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200 गांवों की लाइफ लाइन कहे जाने वाले नावां अस्पताल बहा रहा बदहाली के आंसू

स्थानीय जनप्रतिनिधियों की बेरुखी का दंश बरसों से झेल रहा है यह अस्पताल. नावां का यह अस्पताल एक रैफरल अस्पताल बन कर रह गया है. लोगों का कहना है कि इस अस्पताल में आपातकालीन सेवाओं की कोई व्यवस्था नहीं है. कई बार चिकित्सालय की बदहाली को दूर करने के लिए मांग कर चुके हैं.

200 गांवों की लाइफ लाइन कहे जाने वाले नावां अस्पताल बहा रहा बदहाली के आंसू
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Published : May 20, 2019, 10:36 PM IST

नावां (नागौर). अस्पताल बनाए जाते हैं बीमारों के इलाज के लिए. लेकिन, जिले में एक ऐसा भी सरकारी अस्पताल है जो खुद ही बीमार है. मामला नावां उपखंड मुख्यालय के सरकारी चिकित्सालय का है. कभी 200 से ज्यादा गांवों के लिए लाइफ़ लाइन के नाम से मशहूर नागौर जिले के नावां उपखंड का 125 साल से भी ज्यादा पुराना राजकीय चिकित्सालय बदहाली के दौर से गुजर रहा है.

200 गांवों की लाइफ लाइन कहे जाने वाले नावां अस्पताल बहा रहा बदहाली के आंसू

अंग्रेजों के शासनकाल में भी यह एक महत्वपूर्ण चिकित्सालय रहा है. लेकिन, जिस प्रकार नावां क्षेत्र, तरक्की कर रहा है, वहीं चिकित्सालय सुविधाओं के अभाव में दिन प्रतिदिन बदहाल होता जा रहा है. चिकित्सालय में रोजाना की ओपीडी 300 से 400 के करीब रहती है. चिकित्सालय में स्त्री रोग विशेषज्ञ, सर्जन व शिशु रोग विशेषज्ञ के अभाव में आमजन को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. दन्त चिकित्सक का पद भी रिक्त है, दन्त चिकित्सा के लिए लगाए गए लाखों रुपए के उपकरण धूल फांकते नजर आ रहे हैं. अस्पताल में एक्सरे मशीन काफी पुरानी है, इससे एक्सरे भी साफ नही आता है.


वहीं, सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को झेलनी पड़ रही है. क्योंकि लंबे समय से यहां महिला चिकित्सक की नियुक्ति नहीं है. और प्रसुताओं के साथ अन्य मरीजों को भी रैफर करना यहां के चिकित्सकों की मजबूरी बन गई है. आरएमआरएस की नियमानुसार एक वर्ष में 4 सभाएं होना निश्चित है, लेकिन यहां 1 वर्ष से ज्यादा का समय हो चला अभी तक एक भी सभा नही हुई.


वहीं, चिकित्सकों के आवास भी जर्जर हो रहे है. नर्सिंग स्टाफ के लिए चिकित्सालय परिसर में पर्याप्त आवास सुविधा नहीं है. नर्सिंग कर्मचारियों का भी आभाव बना हुआ है. नावां में 30 हजार से अधिक स्थानीय आबादी होने के साथ ही आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के 1 लाख से भी अधिक लोग इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर है. जिसमें डॉक्टरों व संसाधनों के अभाव में आमजन को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. स्वीकृत पदों के मुताबिक चिकित्सक, अस्पताल में कार्यरत नहीं होने की वजह से लोगों को बेहतर इलाज के लिए अन्य स्थानों पर जाना पड़ता है.

साथ ही बेहतर चिकित्सा सुविधाए मुहैया ना होने से यहां से मरीजों को दूसरे अस्पतालों के लिए रैफर करना पड़ता है. स्थानीय जनप्रतिनिधियों की बेरुखी का दंश यहां की जनता और ये अस्पताल बरसों से झेलता आ रहा है. नावां का ये अस्पताल एक रैफरल अस्पताल बन कर रह गया है. लोगों का कहना है कि इस अस्पताल में आपातकालीन सेवाओं की कोई व्यवस्था नहीं है. नावां के स्थानीय निवासी कई बार चिकित्सालय की बदहाली को दूर करने के लिए मांग कर चुके हैं. साथ ही सड़कों पर भी उतरे हैं. लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा. नावां मे बड़े पैमाने पर नमक उत्पादन होता है और यहां हजारों की तादाद मे बाहरी प्रदेशों के मजदूर भी काम करते हैं. 200 गांवों की लाइफलाईन रहा नांवा का अस्पताल आज खुद अपनी लाईफ के लिए सरकार की राह तक रहा है.

नावां (नागौर). अस्पताल बनाए जाते हैं बीमारों के इलाज के लिए. लेकिन, जिले में एक ऐसा भी सरकारी अस्पताल है जो खुद ही बीमार है. मामला नावां उपखंड मुख्यालय के सरकारी चिकित्सालय का है. कभी 200 से ज्यादा गांवों के लिए लाइफ़ लाइन के नाम से मशहूर नागौर जिले के नावां उपखंड का 125 साल से भी ज्यादा पुराना राजकीय चिकित्सालय बदहाली के दौर से गुजर रहा है.

200 गांवों की लाइफ लाइन कहे जाने वाले नावां अस्पताल बहा रहा बदहाली के आंसू

अंग्रेजों के शासनकाल में भी यह एक महत्वपूर्ण चिकित्सालय रहा है. लेकिन, जिस प्रकार नावां क्षेत्र, तरक्की कर रहा है, वहीं चिकित्सालय सुविधाओं के अभाव में दिन प्रतिदिन बदहाल होता जा रहा है. चिकित्सालय में रोजाना की ओपीडी 300 से 400 के करीब रहती है. चिकित्सालय में स्त्री रोग विशेषज्ञ, सर्जन व शिशु रोग विशेषज्ञ के अभाव में आमजन को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. दन्त चिकित्सक का पद भी रिक्त है, दन्त चिकित्सा के लिए लगाए गए लाखों रुपए के उपकरण धूल फांकते नजर आ रहे हैं. अस्पताल में एक्सरे मशीन काफी पुरानी है, इससे एक्सरे भी साफ नही आता है.


वहीं, सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को झेलनी पड़ रही है. क्योंकि लंबे समय से यहां महिला चिकित्सक की नियुक्ति नहीं है. और प्रसुताओं के साथ अन्य मरीजों को भी रैफर करना यहां के चिकित्सकों की मजबूरी बन गई है. आरएमआरएस की नियमानुसार एक वर्ष में 4 सभाएं होना निश्चित है, लेकिन यहां 1 वर्ष से ज्यादा का समय हो चला अभी तक एक भी सभा नही हुई.


वहीं, चिकित्सकों के आवास भी जर्जर हो रहे है. नर्सिंग स्टाफ के लिए चिकित्सालय परिसर में पर्याप्त आवास सुविधा नहीं है. नर्सिंग कर्मचारियों का भी आभाव बना हुआ है. नावां में 30 हजार से अधिक स्थानीय आबादी होने के साथ ही आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के 1 लाख से भी अधिक लोग इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर है. जिसमें डॉक्टरों व संसाधनों के अभाव में आमजन को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. स्वीकृत पदों के मुताबिक चिकित्सक, अस्पताल में कार्यरत नहीं होने की वजह से लोगों को बेहतर इलाज के लिए अन्य स्थानों पर जाना पड़ता है.

साथ ही बेहतर चिकित्सा सुविधाए मुहैया ना होने से यहां से मरीजों को दूसरे अस्पतालों के लिए रैफर करना पड़ता है. स्थानीय जनप्रतिनिधियों की बेरुखी का दंश यहां की जनता और ये अस्पताल बरसों से झेलता आ रहा है. नावां का ये अस्पताल एक रैफरल अस्पताल बन कर रह गया है. लोगों का कहना है कि इस अस्पताल में आपातकालीन सेवाओं की कोई व्यवस्था नहीं है. नावां के स्थानीय निवासी कई बार चिकित्सालय की बदहाली को दूर करने के लिए मांग कर चुके हैं. साथ ही सड़कों पर भी उतरे हैं. लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहा. नावां मे बड़े पैमाने पर नमक उत्पादन होता है और यहां हजारों की तादाद मे बाहरी प्रदेशों के मजदूर भी काम करते हैं. 200 गांवों की लाइफलाईन रहा नांवा का अस्पताल आज खुद अपनी लाईफ के लिए सरकार की राह तक रहा है.



-20-05-2019-nawa hospital huya bimaar- अस्पताल जो खुद बीमार

अस्पताल बनाए जाते है बीमारों के इलाज के लिए।  लेकिन हम आपको दिखाते है एक ऐसा अस्पताल जो खुद बीमार है | जीं हां  नागौर जिले में  है एक ऐसा सरकारी अस्पताल जो की खुद ही बीमार है | मामला नावां उपखंड मुख्यालय के सरकारी चिकित्सालय का है । कभी 200 से ज्यादा गाँवों के लिए लाइफ़ लाइन के नाम से मशहूर नागौर जिले के नावां उपखंड का  125 साल से भी ज्यादा पुराना राजकीय चिकित्सालय बदहाली के दौर से गुजर रहा है  । अंग्रेजों के शासनकाल में भी यह एक महत्वपूर्ण चिकित्सालय रहा है। मगर जिस प्रकार नावां क्षेत्र, तरक्की कर रहा है वही चिकित्सालय सुविधाओ के अभाव में दिन ब दिन बदहाल होता नजर आ रहा है।  चिकित्सालय में रोजाना  की ओपीडी 300 से 400 के करीब रहती है। चिकित्सालय में स्त्री रोग विशेषज्ञ, सर्जन  व शिशु रोग विशेषज्ञ के अभाव में आमजन को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दन्त चिकित्सक का पद भी रिक्त है, दन्त चिकित्सा के लिए लगाए गए लाखो रुपये के उपकरण धूल फांकते नजर आ रहे है, । एक्सरे मशीन जो काफी पुरानी है जिससे एक्सरे भी साफ नही आता है लगी हुई , सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को झेलनी पड़ रही है क्योकि लंबे समय से यंहा महिला चिकित्सक की नियुक्ति नही है और प्रसुताओ के साथ अन्य मरीजो की भी रैफर करना यंहा के चिकित्सको की मजबूरी बन गई है ।  आर एम आर एस की नियमानुसार एक वर्ष में 4 सभाए होना निश्चित है, लेकिन यहां 1 वर्ष से ज्यादा का समय हो चला अभी तक एक भी सभा नही हुई।चिकित्सको के आवास भी जर्जर होते नजर आ रहे है। नर्सिंग स्टाफ के लिए चिकित्सालय परिसर में पर्याप्त आवास सुविधा नही होना भी समस्या का कारण है।रजिस्ट्रेशन के लिए कर्मचारी का अभाव है, वही पर्याप्त संख्या ने वार्ड बॉय का अभाव है। इस कारण ,कई बार तो रोगी के जान पर भी बन जाती है। नावा में 30 हजार से अधिक स्थानीय आबादी होने के साथ ही आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के 1 लाख  से भी अधिक लोग इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर है ।  जिसमें डॉक्टरों व संसाधनों के अभाव में आमजन को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।  क्षेत्र से  हाइवे भी गुजरते है तो हादसों में घायल हुए लोगों के अस्पताल में अनेक  सिलसिला भी जारी रहता है । लेकिन स्वीकृत पदो के मुताबिक चिकित्सक ,अस्पताल में कार्यरत नही होने वजह से लोगों को बेहतर इलाज के लिए अन्य स्थानों पर जाना पड़ता है  साथ ही बेहतर चिकित्सा सुविधाए मुहैया ना होने से यहां से मरीजो को दूसरे अस्पतालों के।लिए रेफर करना पड़ता है । स्थानीय जनप्रतिनिधियों की बेरुखी का दंश यहां की जनता और ये अस्पताल बरसो से  झेलते नजर आ रहे है और नावां का ये अस्पताल एक रेफरल अस्पताल बन कर रह गया है ।लोगो का कहना है कि इस अस्पताल मे आपातकालीन सेवाओ की कोई व्यवस्था नही है । नावां के स्थानीय निवासी कई बार  चिकित्साल. की बदहाली को दूर करने के लिए मांग कर चुके है सड़को पर भी उतरे है लेकिन नतीजा वही रहा है ।  नावां मे बड़े पैमाने पर नमक उत्पादन होता है और यंहा हजारो की तादाद मे बाहरी प्रदेशो के मजदूर भी काम करते है । कई बार नमक उत्पादन के काम मे हादसे भी होते है तो हाईवे पर होने के कारण नावां मे दुर्घटनाऐं भी होती है  । 200 गाँवो की लाइफलाईन रहा नांवा का अस्पताल आज खुद अपनी लाईफ के लिए सरकार की राह तक रहा है । 





बाईट रामेश्वर लाल पारीक (स्थानीय निवासी)
बाईट घनश्याम गौड़ (नेता प्रतिपक्ष, नावां नगरपालिका)
बाईट रामदेव दूण (चिकित्सा प्रभारी, नावा  अस्पताल)






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