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जलझूलनी एकादशी पर चारभुजा नाथ की ठाट बाट से निकली शाही सवारी, भक्तों का प्रवेश रहा मंदिर में निषेध

मेवाड़ के प्रसिद्ध धाम चारभुजा मंदिर में भी जलझूलनी एकादशी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. एकादशी पर चारभुजा नाथ की ठाट बाट से शाही सवारी निकली, लेकिन इस बार भी भक्तों का प्रवेश मंदिर में निषेध रहा.

Jaljulni Ekadashi, Rajasthan News
शाही सवारी
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Published : Sep 17, 2021, 1:39 PM IST

उदयपुर. योग योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव के 18 दिन बाद आज जलझूलनी ग्यारस एकादशी का पावन पर्व देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. ऐसे में मेवाड़ के प्रसिद्ध धाम चारभुजा मंदिर में भी जलझूलनी एकादशी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. हालांकि इस बार कोरोना संक्रमण के कारण जारी गाइडलाइन के अनुसार आम दर्शनार्थियों को मंदिर में प्रवेश निषेध है.

पढ़ें- भीलवाड़ा के एक गांव को आखिर क्यों कहते हैं ज्योतिष नगरी? भृगु संहिता ने दिलाई खास पहचान

भगवान चारभुजा नाथ मंदिर में सुबह भगवान को शाही स्नान के लिए मुख्य मंदिर से सोने की पालकी में बिठाकर दूध तलाई ले जाया गया. इस दौरान चारभुजा नाथ जी की पालकी के गुजरने वाले मार्ग पर चारों तरफ माहौल गुलाल अबीर से सराबोर रहा. ऐसे में ठाकुर जी का बेवाण दूध तलाई पहुंचा. यहां को प्रभु को स्नान कराया गया. प्रभु चांदी की पालकी में विराजित करके उन्हें निज मंदिर लाया गया. इस दौरान शाही ठाठ बाट के साथ प्रभु मंदिर पहुंचे. पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ पूरी यात्रा निकली. वहीं, कोरोना गाइडलाइन के कारण 15 से 17 सितंबर तक चारभुजा नाथ का मंदिर बंद रखा गया है.

5285 साल पुराना है मंदिर

गोमती नदी किनारे बसा यह मंदिर करीब 5285 साल पुराना माना जाता है. पांडवों के हाथों स्थापित इस मंदिर में कृष्ण का चतुर्भुज स्वरूप विराजित है. यह मंदिर राजसमंद जिला मुख्यालय से करीब 37 किलोमीटर दूरी पर गोमती नदी के तट पर बसा है.

मंदिर के बारे में मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान गोमती नदी के तट पर चारभुजा वाली प्रतिमा की पूजा किया करते थे. इसके बाद इस प्रतिमा को पांडवों ने जलमग्न कर दिया और यहां से चले गए. इसके बाद यह प्रतिमा गंगदेव क्षत्रिय को मिली तो उसने भी इस प्रतिमा की पूजा की और कुछ वर्षों बाद इसे पुन जलमग्न कर दिया. इसके बाद सूरा गुर्जर को स्वप्न में मूर्ति के पानी में होने की बात कही, जिसपर सूरा गुर्जर ने मंदिर को पुनः स्थापित कर इसकी पूजा-अर्चना शुरू की. तभी से मंदिर की पूजा-सेवा गुर्जर समुदाय के पास है.

Jaljulni Ekadashi, Rajasthan News
चारभुजा मंदिर

गुर्जर समुदाय करता है मंदिर की सेवा

बता दें कि मंदिर के पुजारी गुर्जर समाज के 1 हजार परिवार हैं, जिनमें सेवा-पूजा ओसरे के अनुसार बंटी हुई है. ओसरे की परंपरा कुछ ऐसी है कि कुछ परिवारों का ओसरा जीवन में सिर्फ एक बार आता है तो किसी का 48 से 50 साल में तो किसी का 4 साल के अंतराल में भी आ जाता है. हर अमावस्या को ओसरा बदलता है और अगला परिवार का मुखिया पुजारी बनता है. बताया जाता है कि ओसरे का निर्धारण वर्षों पहले गोत्र और परिवारों की संख्या के अनुसार हुआ था जो अभी चला आ रहा है.

हजारों वर्ष पुराना चारभुजा नाथ का यह मंदिर देश-विदेश में विख्यात है. जलझूलनी एकादशी इस मंदिर के सबसे बड़े महोत्सव के रूप में मनाई जाती है. इस दिन गुलाल-अबीर उड़ाते हुए श्रद्धालु कंधों पर सोने और चांदी के पालकियों में प्रभु की बाल प्रतिमा को विराजमान कर दूध तलाई तक ले जाते हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले 2 सालों से आम दर्शनार्थी एकादशी के अवसर पर भगवान का दीदार नहीं कर पा रहे हैं.

उदयपुर. योग योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के जन्म उत्सव के 18 दिन बाद आज जलझूलनी ग्यारस एकादशी का पावन पर्व देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. ऐसे में मेवाड़ के प्रसिद्ध धाम चारभुजा मंदिर में भी जलझूलनी एकादशी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. हालांकि इस बार कोरोना संक्रमण के कारण जारी गाइडलाइन के अनुसार आम दर्शनार्थियों को मंदिर में प्रवेश निषेध है.

पढ़ें- भीलवाड़ा के एक गांव को आखिर क्यों कहते हैं ज्योतिष नगरी? भृगु संहिता ने दिलाई खास पहचान

भगवान चारभुजा नाथ मंदिर में सुबह भगवान को शाही स्नान के लिए मुख्य मंदिर से सोने की पालकी में बिठाकर दूध तलाई ले जाया गया. इस दौरान चारभुजा नाथ जी की पालकी के गुजरने वाले मार्ग पर चारों तरफ माहौल गुलाल अबीर से सराबोर रहा. ऐसे में ठाकुर जी का बेवाण दूध तलाई पहुंचा. यहां को प्रभु को स्नान कराया गया. प्रभु चांदी की पालकी में विराजित करके उन्हें निज मंदिर लाया गया. इस दौरान शाही ठाठ बाट के साथ प्रभु मंदिर पहुंचे. पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ पूरी यात्रा निकली. वहीं, कोरोना गाइडलाइन के कारण 15 से 17 सितंबर तक चारभुजा नाथ का मंदिर बंद रखा गया है.

5285 साल पुराना है मंदिर

गोमती नदी किनारे बसा यह मंदिर करीब 5285 साल पुराना माना जाता है. पांडवों के हाथों स्थापित इस मंदिर में कृष्ण का चतुर्भुज स्वरूप विराजित है. यह मंदिर राजसमंद जिला मुख्यालय से करीब 37 किलोमीटर दूरी पर गोमती नदी के तट पर बसा है.

मंदिर के बारे में मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों ने अपने वनवास के दौरान गोमती नदी के तट पर चारभुजा वाली प्रतिमा की पूजा किया करते थे. इसके बाद इस प्रतिमा को पांडवों ने जलमग्न कर दिया और यहां से चले गए. इसके बाद यह प्रतिमा गंगदेव क्षत्रिय को मिली तो उसने भी इस प्रतिमा की पूजा की और कुछ वर्षों बाद इसे पुन जलमग्न कर दिया. इसके बाद सूरा गुर्जर को स्वप्न में मूर्ति के पानी में होने की बात कही, जिसपर सूरा गुर्जर ने मंदिर को पुनः स्थापित कर इसकी पूजा-अर्चना शुरू की. तभी से मंदिर की पूजा-सेवा गुर्जर समुदाय के पास है.

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चारभुजा मंदिर

गुर्जर समुदाय करता है मंदिर की सेवा

बता दें कि मंदिर के पुजारी गुर्जर समाज के 1 हजार परिवार हैं, जिनमें सेवा-पूजा ओसरे के अनुसार बंटी हुई है. ओसरे की परंपरा कुछ ऐसी है कि कुछ परिवारों का ओसरा जीवन में सिर्फ एक बार आता है तो किसी का 48 से 50 साल में तो किसी का 4 साल के अंतराल में भी आ जाता है. हर अमावस्या को ओसरा बदलता है और अगला परिवार का मुखिया पुजारी बनता है. बताया जाता है कि ओसरे का निर्धारण वर्षों पहले गोत्र और परिवारों की संख्या के अनुसार हुआ था जो अभी चला आ रहा है.

हजारों वर्ष पुराना चारभुजा नाथ का यह मंदिर देश-विदेश में विख्यात है. जलझूलनी एकादशी इस मंदिर के सबसे बड़े महोत्सव के रूप में मनाई जाती है. इस दिन गुलाल-अबीर उड़ाते हुए श्रद्धालु कंधों पर सोने और चांदी के पालकियों में प्रभु की बाल प्रतिमा को विराजमान कर दूध तलाई तक ले जाते हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से पिछले 2 सालों से आम दर्शनार्थी एकादशी के अवसर पर भगवान का दीदार नहीं कर पा रहे हैं.

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