नागौर. आदिशक्ति मां दुर्गा की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्रि शनिवार को घट स्थापना के साथ शुरू हो चुका है. घर-घर में और देवी मंदिरों में घट स्थापना कर भक्त मां दुर्गा की उपासना कर रहे हैं. देवी मंदिरों में पहुंचने वाले भक्त माता को फल, नारियल और मिष्ठान्न का प्रसाद चढ़ाते हैं. लेकिन हम आपको ले चलते हैं नागौर जिले के भंवाल माता मंदिर. जहां देवी को ढाई प्याला शराब का भोग माता ग्रहण करती है.
मान्यता है कि जिस भक्त पर माता प्रसन्न होती है. उसका ढाई प्याला शराब का भोग लेती है. न केवल राजस्थान बल्कि देश का यह एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है. जहां देवी को शराब का भोग लगता है. इस अनूठी परंपरा के साथ ही देवी के कई चमत्कार भी हैं. जिनके कारण देशभर में इस मंदिर की अनूठी पहचान है. जिले में रियांबड़ी तहसील के भंवाल गांव में ऐतिहासक भंवाल माता का मंदिर है. जो करीब 1500 साल पुराना बताया जाता है. इस मंदिर के गर्भगृह में देवी की दो प्रतिमाएं हैं. ठीक सामने कालिका माता की प्रतिमा है और साथ में ब्रह्माणी माता की प्रतिमा भी विराजमान है. मंदिर के गर्भगृह में ही काला और गोरा भैरव की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं. मान्यता है कि भंवाल माता मंदिर स्थित देवी अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं और मनोकामना पूरी होने पर भक्त यहां शराब की बोतल भोग स्वरूप चढ़ाते हैं. देवी को शराब का प्रसाद चढ़ाने के लिए खास तौर पर चांदी का एक प्याला है.
भक्तों द्वारा लाई गई बोतल में से पुजारी पहला प्याला भरकर देवी के मुंह के पास ले जाता है और अगले ही क्षण प्याले में भरी शराब खाली हो जाती है. पहला प्याला खाली होने पर यह प्रक्रिया दो बार और दोहराई जाती है. दूसरी बार भी प्याला पूरा खाली हो जाता है. लेकिन तीसरी बार में आधा प्याला खाली होता है. प्याले में बची हुई शराब मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भैरव प्रतिमा पर चढ़ाई जाती है. हालांकि, सभी भक्तों का प्रसाद माता ग्रहण नहीं करती है. केवल उन्हीं भक्तों का प्रसाद ग्रहण करती हैं. जिन पर माता प्रसन्न होती है। मान्यता है कि सच्चे मन से यहां आने भक्तों का प्रसाद ही माता ग्रहण करती है.
ऐसा नहीं कि इस मंदिर में केवल शराब का ही भोग लगता है. भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार नारियल, मखाना और मिठाई भी माता को चढ़ाते हैं. बताया जाता है कि मंदिर में विराजमान कालका माता ही शराब का भोग ग्रहण करती है. जबकि ब्रह्माणी माता को नारियल और मखाने का भोग लगाया जाता है. इस मंदिर की स्थापना को लेकर भी एक किवदंती है. बताया जाता है कि बहुत पहले यह जगह बिल्कुल वीरान हुआ करती थी और एक टूटे-फूटे चबूतरे पर छोटा सा मंदिर था. एक दिन कुछ डकैत डाका डालकर भाग रहे थे और सिपाही उनका पीछा कर रहे थे.
जान पर बनी देखकर डकैत माता की शरण में गए और आगे से डकैती छोड़ने और मेहनत करने का प्रण लिया. तब माता ने चमत्कार दिखाया और सभी डकैत बौने हो गए. जिसके कारण वह सिपाहियों की नजर से बच गए. इसके बाद उन्हीं डकैतों ने इस मंदिर न निर्माण करवाया था. ग्रामीण बताते हैं कि करीब 10-12 साल पहले इस मंदिर पर ढावा बोलकर चोरों ने यहां से चांदी के छत्र, आभूषण और चांदी का दरवाजा चुरा लिया था. इस वारदात के कुछ दिन बाद ही वारदात को अंजाम देने वाले अंधे हो गए और चांदी का दरवाजा और अन्य आभूषण एक खेत में पड़े मिले थे.
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1 हजार साल से ज्यादा पुराने इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बना गुम्बज स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है. यहां देवी-देवताओं की कई ऐसी प्रतिमाएं विराजमान हैं. जो काफी प्राचीन और दुर्लभ मानी जाती है. यहां आने वाले श्रद्धालु प्राचीन स्थापत्य कला से अपने आप को रूबरू करवाते हैं. इस गुम्बज पर शिव, गणेश और महिषासुरमर्दिनी की कई प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित हैं.
चैत्र और शारदीय नवरात्रि में देशभर से माता के भक्त अपनी मनोकामनाएं लेकर भंवाल माता के मंदिर आते हैं. हालांकि, महामारी कोविड-19 का असर इस बार यहां साफ देखा जा रहा है. कोरोना काल से पहले नवरात्रि में हजारों श्रद्धालु भंवाल माता के दर्शन करने आते थे. लेकिन इस बार यहां बहुत कम भक्त आ रहे हैं. हालांकि, पुजारियों का कहना है कि ज्यादा भीड़ इकट्ठा नहीं होने दी जा रही है और सरकार की कोरोना संबंधी गाइडलाइन की पालना करवाई जा रही है. इसके साथ ही मंदिर की धुलाई और सेनिटाइजेशन भी नियमित रूप से करवाई जा रही है.