नागौर. देशभर में आज धनतेरस का त्योहार मनाया जा रहा है. आज से ही दीपोत्सव का आगाज भी हो गया है. धनतेरस के मौके पर भगवान आयुर्वेद के आदिपुरुष के रूप में भगवान धन्वंतरि की पूजा की जा रही है. शाम को दीपदान किया जाएगा. इस दिन सोने-चांदी या सुख-समृद्धि से जुड़ी वस्तुएं खरीदने की परंपरा है, लेकिन नागौर में धनतेरस पर एक अनूठा रिवाज है. यहां धनतेरस के दिन महिलाएं सुबह किसी तालाब के किनारे जाकर वहां की मिट्टी की पूजा करती हैं. इसके बाद मिट्टी के लड्डू बनाकर कलश या टोकरी में रखकर मिट्टी घर लाती है.
इस मिट्टी को दिवाली पर होने वाली लक्ष्मी पूजा में रखकर इसकी भी पूजा की जाती है. फिर सालभर यह मिट्टी घर में पवित्र स्थान पर रखकर नियमित रूप से इसकी भी पूजा की जाती है. अगले साल घर में रखी मिट्टी को प्रवाहित किया जाता है और नई मिट्टी लेकर यही प्रक्रिया दोहराई जाती है. यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है.
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बुजुर्ग महिलाएं बताती हैं कि उनके परिवार में यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है और नई पीढ़ी भी उसी रूप में इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है. महिलाओं का कहना है कि धनतेरस के दिन सुबह जल्दी उठकर महिलाएं पारंपरिक वस्त्र और आभूषण पहनकर समूह में शहर के किसी तालाब की पाल पर पहुंचती हैं.
इस दौरान महिलाएं मंगलगीत गाती हैं. तालाब की पाल पर पहुंचकर किसी साफ सुथरी जगह पर बैठकर महिलाएं मिट्टी की पूजा करती हैं. इसके बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की कथा सुनती हैं, फिर कलश या टोकरी में मिट्टी को भरकर इस कलश या टोकरी को महिलाएं सिर पर धारण कर घर के लिए रवाना हो जाती हैं. रास्ते में भी महिलाएं मंगलगीत गाती हुई चलती हैं.
तालाब की पाल की इस पवित्र मिट्टी को घर लाकर रखा जाता है. दीपावली पर होने वाली लक्ष्मी पूजा में भी मिट्टी से भरी टोकरी या कलश को रखा जाता है और इसकी भी पूजा होती है. इसके बाद इस कलश या टोकरी को किसी साफ-सुथरी जगह रखा जाता है. जहां यह पूरे साल रखा रहता है. अगले साल पुरानी मिट्टी को प्रवाहित कर नई मिट्टी घर लाई जाती है. मान्यता है कि इससे घर में सुख-समृद्धि आती है और माता लक्ष्मी की कृपा पूरे साल बनी रहती है.
इस साल कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए महिलाएं मास्क पहनकर तालाब की मिट्टी लेने पहुंची और उचित दूरी रखकर इस परंपरा का निर्वहन किया. महिलाओं का कहना है कि घर, परिवार के साथ ही देश की तरक्की और उन्नति के लिए भी माता लक्ष्मी और भगवान गणेश से प्रार्थना की. इसके साथ ही महामारी से रक्षा और इस भयानक महामारी को जल्द खत्म करने की भी प्रार्थना की गई.
कई महिलाओं ने मोबाइल पर सुनी धनतेरस की कथा
आमतौर पर किसी भी परिवार की बुजुर्ग महिलाएं और बहुएं साथ-साथ तालाब की पाल पर मिट्टी लेने पहुंचती हैं. जहां बुजुर्ग महिलाएं धनतेरस की कथा सुनाती हैं. इस मौके पर बुजुर्ग महिलाओं के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेने की भी परंपरा है. हालांकि, कई महिलाएं मोबाइल पर भी धनतेरस की कथा सुनती नजर आई.
धनतेरस पर तालाब की मिट्टी लाकर पूजा करने की यह परंपरा कितनी पुरानी है, इसका कोई सटीक अंदाजा नहीं है. लेकिन बुजुर्ग महिलाओं का कहना है कि यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. उन्हें अपने परिवार की बुजुर्ग महिलाओं से यह परंपरा विरासत में मिला है. उन्होंने इसका निर्वहन किया और अब आने वाली पीढ़ी के हाथों में इस परंपरा को सौंप रही हैं.
सामान्य तौर पर तालाब की मिट्टी की पूजा की इस परंपरा को माता लक्ष्मी की कृपा और घर में सुख समृद्धि के लिए निभाया जाता है. महिलाओं का कहना है कि हमारे देश में मिट्टी और धरती को माता के रूप में पूजा जाता है. नागौर की यह परंपरा भी इसी मान्यता को प्रगाढ़ करती हुई प्रतीत होती है.
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नागौर कृषि प्रधान जिला है और किसान के लिए मिट्टी और जमीन ही उसकी असली संपत्ति मानी जाती है. इसी मिट्टी में किसान फसल उगाकर अनाज पैदा करता है और अपना और लोगों का पेट भरता है. इस लिहाज से भी नागौर की यह परंपरा अपने आप में अनूठा संदेश देती है. इसके साथ ही नागौर राजस्थान के उन जिलों में शामिल है. जहां आमतौर पर बारिश कम होती है और कभी तालाब पीने के पानी का एकमात्र स्रोत होते थे. ऐसे में तालाब के किनारे की मिट्टी घर लाकर उसकी लक्ष्मी रूप में पूजा करने की यह परंपरा जल और पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है.