उदयपुर. हर वर्ष 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है. राजस्थान के कण-कण में कई रोचक इतिहास बसा है. राजस्थान का नाम आते ही दिल दिमाग में संस्कृति, परंपरा और रीति रिवाज की झलक दिखाई देती है, जिसने संपूर्ण विश्व के सामने एक अद्भुत परिकल्पना पेश की है. राजस्थान दिवस के मौके पर हम आपको राजस्थान के लोक संगीत और लोक नृत्य परंपराओं के बारे में बता रहे हैं. देखें ये खास रिपोर्ट
विविधता की झलक...
राजस्थान के हर जिले में विविधता की झलक दिखाई देती है. मांड गायन शैली लगभग राजस्थान के हर क्षेत्र में गाई जाती रही है, जिसमें राजस्थान में होने वाले परिवारों की विभिन्न समारोह, आयोजनों और सामूहिक कार्यक्रमों में मांड गाया जाता रहा है.
देशभर में कमाया नाम...
बीकानेर में अल्लाह जिलाई बाई, उदयपुर में मांगी बाई, लीलाबाई, मोहिनी देवी, वैष्णो देवी आदि लोक कलाकारों ने मांड की प्रस्तुति देकर ना केवल राजस्थान, बल्कि पूरे देश में अपनी गायकी से लोगों को आकर्षित किया. इस गायन के कारण अल्लाह जिलाई बाई और मांगी देवी को संगीत नाटक अकादमी ने राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया. इसके अलावा मांड राजस्थान की लोक नाट्य शैली ख्याल में भी गाया जाता है.
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13 काम को दर्शाता तेरहताली नृत्य...
बाबा रामदेव की आराधना में कामड़ जाति की ओर से किया जाने वाला तेरहताली नृत्य एक अद्भुत नृत्य है, जो बैठकर किया जाता है, जिसमें कलाकार अपने शरीर, हाथ और पैरों पर 13 मंजरी बांध कर तेरा प्रकार के घरेलू कार्य को प्रदर्शित करती हैं. जैसे कि गाय का दूध दोहना, छाछ बिलो ना आदि. इस नृत्य में शारीरिक एवं मानसिक संतुलन देखते ही बनता है.
घूमर की झलक...
इसके अलावा राजस्थान के लोक नृत्य की बात करें, तो मन मस्तिष्क में राजघराना में किए जाने वाले घूमर की झलक दिखाई देती है. घूमर वास्तव में राजघरानों की लड़कियों द्वारा गणगौर पर्व के अवसर पर किया जाता था, जिसमें लड़कियां शिवजी जैसे वर की कामना करती हैं.
जलती आग के बीच चरी नृत्य...
इसी प्रकार राजस्थान में चरी नृत्य किया जाता रहा है, जिसमें नृत्य अपने सिर पर चरी रखकर नृत्य करती हैं. इस में आग जलती रहती है. वास्तव में नृत्य प्राचीन समय में जब राजा युद्ध जीतकर लौटते थे, तो उनके स्वागत और अगवानी के तौर पर रास्ता दिखाने के लिए रात के समय किया जाता था.
विलुप्त होती कलाओं को सहेजने की जरूरत...
वहीं, उपयुक्त सभी कलाओं को भारतीय लोक कला मंडल शुरुआत से ही सहेजने में जुटा है. इन विलुप्त होती कलाओं को आज भी भारतीय लोक कला मंडल अपने पारंपरिक रूप में प्रस्तुत करता है. लेकिन, अन्य स्थानों पर देखें तो नृत्य और गायकी का मूल स्वरूप धीरे धीरे परिवर्तित होने लगा है. इन परंपरागत गायकी और लोक नृत्य को देखने के लिए भारतीय लोक कला मंडल में लाखों में लोग आते हैं. तो वहीं, शिल्पग्राम या राजस्थान टूरिज्म की ओर से आयोजित मेले में भी लाखों की संख्या में दर्शक इनका आनंद लेते हैं. अब जरूरत है इन्हें सहेजने और इन कलाओं को जिंदा रखने वाले कलाकारों को प्रोत्साहन करने की.