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श्रीगंगानगर: गोदारा कन्या महाविद्यालय की क्रिकेट टीम पिछले 16 सालों में एक बार भी नहीं जीत पाई ट्रॉफी - cricket match

श्रीगंगानगर के एकमात्र सबसे बड़े बल्लूराम गोदारा कन्या महाविद्यालय की क्रिकेट टीम विश्वविद्यालय द्वारा हर साल करवाई जाने वाली प्रतियोगिता में एक बार भी जीत नहीं पाई है. वहीं कोच का कहना है कि बच्चे क्रिकेट खेलना पसंद नहीं करते, जिससे टीम जीत नहीं पाती है.

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गोदारा कन्या महाविद्यालय की क्रिकेट टीम पिछले 16 सालों में एक बार भी नहीं जीत पाई ट्रॉफी
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Published : Dec 14, 2019, 12:17 PM IST

श्रीगंगानगर. लंबा-चौड़ा खेल मैदान और सरकार द्वारा लाखों रुपए का बजट खर्च और तमाम प्रकार की सरकारी खेल सुविधाएं श्रीगंगानगर के एकमात्र सबसे बड़े बल्लूराम गोदारा कन्या महाविद्यालय की क्रिकेट टीम को दी गयी हैं. इसके बावजूद भी यह टीम विश्वविद्यालय की ओर से हर साल करवाई जाने वाली प्रतियोगिता में एक बार भी जीत नहीं पाई है.

वहीं इस बारे में जब कोच सिसोदिया से बात की गई तो उन्होंने बताया कि बच्चे क्रिकेट खेलना पसंद नहीं करते हैं, तभी टीम जीत नहीं पाती है. मैच से 15 दिन पहले बच्चे अभ्यास करने आते हैं. जिससे वह जीत नहीं पाते.

गोदारा कन्या महाविद्यालय की क्रिकेट टीम पिछले 16 सालों में एक बार भी नहीं जीत पाई ट्रॉफी

ऐसा नहीं है कि महाविद्यालय में किसी प्रकार की खेल सामग्री की कमी है. यहां खिलाड़ियों को अभ्यास करने के लिए लंबे चौड़े खेल मैदान के अलावा सरकार द्वारा दी जाने वाली खेल सामग्री पर्याप्त रूप से मौजूद है. लेकिन फिर भी जहां की टीम विश्वविद्यालय द्वारा हर साल करवाई जाने वाली प्रतियोगिता में पिछले 16 साल में एक बार भी ट्रॉफी नहीं जीत पाई है.

यह भी पढे़ं : Special: यहां 'बेखौफ' खनन माफिया, 240 दिनों में 94 बार हुआ विभाग की टीम पर हमला

आपको बता दें कि दूसरी तरफ शहर का एक निजी जैन कॉलेज हर बार बेहतर प्रदर्शन करके अब तक 8 बार फाइनल मैच जीत कर ट्रॉफी पर कब्जा कर चुका है. अब ऐसे में बल्लूराम गोदारा कन्या महाविद्यालय की क्रिकेट टीम को लेकर यह सवाल उठता है कि पिछले 16 सालों में एक बार भी ऐसे खिलाड़ी नहीं आये जो टीम को ट्रॉफी दिला सकें.

श्रीगंगानगर. लंबा-चौड़ा खेल मैदान और सरकार द्वारा लाखों रुपए का बजट खर्च और तमाम प्रकार की सरकारी खेल सुविधाएं श्रीगंगानगर के एकमात्र सबसे बड़े बल्लूराम गोदारा कन्या महाविद्यालय की क्रिकेट टीम को दी गयी हैं. इसके बावजूद भी यह टीम विश्वविद्यालय की ओर से हर साल करवाई जाने वाली प्रतियोगिता में एक बार भी जीत नहीं पाई है.

वहीं इस बारे में जब कोच सिसोदिया से बात की गई तो उन्होंने बताया कि बच्चे क्रिकेट खेलना पसंद नहीं करते हैं, तभी टीम जीत नहीं पाती है. मैच से 15 दिन पहले बच्चे अभ्यास करने आते हैं. जिससे वह जीत नहीं पाते.

गोदारा कन्या महाविद्यालय की क्रिकेट टीम पिछले 16 सालों में एक बार भी नहीं जीत पाई ट्रॉफी

ऐसा नहीं है कि महाविद्यालय में किसी प्रकार की खेल सामग्री की कमी है. यहां खिलाड़ियों को अभ्यास करने के लिए लंबे चौड़े खेल मैदान के अलावा सरकार द्वारा दी जाने वाली खेल सामग्री पर्याप्त रूप से मौजूद है. लेकिन फिर भी जहां की टीम विश्वविद्यालय द्वारा हर साल करवाई जाने वाली प्रतियोगिता में पिछले 16 साल में एक बार भी ट्रॉफी नहीं जीत पाई है.

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आपको बता दें कि दूसरी तरफ शहर का एक निजी जैन कॉलेज हर बार बेहतर प्रदर्शन करके अब तक 8 बार फाइनल मैच जीत कर ट्रॉफी पर कब्जा कर चुका है. अब ऐसे में बल्लूराम गोदारा कन्या महाविद्यालय की क्रिकेट टीम को लेकर यह सवाल उठता है कि पिछले 16 सालों में एक बार भी ऐसे खिलाड़ी नहीं आये जो टीम को ट्रॉफी दिला सकें.

Intro:श्रीगंगानगर : लंबा-चौड़ा खेल मैदान और सरकार द्वारा लाखों रुपए का बजट खर्च व तमाम प्रकार की सरकारी खेल सुविधाएं होने के बावजूद अगर 16 साल में एक बार भी टीम फाइनल मैच नहीं जीत पाए तो ना केवल कोच पर सवाल खड़े होंगे बल्कि सरकारी तंत्र नकारा होने का इससे बड़ा कोई उदाहरण पेश नहीं होगा। जी हां हम बात कर रहे हैं श्रीगंगानगर जिले के एकमात्र सबसे बड़े बल्लूराम गोदारा कन्या महाविद्यालय क्रिकेट टीम की जिसने विश्वविद्यालय द्वारा हर साल करवाई जाने वाली प्रतियोगिता में पिछले 16 साल में एक बार भी ट्राफी नहीं जीत पाई है। कैमरे के सामने बड़ी बेबाकी से बोलते महाविद्यालय कोच भीम सिंह सिसोदिया अपनी 16 साल की नाकामयाबी का ऐसे बखान कर रहे हैं जैसे प्रतियोगिता में हर बार हारकर उन्होंने महाविद्यालय को बहुत बड़ा तोहफा दिया हो।


Body:ऐसा नहीं है कि महाविद्यालय में किसी प्रकार की खेल सामग्री की कमी है।यहां खिलाड़ियों को अभ्यास करने के लिए लंबे चौड़े खेल मैदान के अलावा सरकार द्वारा दी जाने वाली खेल सामग्री पुर्णरुप से है। ऐसे में अगर किसी प्रकार की कमी रहती है तो वह कोच की इच्छाशक्ति व खिलाड़ियों को मैदान में तराशने की है। कोच भीम सिंह सिसोदिया भले अपनी गलती छुपाने के लिए खेल में खिलाड़ियों की रुचि नहीं होने की बात कहते हुए प्रतिभाओं को तराशने के बजाय उन पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।कोच सिसोदिया की लड़खड़ाती जुबान बता रही है कि वह अपनी गलती पर पर्दा डालने के लिए खिलाड़ियों पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं। वे कहते हैं कि बच्चे क्रिकेट खेलना पसंद नहीं करते हैं तभी टीम जीत नहीं पाती है। मगर कोच यह नहीं बता रहे है कि जब हर साल क्रिकेट टीम प्रतियोगिता में उतरती है तो बगैर खेले ही टीम कैसे बन जाती है। मतलब साफ खुद की गलती छुपाने के लिए खिलाड़ियों पर ही हार का ठीकरा हर साल कोच भीम सिंह सिसोदिया द्वारा फोड़ा जाता है। ऐसे में क्या पिछले 16 सालों में एक बार भी ऐसे खिलाड़ी नहीं आये जो टीम को ट्रॉफी दिला सके। हक्किकत में ऐसा नहीं है। प्रतिभाएं तो बहुत आई मगर उन्हें निखारने का माद्दा कोच सिसोदिया व सरकारी तंत्र में नजर नहीं आया,तभी क्रिकेट में हर बार गोदारा महाविद्यालय को असफलता ही मिली।ऐसे में सबसे बड़े महाविद्यालय पर तब तमाचा और लग जाता है जब शहर के ही एक छोटे से निजी जैन कॉलेज हर बार बेहतर प्रदर्शन करके अब तक 8 बार फाइनल मैच जीत कर ट्राफी पर कब्जा किया है।

बाइट : भीम सिंह सिसोदिया,कोच,गोदारा महाविद्यालय।
बाईट : विक्रम,कोच,निजी जेन महाविद्यालय।


Conclusion:सरकारी तंत्र पर सवाल?
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