उदयपुर. मेवाड़ के विशेष भील समुदाय का गवरी नृत्य देश दुनिया में काफी प्रसिद्ध है. कोरोना काल में हर चीज की तरह ये भी संक्रमण की भेंट चढ़ गया है. हर साल गवरी नृत्य भाद्रपद महीने से शुरू होकर अश्विन महीने तक लगभग 40 दिन तक चलता था. इस दौरान मांदल और थाली की झंकार के साथ पुरुष विभिन्न तरह के वेशभूषा धारण कर गवरी नृत्य करते थे.
लेकिन इस साल कोरोना महामारी के चलते गवरी का आयोजन नहीं हो रहा और मेवाड़ की ये परंपरा ठहर सी गई. इस परंपरा को लोगों के बीच पहुंचाने के लिए अब उदयपुर के कलाकार आगे आने लगे हैं. जाने-माने कलाकार राजेश सोनी अब इस गवरी कला को जिंदा रखने के लिए गवरी नृत्य की विभिन्न मुद्राओं की पेंटिंग बना रहे हैं.
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जिससे वो आम जनता को गवरी नृत्य के बारे में जानकारी दे रहे हैं. राजेश का कहना है कि मेवाड़ का इतिहास गवरी के आसपास है. सालों से गवरी नृत्य आम लोगों के मनोरंजन के साथ ही आस्था का प्रतीक भी है. जिसे देखने के लिए न सिर्फ राजस्थान और भारत बल्कि पूरे विश्व के लोग हर साल उदयपुर आते थे.
![Canvas painting of gawri dance, gavari dance of Mewar](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/rj-udp-01-gawri-spal-7203358_28082020134510_2808f_01110_1103.jpg)
अब जब गवरी का आयोजन नहीं हो रहा है, तो ऐसे में इसकी पहचान को लोगों के बीच जिंदा रखने के लिए राजेश गवरी सीरीज की पेंटिंग बना रहे हैं. राजेश कहते हैं कि इस परंपरा को सजा कर रखना हम सब के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इसी कड़ी में राजेश उदयपुर सहित आसपास के जिलों में होने वाले गवरी नृत्य को सड़क से कैनवास पर उतार रहे हैं.
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प्राचीन मान्यताओं के अनुसार गवरी नृत्य शंकर और पार्वती के जीवन का चित्रण भी है. जिसमें आदिवासी कलाकार उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए विभिन्न सामाजिक और स्वास्थ्य मुद्दों को लेकर गवरी का नृत्य करते थे. उदयपुर में जिला प्रशासन द्वारा सितंबर महीने में भी किसी भी प्रकार के सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं करने के आदेश जारी किए गए हैं. जिसके चलते अब कैनवास पेंटिंग के जरिए गवरी नृत्य को आम लोगों तक पहुंचाने का बीड़ा कलाकार राजेश सोनी ने उठा रखा है.
![Canvas painting of gawri dance, gavari dance of Mewar](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/rj-udp-01-gawri-spal-7203358_28082020134510_2808f_01110_957.jpg)
क्या होता है गवरी नृत्य?
गवरी नृत्य सदियों से राजस्थान के अंचलों में किया जाता रहा है. यह भील लोगों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली एक प्रसिद्ध लोक नृत्य नाटिका है. देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गवरी नृत्य एक वृत्त बनाकर और समूह में किया जाता है. इस नृत्य के जरिए कहानियां प्रस्तुत की जाती है. हर साल गांव के लोग गवरी नृत्य का संकल्प करते हैं. गवरी नृत्य में कोई भी महिला कलाकार नहीं होती है. महिला का किरदार भी पुरुष उसकी वेशभूषा धारण कर निभाते हैं.