य गाथा को बारूदों के बीच (not colors but bullets are fired) याद करता है.

ईटीवी भारत की टीम भी इस अनूठी होली को देखने के लिए मेनार गांव (Menar ki Barood wali holi) पहुंची. यहां हर घर रंगों से कम जगमगाती रोशनी में डूबा ज्यादा नजर आया. शाम के साथ होलियारे रणबांकुरों के रूप में नजर आए. इनकी टोली गांव के मुख्य चौक में पहुंचने लगी. पूरा चौक खचाखच भर गया. और फिर जो दिखा वो अद्भुत और अविस्मरणीय रहा. यहां जमराबीज पर शौर्य और इतिहास की स्मृति की झलक देखने (Unique Holi Of Menar) को मिली. रंगों की नहीं बल्कि बारूद की होली लोग खेलते दिखे.

यहां रंग नहीं बारूदों की होली

तलवारों और बंदूकों की आवाज से हूबहू युद्ध का दृश्य देखने को मिला. वहीं दूसरी तरफ ग्रामीणो द्वारा मेहमानों की मेहमान नवाजी की जा रही थी.घरों में तरह-तरह के व्यजनं बनाए गए. क्षत्रिय योद्धाओं की भांति सजे धजे पुरुष ढोल की थाप पर एक हाथ में खांडा और दूसरे हाथ में तलवार लेकर गैर नृत्य कर रहे थे. वहीं तोप से गोले दागने के साथ हवाई फायर लगातार चौक में किए जा रहे थे.पटाखों की गर्जना के बीच तलवारों की खनखनाहट ने माहौल को युद्ध का मैदान बना दिया.

पढ़ें- अजमेर में पुलिसकर्मियों ने जमकर खेली होली, देखिए Video...

तलवार के साथ कपड़े भी चमकदार: सफेद कपड़े और कसूमल पाग से रजवाड़ी रंगत लिए मेनारिया समाज के इन रणजीतों न केवल तलवारों से गेर नृत्य खेलकर समां बांधा बल्कि एक के बाद एक टोपीदार बंदूकों से फायर कर इतिहास को जिंदा कर दिया. क्रम जारी रहा और फिर देर रात इतिहास वाचन के बाद गोलाकार आकार में तलवारों की खनक के साथ गैर नृत्य खेला गया.

वल्लभनगर विधायक प्रीति शक्तावत भी पहुंचीं: आम के साथ खास लोग भी इस अनूठे कार्यक्रम का हिस्सा बनते हैं. इस बार इस होली में विधायक प्रीति शक्तावत भी मौजूद थीं. जो पारम्परिक परिधान में पहुंचीं और शूरवीरों को इतिहास की झलकियां पेश करते देखा. खुशी जाहिर की कि दशकों पुरानी परम्परा को गर्व के साथ सहेज कर रखा गया है.

औरंगजेब की सेना को घुटने टिकाए थे: इतिहास करीब 400 साल पुराना है. ग्रामीण गर्व से बताते हैं. कहा जाता है कि भीण्डर क्षेत्र के ब्राह्मणों ने राष्ट्र और धर्म रक्षार्थ शास्त्र के स्थान पर शस्त्र धारण किए. और मुगल सेना को इसी चौक में घुटनों के बल रेंगने को मजबूर किया था. वो होली का ही समय था. इसी खुशी में यह होली हर साल उस युद्ध की और जीत की यादों को ताजा करती है.

पढ़ें- उदयपुर में पुलिसकर्मियों ने 'Tiger' के साथ खेली होली, देखें Video...

मुगल आक्रांताओं को ऐसे था फंसाया: गांव के ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार जब मेवाड़ पर महाराणा अमर सिंह का राज था. उस समय कई जगह मुगलों की छावनियां थीं. मेनार गांव की पूर्व दिशा में मुगलों ने अपनी छावनी बना रखी थी.

मेनार के लोग मुगलों के आतंक से त्रस्त हो चुके थे. इस बीच एक दिन गांव में गेर का आयोजन किया गया. ग्रामीणों ने इस आयोजन में छावनी वालों को भी आमंत्रित किया. गांव के चौराहे पर ढोल बजाया गया. नंगी तलवारों, ढालों के साथ गैर खेलना शुरू किया. अचानक ढोल की आवाज में रणभेरी का रूप ले लिया, गांव के वीर छावनी के सैनिकों पर टूट पड़े. रात भर युद्ध चला गांव के लोगों ने मुगलों को मार गिराया. जिसको लेकर आज भी मैदान में इस ऐतिहासिक युद्ध के शौर्य और वीरता का पर्व मनाया जाता है.

उदयपुर. धांय धांय करती बंदूकें, चौतरफा गूंजते बम पटाखों की आवाजें सुन एकाएक लगता है कि शायद हम होली की नहीं दीवाली की बात कर रहे हैं. लेकिन ये आवाजें बताती हैं कि यहां होली महज परम्परा नहीं बल्कि जश्न है जीत (Menar Ki Baroodi Holi) का. मुगलों को शिकस्त देने का. आज भी गांव अपने पुरखों की कुर्बानी और उनकी शौर्य गाथा को बारूदों के बीच (not colors but bullets are fired) याद करता है.

ईटीवी भारत की टीम भी इस अनूठी होली को देखने के लिए मेनार गांव (Menar ki Barood wali holi) पहुंची. यहां हर घर रंगों से कम जगमगाती रोशनी में डूबा ज्यादा नजर आया. शाम के साथ होलियारे रणबांकुरों के रूप में नजर आए. इनकी टोली गांव के मुख्य चौक में पहुंचने लगी. पूरा चौक खचाखच भर गया. और फिर जो दिखा वो अद्भुत और अविस्मरणीय रहा. यहां जमराबीज पर शौर्य और इतिहास की स्मृति की झलक देखने (Unique Holi Of Menar) को मिली. रंगों की नहीं बल्कि बारूद की होली लोग खेलते दिखे.

यहां रंग नहीं बारूदों की होली

तलवारों और बंदूकों की आवाज से हूबहू युद्ध का दृश्य देखने को मिला. वहीं दूसरी तरफ ग्रामीणो द्वारा मेहमानों की मेहमान नवाजी की जा रही थी.घरों में तरह-तरह के व्यजनं बनाए गए. क्षत्रिय योद्धाओं की भांति सजे धजे पुरुष ढोल की थाप पर एक हाथ में खांडा और दूसरे हाथ में तलवार लेकर गैर नृत्य कर रहे थे. वहीं तोप से गोले दागने के साथ हवाई फायर लगातार चौक में किए जा रहे थे.पटाखों की गर्जना के बीच तलवारों की खनखनाहट ने माहौल को युद्ध का मैदान बना दिया.

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तलवार के साथ कपड़े भी चमकदार: सफेद कपड़े और कसूमल पाग से रजवाड़ी रंगत लिए मेनारिया समाज के इन रणजीतों न केवल तलवारों से गेर नृत्य खेलकर समां बांधा बल्कि एक के बाद एक टोपीदार बंदूकों से फायर कर इतिहास को जिंदा कर दिया. क्रम जारी रहा और फिर देर रात इतिहास वाचन के बाद गोलाकार आकार में तलवारों की खनक के साथ गैर नृत्य खेला गया.

वल्लभनगर विधायक प्रीति शक्तावत भी पहुंचीं: आम के साथ खास लोग भी इस अनूठे कार्यक्रम का हिस्सा बनते हैं. इस बार इस होली में विधायक प्रीति शक्तावत भी मौजूद थीं. जो पारम्परिक परिधान में पहुंचीं और शूरवीरों को इतिहास की झलकियां पेश करते देखा. खुशी जाहिर की कि दशकों पुरानी परम्परा को गर्व के साथ सहेज कर रखा गया है.

औरंगजेब की सेना को घुटने टिकाए थे: इतिहास करीब 400 साल पुराना है. ग्रामीण गर्व से बताते हैं. कहा जाता है कि भीण्डर क्षेत्र के ब्राह्मणों ने राष्ट्र और धर्म रक्षार्थ शास्त्र के स्थान पर शस्त्र धारण किए. और मुगल सेना को इसी चौक में घुटनों के बल रेंगने को मजबूर किया था. वो होली का ही समय था. इसी खुशी में यह होली हर साल उस युद्ध की और जीत की यादों को ताजा करती है.

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मुगल आक्रांताओं को ऐसे था फंसाया: गांव के ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार जब मेवाड़ पर महाराणा अमर सिंह का राज था. उस समय कई जगह मुगलों की छावनियां थीं. मेनार गांव की पूर्व दिशा में मुगलों ने अपनी छावनी बना रखी थी.

मेनार के लोग मुगलों के आतंक से त्रस्त हो चुके थे. इस बीच एक दिन गांव में गेर का आयोजन किया गया. ग्रामीणों ने इस आयोजन में छावनी वालों को भी आमंत्रित किया. गांव के चौराहे पर ढोल बजाया गया. नंगी तलवारों, ढालों के साथ गैर खेलना शुरू किया. अचानक ढोल की आवाज में रणभेरी का रूप ले लिया, गांव के वीर छावनी के सैनिकों पर टूट पड़े. रात भर युद्ध चला गांव के लोगों ने मुगलों को मार गिराया. जिसको लेकर आज भी मैदान में इस ऐतिहासिक युद्ध के शौर्य और वीरता का पर्व मनाया जाता है.

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