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Special: खादी पड़ेगी जेब पर भारी...गहलोत सरकार ने घटा दी रियायतें - Nagaur News

किसी जमाने में नेताओं का पहनावा मानी जाने वाली खादी बीते कुछ सालों में आमजन और खासतौर पर युवाओं में काफी पसंद की जाने लगी है, लेकिन इस साल खादी आमजन की जेब पर भी भारी पड़ रही है. क्योंकि राज्य सरकार ने खादी से बने उत्पादों पर दी जाने वाली छूट को घटाकर सिर्फ पांच फीसदी कर दिया है. सरकार के इस फैसले से नागौर के खादी उद्योग और आमजन की जेब पर कितना असर पड़ रहा है. देखिए खास रिपोर्ट....

Khadi will be expensive due to cut in rebate
छूट में कटौती से महंगी होगी खादी
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Published : Oct 30, 2020, 8:06 PM IST

नागौर. खादी कभी देश के राजनेताओं की पहचान हुआ करती थी. आज भी राजनीति के पर्याय के रूप में 'खादी' को देखा जाता है, लेकिन बीते कुछ सालों में खादी से बने कपड़े आमजन और खासतौर पर युवाओं में काफी लोकप्रिय हुए हैं. खादी को ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने के लिए उसे फैशनेबुल और ट्रेंडी भी बनाया गया था, जिससे युवा वर्ग भी इसकी ओर आकर्षित हुआ. खादी के कुर्ते और जैकेट हर मौसम में पहने जा रहे हैं, लेकिन इस साल आमजन की जेब पर खादी भारी पड़ने वाली है.

छूट में कटौती से महंगी होगी खादी...

ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार ने खादी उत्पादों की खरीद पर दी जाने वाली छूट को घटा दिया है. इसके साथ ही खादी की खरीद पर दी जाने वाली छूट की समय अवधि को भी कम कर दिया है. ऐसे में आम जनता के लिए खादी उत्पादों की खरीदारी करना महंगा साबित हो रहा है. मांग घटने की आशंका से खादी ग्रामोद्योग से जुड़े लोग भी चिंतित हैं. माना जा रहा है कि छूट की राशि और समय अवधि कम करने से खादी की खरीद के प्रति कुछ साल से जो लोगों में रुझान बढ़ा है वह भी कम होने लगेगा. ऐसे में खादी उत्पादों की खरीद में भी कमी आएगी. इसका असर नागौर में खादी ग्रामोद्योग से जुड़े करीब 1500 कर्मचारियों पर भी पड़ सकता है.

Sale of Khadi wi;; be influenced
खादी की बिक्री पर पड़ेगा असर...

यह भी पढ़ें: SPECIAL: उत्तर पश्चिम रेलवे ने ट्रेनों की बोगियों को बदलकर बनाये 266 आइसोलेशन वार्ड, बाकी यार्ड में खा रहे धूल

सरकार ने घटा दी रियायतें...

नागौर खादी ग्रामोद्योग संघ के अध्यक्ष अर्जुनदास बताते हैं कि खादी उत्पाद बनाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से कुल 15 फीसदी रियायत दी जाती है. जबकि इसकी खरीद पर पिछले साल राज्य सरकार ने 35 फीसदी रियायत दी थी, जिसे घटाकर महज पांच फीसदी कर दी गई है. ऐसे में देखा जाए तो बीते साल तक खादी के उत्पादों पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली रियायत 50 फीसदी होती थी, लेकिन इस साल महज 20 फीसदी ही होगी.

khadi purchasing will be costly
खादी की खरीदारी होगी महंगी...

अक्टूबर से दिसंबर तक ही छूट...

अध्यक्ष अर्जुनदास बताते हैं कि बीते साल तक सरकार ने 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती से 31 मार्च तक खादी उत्पादों की खरीद पर छूट दी थी, जबकि इस साल छूट की अवधि 02 अक्टूबर से 31 दिसंबर तक ही की गई है. उनका कहना है कि आमतौर पर दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में सर्दी बढ़ती है और फरवरी तक रहती है. इसी अवधि में खादी के शॉल और जैकेट जैसे उत्पादों की खरीद ज्यादा होती है. लेकिन सरकार के दिसंबर तक ही रियायत देने के आदेश के बाद जनवरी और फरवरी में खादी की खरीद करना आमजन के लिए महंगा हो जाएगा. ऐसे में बिक्री कम होने की संभावना है.

old stock of khadi
खादी का पुराना स्टॉक

यह भी पढ़ें: Special: सरकारी भवन की दीवारें और चौराहे देंगे कोरोना से बचाव के संदेश, मेवाड़ शैली में की जाएगी चित्रकारी

उनका यह भी कहना है कि यदि बिक्री कम होगी तो खादी के उत्पादों को गोदाम में रखना और उनका सारसंभाल करना भी भारी पड़ेगा. इसके साथ ही कीड़े लगने की संभावना भी इन उत्पादों में ज्यादा रहती है. यदि ऐसा हुआ तो मुनाफे की जगह घाटा होने की संभावना ज्यादा है. उनका यह भी कहना है कि सरकार की ओर से दी जाने वाली छूट के कारण खादी के उत्पाद ग्राहकों को सस्ते मिलते हैं. पहले जब छूट ज्यादा थी तो खादी के उत्पाद प्रतिस्पर्धा वाले बाजार में अपनी जगह बनाए हुए थे. लेकिन अब छूट कम होने से अन्य उत्पादों की तुलना में खादी के उत्पाद महंगे मिलेंगे और जनता का इनके प्रति रुझान कम होगा.

Sale of Khadi wi;; be influenced
खादी की बिक्री पर पड़ेगा असर...

छिनेगा बुनकरों का रोजगार...

नागौर खादी ग्रामोद्योग संघ के सचिव त्रिलोकराम बताते हैं कि जिले में करीब 1500 लोग कुटीर उद्योग के रूप में खादी उत्पाद बनाने से जुड़े हैं. इनमें करीब 1200-1300 लोग कताई के काम से जुड़े हुए हैं. इन्हें कतवारिया कहा जाता है. इनमें अधिकतर महिलाएं हैं, जो घर पर रहकर कताई का काम करती हैं और इससे मिलने वाली राशि से अपना घर चलाती हैं. जबकि जिलेभर में करीब 100 बुनकर हैं, जो सूत से उत्पाद बनाने का काम करते हैं. साटिका, पांचौड़ी, श्रीबालाजी, खींवसर और इनके आसपास के गांवों में कई परिवार खादी ग्रामोद्योग से जुड़े हुए हैं और कताई एवं बुनाई कर अपना परिवार चला रहे हैं. लेकिन जब बाजार में मांग कम होगी तो उत्पाद भी कम बनेंगे और इससे जुड़े लोगों की आजीविका भी प्रभावित होगी.

यह भी पढ़ें: Special: असमंजस में आतिशबाजी कारोबार, पटाखा व्यापारियों को सरकार की गाइडलाइन का इंतजार

खादी ग्रामोद्योग संघ के अध्यक्ष अर्जुनदास बताते हैं कि गत वर्ष की रिबेट की राशि करीब 35 लाख रुपए है. इसमें अब तक महज पांच लाख रुपए का ही भुगतान हुआ है. शेष 30 लाख रुपए अब तक अटके हुए हैं जिस कारण भी उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

राज्य सरकार द्वारा खादी उत्पादों पर रियायत कम करने के फैसले को लेकर एडवोकेट पवन श्रीमाली का कहना है कि आज हर वर्ग के लोगों के बीच खादी की डिमांड है. उनका कहना है कि आज युवा वर्ग में खादी के कुर्ते और जैकेट का खास क्रेज है, लेकिन सरकार ने खादी उत्पादों पर मिलने वाली रियायत कम की है. इससे खादी के उत्पादों की कीमत बढ़ जाएगी. ऐसे में बाजार की प्रतिस्पर्धा में मशीन से बने सस्ते उत्पादों का मुकाबला खादी उत्पाद नहीं कर पाएंगे.

सरकार के इस फैसले पर अनिल गौड़ का कहना है कि प्रदेश में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है, जो कि महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानती है. महात्मा गांधी और खादी एक दूसरे के पूरक रहे हैं. लेकिन सरकार ने रियायत घटाकर खादी का दोहरा नुकसान किया है. उनका कहना है कि बाजार के अन्य सस्ते उत्पादों के मुकाबले खादी के कपड़े महंगे मिलने पर इसकी मांग घटने की आशंका है. मांग घटने का उत्पादन पर भी असर होगा. ऐसे में कोरोना काल के बीच खादी बनाने के काम से जुड़े लोगों को सरकार का यह फैसला बेरोजगारी की तरफ धकेल सकता है. उनका कहना है कि सरकार को रियायत घटानी नहीं चाहिए.

फिलहाल, राज्य सरकार ने खादी की खरीद पर दी जाने वाली रियायत को कम करने के पीछे कोई ठोस वजह नहीं बताई है. लेकिन माना जा रहा है कि कोरोना काल में खर्चे कम करने की अपनी नीति के चलते सरकार ने यह कदम उठाया है. इसका सीधा असर खादी के उत्पाद खरीदने वालों के साथ इसे बनाने वाले बुनकरों और कतवारियों पर भी होगा. कोरोना काल में खादी उत्पादों की बिक्री कम होने से इनका उत्पादन भी कम होगा और इससे जुड़े लोगों की आजीविका भी प्रभावित होगी. ऐसे समय में उनके लिए आजीविका का कोई दूसरा विकल्प तलाशना भी संभव नहीं होगा

नागौर. खादी कभी देश के राजनेताओं की पहचान हुआ करती थी. आज भी राजनीति के पर्याय के रूप में 'खादी' को देखा जाता है, लेकिन बीते कुछ सालों में खादी से बने कपड़े आमजन और खासतौर पर युवाओं में काफी लोकप्रिय हुए हैं. खादी को ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने के लिए उसे फैशनेबुल और ट्रेंडी भी बनाया गया था, जिससे युवा वर्ग भी इसकी ओर आकर्षित हुआ. खादी के कुर्ते और जैकेट हर मौसम में पहने जा रहे हैं, लेकिन इस साल आमजन की जेब पर खादी भारी पड़ने वाली है.

छूट में कटौती से महंगी होगी खादी...

ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार ने खादी उत्पादों की खरीद पर दी जाने वाली छूट को घटा दिया है. इसके साथ ही खादी की खरीद पर दी जाने वाली छूट की समय अवधि को भी कम कर दिया है. ऐसे में आम जनता के लिए खादी उत्पादों की खरीदारी करना महंगा साबित हो रहा है. मांग घटने की आशंका से खादी ग्रामोद्योग से जुड़े लोग भी चिंतित हैं. माना जा रहा है कि छूट की राशि और समय अवधि कम करने से खादी की खरीद के प्रति कुछ साल से जो लोगों में रुझान बढ़ा है वह भी कम होने लगेगा. ऐसे में खादी उत्पादों की खरीद में भी कमी आएगी. इसका असर नागौर में खादी ग्रामोद्योग से जुड़े करीब 1500 कर्मचारियों पर भी पड़ सकता है.

Sale of Khadi wi;; be influenced
खादी की बिक्री पर पड़ेगा असर...

यह भी पढ़ें: SPECIAL: उत्तर पश्चिम रेलवे ने ट्रेनों की बोगियों को बदलकर बनाये 266 आइसोलेशन वार्ड, बाकी यार्ड में खा रहे धूल

सरकार ने घटा दी रियायतें...

नागौर खादी ग्रामोद्योग संघ के अध्यक्ष अर्जुनदास बताते हैं कि खादी उत्पाद बनाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से कुल 15 फीसदी रियायत दी जाती है. जबकि इसकी खरीद पर पिछले साल राज्य सरकार ने 35 फीसदी रियायत दी थी, जिसे घटाकर महज पांच फीसदी कर दी गई है. ऐसे में देखा जाए तो बीते साल तक खादी के उत्पादों पर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली रियायत 50 फीसदी होती थी, लेकिन इस साल महज 20 फीसदी ही होगी.

khadi purchasing will be costly
खादी की खरीदारी होगी महंगी...

अक्टूबर से दिसंबर तक ही छूट...

अध्यक्ष अर्जुनदास बताते हैं कि बीते साल तक सरकार ने 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती से 31 मार्च तक खादी उत्पादों की खरीद पर छूट दी थी, जबकि इस साल छूट की अवधि 02 अक्टूबर से 31 दिसंबर तक ही की गई है. उनका कहना है कि आमतौर पर दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में सर्दी बढ़ती है और फरवरी तक रहती है. इसी अवधि में खादी के शॉल और जैकेट जैसे उत्पादों की खरीद ज्यादा होती है. लेकिन सरकार के दिसंबर तक ही रियायत देने के आदेश के बाद जनवरी और फरवरी में खादी की खरीद करना आमजन के लिए महंगा हो जाएगा. ऐसे में बिक्री कम होने की संभावना है.

old stock of khadi
खादी का पुराना स्टॉक

यह भी पढ़ें: Special: सरकारी भवन की दीवारें और चौराहे देंगे कोरोना से बचाव के संदेश, मेवाड़ शैली में की जाएगी चित्रकारी

उनका यह भी कहना है कि यदि बिक्री कम होगी तो खादी के उत्पादों को गोदाम में रखना और उनका सारसंभाल करना भी भारी पड़ेगा. इसके साथ ही कीड़े लगने की संभावना भी इन उत्पादों में ज्यादा रहती है. यदि ऐसा हुआ तो मुनाफे की जगह घाटा होने की संभावना ज्यादा है. उनका यह भी कहना है कि सरकार की ओर से दी जाने वाली छूट के कारण खादी के उत्पाद ग्राहकों को सस्ते मिलते हैं. पहले जब छूट ज्यादा थी तो खादी के उत्पाद प्रतिस्पर्धा वाले बाजार में अपनी जगह बनाए हुए थे. लेकिन अब छूट कम होने से अन्य उत्पादों की तुलना में खादी के उत्पाद महंगे मिलेंगे और जनता का इनके प्रति रुझान कम होगा.

Sale of Khadi wi;; be influenced
खादी की बिक्री पर पड़ेगा असर...

छिनेगा बुनकरों का रोजगार...

नागौर खादी ग्रामोद्योग संघ के सचिव त्रिलोकराम बताते हैं कि जिले में करीब 1500 लोग कुटीर उद्योग के रूप में खादी उत्पाद बनाने से जुड़े हैं. इनमें करीब 1200-1300 लोग कताई के काम से जुड़े हुए हैं. इन्हें कतवारिया कहा जाता है. इनमें अधिकतर महिलाएं हैं, जो घर पर रहकर कताई का काम करती हैं और इससे मिलने वाली राशि से अपना घर चलाती हैं. जबकि जिलेभर में करीब 100 बुनकर हैं, जो सूत से उत्पाद बनाने का काम करते हैं. साटिका, पांचौड़ी, श्रीबालाजी, खींवसर और इनके आसपास के गांवों में कई परिवार खादी ग्रामोद्योग से जुड़े हुए हैं और कताई एवं बुनाई कर अपना परिवार चला रहे हैं. लेकिन जब बाजार में मांग कम होगी तो उत्पाद भी कम बनेंगे और इससे जुड़े लोगों की आजीविका भी प्रभावित होगी.

यह भी पढ़ें: Special: असमंजस में आतिशबाजी कारोबार, पटाखा व्यापारियों को सरकार की गाइडलाइन का इंतजार

खादी ग्रामोद्योग संघ के अध्यक्ष अर्जुनदास बताते हैं कि गत वर्ष की रिबेट की राशि करीब 35 लाख रुपए है. इसमें अब तक महज पांच लाख रुपए का ही भुगतान हुआ है. शेष 30 लाख रुपए अब तक अटके हुए हैं जिस कारण भी उत्पादन प्रभावित हो रहा है.

राज्य सरकार द्वारा खादी उत्पादों पर रियायत कम करने के फैसले को लेकर एडवोकेट पवन श्रीमाली का कहना है कि आज हर वर्ग के लोगों के बीच खादी की डिमांड है. उनका कहना है कि आज युवा वर्ग में खादी के कुर्ते और जैकेट का खास क्रेज है, लेकिन सरकार ने खादी उत्पादों पर मिलने वाली रियायत कम की है. इससे खादी के उत्पादों की कीमत बढ़ जाएगी. ऐसे में बाजार की प्रतिस्पर्धा में मशीन से बने सस्ते उत्पादों का मुकाबला खादी उत्पाद नहीं कर पाएंगे.

सरकार के इस फैसले पर अनिल गौड़ का कहना है कि प्रदेश में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है, जो कि महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानती है. महात्मा गांधी और खादी एक दूसरे के पूरक रहे हैं. लेकिन सरकार ने रियायत घटाकर खादी का दोहरा नुकसान किया है. उनका कहना है कि बाजार के अन्य सस्ते उत्पादों के मुकाबले खादी के कपड़े महंगे मिलने पर इसकी मांग घटने की आशंका है. मांग घटने का उत्पादन पर भी असर होगा. ऐसे में कोरोना काल के बीच खादी बनाने के काम से जुड़े लोगों को सरकार का यह फैसला बेरोजगारी की तरफ धकेल सकता है. उनका कहना है कि सरकार को रियायत घटानी नहीं चाहिए.

फिलहाल, राज्य सरकार ने खादी की खरीद पर दी जाने वाली रियायत को कम करने के पीछे कोई ठोस वजह नहीं बताई है. लेकिन माना जा रहा है कि कोरोना काल में खर्चे कम करने की अपनी नीति के चलते सरकार ने यह कदम उठाया है. इसका सीधा असर खादी के उत्पाद खरीदने वालों के साथ इसे बनाने वाले बुनकरों और कतवारियों पर भी होगा. कोरोना काल में खादी उत्पादों की बिक्री कम होने से इनका उत्पादन भी कम होगा और इससे जुड़े लोगों की आजीविका भी प्रभावित होगी. ऐसे समय में उनके लिए आजीविका का कोई दूसरा विकल्प तलाशना भी संभव नहीं होगा

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