उदयपुर. राजस्थान के राजसमंद जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर चारभुजा गढ़बोर में स्थित भगवान चारभुजा नाथ के मंदिर (Charbhuja Nath Temple) का विशेष महत्व है. गोमती नदी के किनारे बसा यह मंदिर करीब 5285 साल पुराना माना जाता है. पांडवों के हाथों स्थापित इस मंदिर में कृष्ण चतुर्भुज स्वरूप में विराजित हैं. इस मंदिर में भगवान के दर्शन और आराधना से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मंगलवार को जलझूलनी ग्यारस पर्व के मौके पर भगवान को सोने की पालकी में बिठाकर शोभायात्रा निकाली गई. इसमें हजारों की संख्या में भक्त शामिल हुए.
हर साल योग योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव जन्माष्टमी के 18 दिन बाद जलझूलनी ग्यारस मनाया जाता है. मेवाड़ के आराध्य कहे (Jaljhulni gyaras in Charbhuja Nath Temple) जाने वाले प्रभु चारभुजा नाथ मंदिर में मंगलवार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ लाखों श्रद्धालुओं के बीच जलझूलनी ग्यारस का पर्व मनाया गया. मेवाड़ और मारवाड़ के आराध्य चारभुजा नाथ गढ़बोर मंदिर की अनूठी परंपराएं हैं.
दो साल बाद शाही ठाठ बाट से निकले ठाकुर जी: चारभुजा मंदिर में जलझूलनी ग्यारस का पर्व मंगलवार को बड़े हर्षोल्लास (Procession on Jaljulni Gyaras) के साथ मनाया जा रहा है. हजारों की संख्या में श्रद्धालु रविवार से ही आना प्रारंभ हो गए थे. वहीं मंगलवार को प्रभु चारभुजा नाथ को राजभोग और दर्शन के पश्चात शाही लवाजमें के साथ ठाकुरजी का वैवाण निकाला गया. प्रभु के बाल स्वरूप को सोने की पालकी में विराजित कर दुधतलाई ले जाया गया. जहां पर हजारों सेवकों व श्रद्धालुओं की उपस्थिति में शाही स्नान करवाया गया.
प्रभु की 11:30 बजे भोग आरती के बाद भगवान की बाल प्रतिमा की शोभायात्रा को गर्भगृह से सोने की पालकी में विराजमान कर निकाला गया. दोपहर 12:05 बजे सोने की पालकी निज मंदिर से स्वर्ग सी आभा में मृंदग, शहनाई, बैंण्ड बाजों के साथ गणी खम्मा के जयकारों के साथ मंदिर प्रांगण में आई. शोभायात्रा के साथ मेवाड़ी वेशभूषा में मेवाड़ी पाग, धोती कुर्ते पहने चल रहे पुजारियों के हाथ में ढाल, तलवार, गोटे सहित नाना प्रकार के स्वर्ण व रजत जड़ित धातु से निर्मित अस्त्र शस्त्र व आयुध सहित मोर पंखी थे. इस दौरान श्रृद्धालुओं ने खुब गुलाल उड़ाई.
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गुलाल उड़ाते हुए श्रद्धालुओं ने प्रभु को सोने-चांदी की पालकी में विराजित किया. वहीं शोभायात्रा में हाथी, घोड़ा और ऊंट की सवारी भी शामिल रही. कोरोना के कारण पिछले 2 साल से सांकेतिक तौर से पर्व मनाया जा रहा था. कोरोना के चलते आम (Celebration of Jaljhulni gyaras in Rajasthan) श्रद्धालु भगवान के एकादशी के पावन अवसर पर शामिल नहीं हो पाए थे. लेकिन इस बार भक्त अपने आराध्य देव के जलझूलनी एकादशी के अवसर पर फिर से भक्ति में डूबे हुए नजर आए.
मंदिर का इतिहास: मंदिर के बारे में मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान गोमती नदी के तट (Story of Charbhuja Nath Temple) पर चारभुजा वाली प्रतिमा की पूजा की थी. इसके बाद इस प्रतिमा को पांडवों ने जलमग्न कर दिया और वहां से चले गए. इसके बाद यह प्रतिमा गंगदेव क्षत्रिय को मिली. उसने भी इस प्रतिमा की पूजा की और कुछ वर्षों बाद इसे पुनः जलमग्न कर दिया. इसके बाद सूरा गुर्जर को स्वप्न में मूर्ति के पानी में होने की बात पता चली. जिसपर सूरा गुर्जर ने मंदिर को पुनः स्थापित कर इसकी पूजा-अर्चना शुरू की. तभी से मंदिर की पूजा-सेवा गुर्जर समुदाय के पास है.
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गुर्जर समुदाय करता है मंदिर की सेवा : इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने बताया कि मंदिर के पुजारी गुर्जर समाज के 1 हजार परिवार हैं, जिनमें सेवा-पूजा ओसरे के अनुसार बंटी हुई है. ओसरे की परंपरा कुछ ऐसी है कि कुछ परिवारों का ओसरा जीवन में सिर्फ एक बार आता है तो किसी का 48 से 50 साल में. किसी का 4 साल के अंतराल में भी आ जाता है. हर अमावस्या को ओसरा बदलता है और अगला परिवार का मुखिया पुजारी बनता है. बताया जाता है कि ओसरे का निर्धारण बरसों पहले गोत्र और परिवारों की संख्या के अनुसार हुआ था जो अभी चला आ रहा है. पुजारी गुर्जर समाज के 1 हजार परिवार हैं, जिनमें सेवा-पूजा ओसरे के अनुसार बंटी हुई है.
सियासत की दृष्टि से विशेष स्थान रखता है मंदिर : भगवान चारभुजा नाथ का मंदिर राजस्थान की सियासत में विशेष स्थान रखता है. भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपनी गौरव यात्राओं से पहले इसी मंदिर में मत्था टेक कर निकालती आईं हैं. पिछली विधानसभा चुनाव में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भगवान चारभुजा नाथ के दर्शन कर अपनी यात्रा शुरू की थी. इससे पहले भी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपनी दो यात्राओं को यहीं से निकाल चुकी हैं. जिनमें सुराज संकल्प यात्रा भी शामिल है.