सीकर. क्षय रोग को जड़ से खत्म करने के लिए केंद्र सरकार और डब्ल्यूएचओ लगातार प्रयासरत हैं. इलाज संभव है, लेकिन यह बीमारी काफी समय से पीछा नहीं छोड़ रही है. हालांकि भारत सरकार ने साल 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा यह है कि मरीजों की पहचान ही नहीं हो पाती.
खासतौर पर उन मरीजों की पहचान सबसे कठिन होती है, जिनका इलाज निजी अस्पतालों में चलता है. निजी अस्पतालों में आने वाले मरीजों की पहचान के लिए सीकर में स्वास्थ्य विभाग ने अलग से प्रयास किए हैं और बहुत ही कम संसाधनों के बाद भी सीकर जिला प्रदेश में पहले नंबर पर रहा है.
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क्या कहता हैं सरकारी आंकाड़ा...
सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो देश में साल 2025 तक टीबी की बीमारी को जड़ से खत्म करने का दावा किया गया है. इसलिए सरकार और डब्ल्यूएचओ के निर्देश हैं कि टीबी के ज्यादा से ज्यादा मरीजों की पहचान की जाए. टीबी के मरीजों की जांच में सबसे बड़ी परेशानी यह है कि जिले स्तर पर एक-एक मशीन जांच के लिए है, जिसमें 2 घंटे में केवल 4 मरीजों की जांच हो पाती है.
इसलिए रोज अस्पताल में केवल 16 से 20 लोगों की जांच ही मुमकिन होती है. लेकिन सीकर में क्षय रोग विभाग लगातार दो से तीन शिफ्ट में जांच करवा रहा है. साथ ही साथ निजी अस्पतालों को जोड़ा गया है और वहां आने वाले हर संदिग्ध मरीज की सरकारी जांच केंद्र में लाकर जांच की जा रही है.
प्रदेश में पहले नंबर पर सीकर...
निजी अस्पतालों में आने वाले मरीजों में टीबी की जांच को लेकर सीकर जिला प्रदेश में पहले पायदान पर है. पिछले 1 साल में निजी अस्पतालों में आने वाले मरीजों की 20 प्रतिशत जांच अकेले सीकर जिले में की गई है. पिछले 1 साल में जिले में करीब 8 हजार मरीजों की जांच की गई, जिनमें से 42 प्रतिशत टीबी के रोगी मिले.