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श्रीगंगानगर में देखने को मिली होली की धूम

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Published : Mar 9, 2020, 8:13 PM IST

श्रीगंगानगर में सोमवार को होली पर्व की धूम देखने को मिली. इस दिन महिलाएं घर से सज-धज कर निकलती है और होलिका दहन की पूजन करती है. इसके अगले दिन हम अपने प्रियजनों को रंग लगाकर त्यौहार की शुभकामनाएं देते हैं. साथ ही नाच गान और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ इस पर्व का मजा लेते हैं.

Sriganganagar news, श्रीगंगानगर की खबर
होलिका दहन का पर्व

श्रीगंगानगर. देशभर के तरह श्रीगंगानगर में भी होली के पर्व की धूम देखने को मिल रही हैं. इसको लेकर शहर में जगह-जगह होलिका बनाकर महिलाओं की ओर से होली का पूजन किया जा रहा है. पौराणिक कथा के अनुसार शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था और चाहता था कि हर कोई भगवान की तरह उसकी पूजा करें.

होलिका दहन का पर्व

वहीं, अपने पिता के आदेश का पालन नहीं करते हुए हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करनी शुरू कर दी. इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी, जिनसे से हमेशा बच जाता था.

पढ़ें- श्रीगंगानगर : युवक और युवती ने ट्रेन के आगे कूदकर की आत्महत्या

इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई कि वह प्रहलाद के साथ अग्नि में बैठेगी. होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था, जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता. वहीं, दूसरी ओर प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी नहीं था. जैसे ही आग जली वैसे ही वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर पहलाद के ऊपर चला गया. इस तरह प्रहलाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका आग में जल गई. यही कारण है कि होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता हैं.

इसी के चलते होलिका दहन के दिन एक पवित्र अग्नि जलाई जाती है, जिसमें सभी तरह की बुराई, अहंकार और नकारात्मकता को जलाया जाता हैं. इसके अगले दिन हम अपने प्रियजनों को रंग लगाकर त्यौहार की शुभकामनाएं देते हैं. साथ ही नाच गान और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ इस पर्व का मजा लेते हैं. इसके साथ ही सड़कों पर गुलाबी, पीला, हरा और लाल रंग बिखरा दिखाई देता है.

श्रीगंगानगर. देशभर के तरह श्रीगंगानगर में भी होली के पर्व की धूम देखने को मिल रही हैं. इसको लेकर शहर में जगह-जगह होलिका बनाकर महिलाओं की ओर से होली का पूजन किया जा रहा है. पौराणिक कथा के अनुसार शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था और चाहता था कि हर कोई भगवान की तरह उसकी पूजा करें.

होलिका दहन का पर्व

वहीं, अपने पिता के आदेश का पालन नहीं करते हुए हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करनी शुरू कर दी. इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी, जिनसे से हमेशा बच जाता था.

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इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई कि वह प्रहलाद के साथ अग्नि में बैठेगी. होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था, जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता. वहीं, दूसरी ओर प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी नहीं था. जैसे ही आग जली वैसे ही वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर पहलाद के ऊपर चला गया. इस तरह प्रहलाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका आग में जल गई. यही कारण है कि होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता हैं.

इसी के चलते होलिका दहन के दिन एक पवित्र अग्नि जलाई जाती है, जिसमें सभी तरह की बुराई, अहंकार और नकारात्मकता को जलाया जाता हैं. इसके अगले दिन हम अपने प्रियजनों को रंग लगाकर त्यौहार की शुभकामनाएं देते हैं. साथ ही नाच गान और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ इस पर्व का मजा लेते हैं. इसके साथ ही सड़कों पर गुलाबी, पीला, हरा और लाल रंग बिखरा दिखाई देता है.

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