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SPECIAL: कोरोना काल में पटरी पर तो लौटी रेलगाड़ी...लेकिन बेपटरी हुआ थड़ी-ठेला चलाने वालों का जीवन

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Published : Jun 22, 2020, 5:04 PM IST

कोरोना संक्रमण के दौरान देशभर में रेल सेवाएं बेपटरी हो गई थी. लेकिन एक बार फिर रेलवे द्वारा रेल गाड़ियों का संचालन शुरू कर दिया गया है, पर स्टेशन पर स्टॉल और ठेले लगाने वाले लोगों का रोजगार अभी भी पटरी पर नहीं आ पाया है. देखें यह रिपोर्ट...

lockdown effect on small businessman, lockdown effects, लॉकडाउन का फुटकर व्यापारियों पर प्रभाव, राजस्थान हिंदी समाचार
बेपटरी हुआ थड़ी-ठेला व्यापारियों का जीवन

उदयपुर. रेलवे स्टेशनों पर अक्सर जगह-जगह पर स्टॉल और थड़ियां लगी होती हैं. ताकि आने-जाने वाले यात्रियों को खाने-पीने की पूरी सुविधा मिल सके. लेकिन देशभर में लगातार बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के चलते पिछले 3 महीनों से लॉकडाउन लागू था. जिसके चलते लंबे समय से रेल यात्राओं पर रोक लगा दी गई थी.

अब पूरे देश को अनलॉक कर दिया गया है. बावजूद इसके कुछ ही रेलगाड़ियों को हरी झंडी दिखाई गई है. रेलवे स्टेशनों पर कई दुकानदार और थड़ी वाले सामान बेचने का काम करते हैं. जिनकी जीविका रेलवे पर आने वाले यात्रियों पर ही निर्भर रहती है.

बेपटरी हुआ थड़ी-ठेला चलाने वालों का जीवन

3 महीने तक हुआ घाटा

ट्रेनें बंद होने से स्टेशनों पर थड़ियां और स्टॉल लगाने वाले सभी फुटकर व्यापारियों का काम-धंधा भी बेपटरी हो गया था. लगभग 3 महीनों तक कमाई के सारे साधन बंद हो गए थे. लेकिन अब जब व्यापार शुरू हुआ भी है, तो कोरोना का कहर इन्हें परेशान कर रहा है.

उदयपुर के सिटी रेलवे स्टेशन पर करीब 8 प्लेटफार्म हैं. जिनमें 50 से अधिक लोग ठेला और स्टॉल लगाने का काम करते हैं. जिनमें से फिलहाल कुछ ही ठेले और स्टॉल मौजूदा समय में चल रहे हैं. इन 50 व्यापारियों के परिवारों को अगर देखें तो लगभग 200 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं. ये हाल तो सिर्फ सिटी रेलवे स्टेशन का है. पूरे प्रदेश भर में ना जाने कितने परिवार प्रभावित हैं.

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रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों की कम हुई संख्या

यह भी पढे़ं- ग्रामीणों की कोरोना से जंग: पाली में सबसे ज्यादा प्रवासी आए सोजत में, खास व्यवस्था के चलते कोरोना मुक्त

10 प्रतिशत यात्री ही कर रहे सफर

सिटी रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले बाबूलाल बताते हैं कि 'कोरोना काल से पहले दुकान पर 3 लोगों का स्टाफ था, लेकिन अब मैं अकेला पूरी दुकान को संभालता हूं, क्योंकि ग्राहक की पूरी तरह से बंद हो गई है. रेलगाड़ियों में भी अब सिर्फ 10% यात्री ही सफर कर रहे हैं. जिनमें से चुनिंदा लोग ही सामान खरीदने आते हैं. ऐसे में 2 जून की रोटी कमा पाना भी मुश्किल हो रहा है.'

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स्टेशन पर स्टॉल लगाने वाले बाबूलाल

सिटी स्टेशन के प्लेटफार्म पर ही पिछले लंबे समय से ठेला लगाने वाले मदन बताते हैं कि 'काम धंधा पूरी तरह से बदल गया है. लोग काफी डरे हुए हैं. ऐसे में सामान की खरीदी भी नहीं कर रहे. जिसके चलते सुबह से शाम तक अक्सर ग्राहकों का इंतजार रहता है, ताकि गुजर बसर हो सके.'

बता दें कि सिर्फ स्टेशन पर काम करने वाले थड़ी ठेला व्यापारी की नहीं, बल्कि रेलवे सेवाओं से जुड़े अन्य लोग जिनमें ऑटो रिक्शा से लेकर कुली शामिल हैं. इन सभी लोगों के जीवन में कोरोना वायरस महामारी के चलते काफी बदलाव आ गया है.

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ठेला लगाकर ग्राहकों का इंतजार करता बुजुर्ग

यह भी पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर भाजपा नेताओं ने भी किया योगाभ्यास

रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के आने से ही कुलियों, ठेले वाले और फुटकर व्यापारियों का घर चलता है. लेकिन अनलॉक 1.0 के साथ ही कुछ गिनी चुनी गाड़ियां पटरियों पर दौड़ रही हैं, पर इन फुटकर व्यापारियों का जीवन अभी भी ठहरा हुआ है.

उदयपुर. रेलवे स्टेशनों पर अक्सर जगह-जगह पर स्टॉल और थड़ियां लगी होती हैं. ताकि आने-जाने वाले यात्रियों को खाने-पीने की पूरी सुविधा मिल सके. लेकिन देशभर में लगातार बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के चलते पिछले 3 महीनों से लॉकडाउन लागू था. जिसके चलते लंबे समय से रेल यात्राओं पर रोक लगा दी गई थी.

अब पूरे देश को अनलॉक कर दिया गया है. बावजूद इसके कुछ ही रेलगाड़ियों को हरी झंडी दिखाई गई है. रेलवे स्टेशनों पर कई दुकानदार और थड़ी वाले सामान बेचने का काम करते हैं. जिनकी जीविका रेलवे पर आने वाले यात्रियों पर ही निर्भर रहती है.

बेपटरी हुआ थड़ी-ठेला चलाने वालों का जीवन

3 महीने तक हुआ घाटा

ट्रेनें बंद होने से स्टेशनों पर थड़ियां और स्टॉल लगाने वाले सभी फुटकर व्यापारियों का काम-धंधा भी बेपटरी हो गया था. लगभग 3 महीनों तक कमाई के सारे साधन बंद हो गए थे. लेकिन अब जब व्यापार शुरू हुआ भी है, तो कोरोना का कहर इन्हें परेशान कर रहा है.

उदयपुर के सिटी रेलवे स्टेशन पर करीब 8 प्लेटफार्म हैं. जिनमें 50 से अधिक लोग ठेला और स्टॉल लगाने का काम करते हैं. जिनमें से फिलहाल कुछ ही ठेले और स्टॉल मौजूदा समय में चल रहे हैं. इन 50 व्यापारियों के परिवारों को अगर देखें तो लगभग 200 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं. ये हाल तो सिर्फ सिटी रेलवे स्टेशन का है. पूरे प्रदेश भर में ना जाने कितने परिवार प्रभावित हैं.

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रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों की कम हुई संख्या

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10 प्रतिशत यात्री ही कर रहे सफर

सिटी रेलवे स्टेशन पर काम करने वाले बाबूलाल बताते हैं कि 'कोरोना काल से पहले दुकान पर 3 लोगों का स्टाफ था, लेकिन अब मैं अकेला पूरी दुकान को संभालता हूं, क्योंकि ग्राहक की पूरी तरह से बंद हो गई है. रेलगाड़ियों में भी अब सिर्फ 10% यात्री ही सफर कर रहे हैं. जिनमें से चुनिंदा लोग ही सामान खरीदने आते हैं. ऐसे में 2 जून की रोटी कमा पाना भी मुश्किल हो रहा है.'

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स्टेशन पर स्टॉल लगाने वाले बाबूलाल

सिटी स्टेशन के प्लेटफार्म पर ही पिछले लंबे समय से ठेला लगाने वाले मदन बताते हैं कि 'काम धंधा पूरी तरह से बदल गया है. लोग काफी डरे हुए हैं. ऐसे में सामान की खरीदी भी नहीं कर रहे. जिसके चलते सुबह से शाम तक अक्सर ग्राहकों का इंतजार रहता है, ताकि गुजर बसर हो सके.'

बता दें कि सिर्फ स्टेशन पर काम करने वाले थड़ी ठेला व्यापारी की नहीं, बल्कि रेलवे सेवाओं से जुड़े अन्य लोग जिनमें ऑटो रिक्शा से लेकर कुली शामिल हैं. इन सभी लोगों के जीवन में कोरोना वायरस महामारी के चलते काफी बदलाव आ गया है.

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ठेला लगाकर ग्राहकों का इंतजार करता बुजुर्ग

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रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के आने से ही कुलियों, ठेले वाले और फुटकर व्यापारियों का घर चलता है. लेकिन अनलॉक 1.0 के साथ ही कुछ गिनी चुनी गाड़ियां पटरियों पर दौड़ रही हैं, पर इन फुटकर व्यापारियों का जीवन अभी भी ठहरा हुआ है.

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