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पर्यावरण सेनानी : उदयपुर की पहाड़ियों को हरा-भरा करने के मुहिम में लगी है टीम सेटिस्फेक्शन...गाजर घास को कंपोस्ट खाद में बदलने का दावा - hills of Udaipur

कुदरत की हिफाजत के लिए कई संगठन अपने स्तर पर काम कर रहे हैं. ऐसी ही एक टीम है जो मेवाड़ की पहाड़ियों को हरा-भरा करने के मिशन पर लगी है. टीम सेटिस्फेक्शन नाम का यह संगठन अब तक हजारों पौधे लगा चुका है. साथ ही पर्यावरण के लिए समस्या बनी गाजर घास को कंपोस्ट खाद में बदलने का तरीका भी इजाद कर चुकी है.

उदयपुर में टीम सेटिस्फेक्शन
उदयपुर में टीम सेटिस्फेक्शन
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Published : Aug 21, 2021, 7:45 PM IST

Updated : Aug 21, 2021, 11:00 PM IST

उदयपुर. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का खतरा हमारे सामने है. कोरोना के दौरान ऑक्सीजन की कमी का हाहाकार भी सब ने देखा. ये हालात प्रकृति के संरक्षण और पौधारोपण का संदेश दे रहे हैं. हम अपने पर्यावरण को लेकर गंभीर नहीं हैं, इसीलिए इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं.

ऐसा नहीं है कि कोई भी पर्यावरण के लिए संजीदा नहीं है. कुछ लोग हैं जो चुपचाप अपना काम कर रहे हैं और पर्यावरण के सिपाही बने हुए हैं. टीम सेटिस्फेक्शन के कुछ युवा पिछले 10 साल से उदयपुर की पहाड़ियों को हरा-भरा करने की मुहिम में लगे हुए हैं. ये काम आसान नहीं था, पहाड़ियां दुर्गम हैं और संसाधनों की कमी है. फिर भी यह टीम पहाड़ी इलाके में हजारों पौधे लगा चुकी है, जो अब वृक्ष बन चुके हैं.

टीम सेटिस्फेक्शन का प्रयास

टीम का काम सिर्फ पौधे लगाना ही नहीं है. बल्कि लगाए गए पौधों का संरक्षण और उनकी सिंचाई भी इस टीम के जिम्मे है. टीम के सदस्य लोगों को प्रेरित करते हैं कि जन्मदिन पर पौधे लगाए जाएं और उनका संरक्षण किया जाए. टीम सेटिस्फेक्शन के सदस्य डॉ. सतीश आमेटा इस अभियान को 10 साल से चला रहे हैं. इलाके के गांव-गांव तक उनकी टीम की पहुंच है. राजस्थान के अलावा असम, सिक्किम, दिल्ली, जयपुर, पंजाब से भी उनकी टीम में सदस्य जुड़े हैं, यहां तक कि विदेशी लोग भी उनकी टीम में शामिल हैं और पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं.

उदयपुर की पहाड़ियों पर ग्रीनरी मिशन
उदयपुर की पहाड़ियों पर ग्रीनरी मिशन

पढ़ें- पिपलांत्री का 'रक्षा-सूत्र' : बेटी के जन्म पर यहां लगाए जाते हैं पौधे...प्रकृति के साथ साझा होता है 'रक्षा बंधन' पर्व, डेनमार्क के सिलेबस में शामिल है यह गांव

पौधारोपण के लिए यह टीम वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करती है. मिट्टी परखी जाती है, उसके बाद तय होता है कि इस जमीन में बरगद, पीपल, नीम, गूगल, पलाश या कौन सा पौधा पनप सकता है. इसके अलावा डॉ. सतीश आमेटा ने विश्व पर्यावरण के लिए समस्या बनी गाजर घास से कंपोस्ट खाद बनाने का रास्ता भी निकाल लिया है. उदयपुर जिले के कुराबड़ गांव निवासी डॉ. सतीश आमेटा ने अपने शोध पत्र में 3 साल की मेहनत के बाद गाजर घास से कंपोस्ट खाद बनाने का तरीका इजाद किया.

उदयपुर में टीम सेटिस्फेक्शन
उदयपुर की पहाड़ियों पर ग्रीनरी मिशन

क्या है गाजर घास

दरअसल 60 के दशक में भारत ने अमेरिका से गेहूं आयात किया था. गेहूं की उस खेप पीएल 480 के साथ एक खरपतवार का बीज भी साथ ही आ गया था. वह खरपतवार ही गाजर घास कहलाती है. यह पर्यावरण के साथ साथ जीव-जंतुओं के लिए भी घातक है. इतने वर्षों में इस गाजर घास का कोई तोड़ नहीं मिल सका है.

इस तकनीक में व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों जैसे गोबर, सूखी पत्तियां, फसलों के अवशेष, राख, लकड़ी का बुरादा आदि का एक भाग और चार भाग गाजर घास मिलाकर लकड़ी के डिब्बे में इसे भरा जाता है. इस डिब्बे के चारों ओर छेद होते हैं ताकि हवा का प्रवाह समुचित बना रहे और गाजर घास का खाद के रूप में अपघटन शीघ्रता से हो. पानी का छिड़काव कर एवं मिश्रण को नित्य समय अंतराल में पलट कर हवा उपलब्ध कराने पर 2 महीने में जैविक खाद तैयार हो जाती है.

उदयपुर. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का खतरा हमारे सामने है. कोरोना के दौरान ऑक्सीजन की कमी का हाहाकार भी सब ने देखा. ये हालात प्रकृति के संरक्षण और पौधारोपण का संदेश दे रहे हैं. हम अपने पर्यावरण को लेकर गंभीर नहीं हैं, इसीलिए इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं.

ऐसा नहीं है कि कोई भी पर्यावरण के लिए संजीदा नहीं है. कुछ लोग हैं जो चुपचाप अपना काम कर रहे हैं और पर्यावरण के सिपाही बने हुए हैं. टीम सेटिस्फेक्शन के कुछ युवा पिछले 10 साल से उदयपुर की पहाड़ियों को हरा-भरा करने की मुहिम में लगे हुए हैं. ये काम आसान नहीं था, पहाड़ियां दुर्गम हैं और संसाधनों की कमी है. फिर भी यह टीम पहाड़ी इलाके में हजारों पौधे लगा चुकी है, जो अब वृक्ष बन चुके हैं.

टीम सेटिस्फेक्शन का प्रयास

टीम का काम सिर्फ पौधे लगाना ही नहीं है. बल्कि लगाए गए पौधों का संरक्षण और उनकी सिंचाई भी इस टीम के जिम्मे है. टीम के सदस्य लोगों को प्रेरित करते हैं कि जन्मदिन पर पौधे लगाए जाएं और उनका संरक्षण किया जाए. टीम सेटिस्फेक्शन के सदस्य डॉ. सतीश आमेटा इस अभियान को 10 साल से चला रहे हैं. इलाके के गांव-गांव तक उनकी टीम की पहुंच है. राजस्थान के अलावा असम, सिक्किम, दिल्ली, जयपुर, पंजाब से भी उनकी टीम में सदस्य जुड़े हैं, यहां तक कि विदेशी लोग भी उनकी टीम में शामिल हैं और पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं.

उदयपुर की पहाड़ियों पर ग्रीनरी मिशन
उदयपुर की पहाड़ियों पर ग्रीनरी मिशन

पढ़ें- पिपलांत्री का 'रक्षा-सूत्र' : बेटी के जन्म पर यहां लगाए जाते हैं पौधे...प्रकृति के साथ साझा होता है 'रक्षा बंधन' पर्व, डेनमार्क के सिलेबस में शामिल है यह गांव

पौधारोपण के लिए यह टीम वैज्ञानिक तकनीक का इस्तेमाल करती है. मिट्टी परखी जाती है, उसके बाद तय होता है कि इस जमीन में बरगद, पीपल, नीम, गूगल, पलाश या कौन सा पौधा पनप सकता है. इसके अलावा डॉ. सतीश आमेटा ने विश्व पर्यावरण के लिए समस्या बनी गाजर घास से कंपोस्ट खाद बनाने का रास्ता भी निकाल लिया है. उदयपुर जिले के कुराबड़ गांव निवासी डॉ. सतीश आमेटा ने अपने शोध पत्र में 3 साल की मेहनत के बाद गाजर घास से कंपोस्ट खाद बनाने का तरीका इजाद किया.

उदयपुर में टीम सेटिस्फेक्शन
उदयपुर की पहाड़ियों पर ग्रीनरी मिशन

क्या है गाजर घास

दरअसल 60 के दशक में भारत ने अमेरिका से गेहूं आयात किया था. गेहूं की उस खेप पीएल 480 के साथ एक खरपतवार का बीज भी साथ ही आ गया था. वह खरपतवार ही गाजर घास कहलाती है. यह पर्यावरण के साथ साथ जीव-जंतुओं के लिए भी घातक है. इतने वर्षों में इस गाजर घास का कोई तोड़ नहीं मिल सका है.

इस तकनीक में व्यर्थ कार्बनिक पदार्थों जैसे गोबर, सूखी पत्तियां, फसलों के अवशेष, राख, लकड़ी का बुरादा आदि का एक भाग और चार भाग गाजर घास मिलाकर लकड़ी के डिब्बे में इसे भरा जाता है. इस डिब्बे के चारों ओर छेद होते हैं ताकि हवा का प्रवाह समुचित बना रहे और गाजर घास का खाद के रूप में अपघटन शीघ्रता से हो. पानी का छिड़काव कर एवं मिश्रण को नित्य समय अंतराल में पलट कर हवा उपलब्ध कराने पर 2 महीने में जैविक खाद तैयार हो जाती है.

Last Updated : Aug 21, 2021, 11:00 PM IST
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