सीकर. गहलोत सरकार की फ्लैगशिप योजना के तहत शुरू की गई इंदिरा रसोई को सरकार का जनहित के लिए ड्रीम प्रोजेक्ट माना जा रहा है. प्रदेश में पहले से चल रही अन्नपूर्णा रसोई योजना को बंद कर इंदिरा रसोई की शुरुआत की गई है. इसमें फर्क सिर्फ यह है कि इंदिरा रसोई एक जगह भवन में संचालित की जा रही है जबकि अन्नपूर्णा रसोई गाड़ी में चलती थी और गली-गली में घूम-घूम कर खाना खिलाया जाता था. इंदिरा रसोई शुरू किए जाने पर कई तरह की चर्चा थी. विपक्ष प्रदेश सरकार पर केवल योजना का नाम बदलने का आरोप लगा रहा था.
पिछले ढाई महीने में इंदिरा रसोई के संचालन की बात की जाए तो कोरोना महामारी के कार्यकाल में यह योजना आमजन के लिए बड़ी राहत बनी है और खासतौर पर उन लोगों के लिए जो बाहर से आकर शहर में काम करते हैं या पढ़ाई कर रहे हैं. सीकर शहर की बात की जाए तो यहां पर तीन इंदिरा रसोई संचालित हैं. 20 अगस्त को प्रदेश भर में एक साथ इंदिरा रसोई योजना की शुरुआत हुई थी. सीकर शहर में दो रसोई उसी दिन शुरू कर दी गई थी और एक रसोई 31 अगस्त को शुरू हुई थी. शहर में कल्याण सर्किल, बस डिपो के पास और सालासर स्टैंड इलाके में एक-एक इंदिरा रसोई चल रही है.
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अब तक 70 हजार ने खाया खाना
सीकर शहर की बात करें तो यहां तीनों रसोई में रोजाना 300 से 400 लोग भोजन करने आ रहे हैं. सबसे ज्यादा लोग कल्याण सर्किल की इंदिरा रसोई पहुंच रहे हैं यहां पर अब तक 30,000 लोग खाना खा चुके हैं. जबकि दो अन्य जगह में अब तक 20-20 हजार लोगों ने खाना खाया है. इस तरह कोरोना काल में करीब 70,000 लोग इसका लाभ ले चुके हैं.
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खाने की क्वालिटी अच्छी, फर्जीवाड़ा भी नहीं हो सकता
कई लोग ऐसे हैं जो बाहर से आकर शहर में रह रहे हैं और रोज इंदिरा रसोई में ही खाना खाते हैं. यहां उन्हें सिर्फ 8 रुपये में उन्हें खाना मिल जाता है. यहां रोज खाना खाने वाले लोगों का कहना है कि खाने की क्वालिटी बहुत अच्छी है और दूसरी बात यह कि यहां खाने वालों के आंकड़ों में फर्जीवाड़ा नहीं किया जा सकता. यहां का पूरा सिस्टम ऑनलाइन है और टोकन लेने के बाद वहां आने वाले की कंप्यूटर से फोटो भी ली जाती है और उसे सिस्टम पर अपलोड किया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है कि रसोई संचालन करने वाले आंकड़ों में हेरफेर न कर सकें. अन्नपूर्णा रसोई में खाना खाने वाले को इतनी फॉर्मेलिटी नहीं करनी पड़ती थी.