आज राजस्थान की नहरों में जो 'काला जहर' पहुंच रहा है. उसका मुख्य स्रोत है पंजाब के लुधियाना शहर का बुढ़ा नाला. इसी नाले में पंजाब की कई डाइंग फैक्ट्रियां अपना औद्योगिक अपशिष्ट छोड़ती हैं. इसके अलावा शहरी क्षेत्र से जब ये नाला गुजरता है तो इसमें सीवरेज के पानी, कैमिकल युक्त दूषित पानी से लेकर तमाम गंदगी छोड़ी जाती है. इसकी सच्चाई अगर आप अपनी आंखों से देख लेंगे तो शायद इस पानी को पीना ही छोड़ देंगे.
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पंजाब का यह बूढ़ा नाला लुधियाना के माछिवाड़ा से शुरू होते हुए वलिपुर में खत्म होता है. यह नाला शहरभर में 60 किलोमीटर की यात्रा भी करता है. इस बीच लुधियाना शहर की गंदगी को समेटते हुए यह नाला वलिपुर में सतलुज नदी में मिल जाता है. बताया जाता है कि 1963 में बुढ़ा नाला में मछली की 54 किस्में पाई जाती थी लेकिन गंदगी के चलते 1984 तक सब विलुप्त हो गई.
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लुधियाना शहर में 1100 इलेक्ट्रो प्लेटिंग और 250 के करीब डाइंग फैक्ट्रियां हैं. जिनका सीधा अपशिष्ट बुढ़ा नाला के जरिए सतलुज में जा रहा है. इतना ही नहीं अकेले लुधियाना शहर के आस पास ही 20 ऐसे प्वाइंट हैं जहां से सीवरेज का पानी सीधे ही सतलुज नदी में छोड़ा जा रहा है. तो अब आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि किस कदर सतलुज नदी का पानी पंजाब में गंदा किया जा रहा है.
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हमारे संवाददाता ने सतलुज नदी के उस प्वाइंट पर भी जाकर देखा जहां यह बूढ़ा नाला उसमें मिलता है. हकीकत देखी तो दंग रह गए. आप भी देखिए सतलुज नदी में पानी के दो रंग कैसे साफ देखे जा सकते हैं. कैसे एक सफेद, स्वच्छ और निर्मल नदी में जहरीला काला पानी मिलकर उसे गंदा कर रहा है. नदी में मिलने वाला ये 'काला पानी' एक लंबा सफर तय करते हुए हरिके डेम तक पहुंचता है जहां से राजस्थान जाने वाली नहरों की शुरूआत होती है.
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पहली नहर इंदिरा गांधी जो हरिके डैम से निकलती है और हरियाणा होते हुए हनुमानगढ़ के रास्ते राजस्थान में प्रवेश करती है. दूसरी नहर गंग कैनाल जो फिरोजपुर डैम से निकलती है. इस बीच ये काला पानी पंजाब के भी 6 जिलों को भी अपने आगोश में ले लेता है. यानी इस काले पानी का प्रभाव राजस्थान ही नहीं पंजाब पर भी है. पंजाब के लाखों लोग इस दूषित पानी का शिकार हो रहे हैं.