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स्वतंत्रता सेनानी आनंद लक्ष्मण खांडेकर का निधन, सीएम गहलोत और स्पीकर बिरला ने किया शोक व्यक्त

गांधीवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी आनंद लक्ष्मण खांडेकर की 93 साल की आयु में निधन हो गया है. खांडेकर ने महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर जीवन यात्रा पूर्ण कर गांधी जयंती पर ही अंतिम सांस ली है. उनके निधन पर प्रदेश के बड़े नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की और इसे बड़ी क्षति बताया है.

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वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी आनंद लक्ष्मण खांडेकर का 93 साल की उम्र में निधन
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Published : Oct 2, 2020, 11:08 PM IST

कोटा. दादाबाडी निवासी स्वंतत्रता सेनानी आनंद लक्ष्मण खांडेकर का शुक्रवार को निधन हो गया. खांडेकर महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर जीवन यात्रा पूर्ण कर गांधी जयंती पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन पर प्रदेश के बड़े नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की और इसे बड़ी क्षति बताया है. खांडेकर का का जन्म 8 जून 1926 को बारां जिले में हुआ और इन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की. खांडेकर ने अपना संपूर्ण जीवन समाज सेवा में व्यतीत किया। चाचा केशवराव से प्रेरित होकर समाज सेवा को जीवन का अंतिम लक्ष्य बनाया और उसको पूर्ण करते हुए खांडेकर ने 93 वर्ष में आखरी सांस ली. खाडेकर ने महज 13 साल की उम्र में ही खादी बाना ओढ़ लिया था. उन्होंने होश संभाला तो पूरा मुल्क मां भारती को अंग्रेज हुक्मरानों से आजाद कराने के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए लालायित था.

यह भी पढ़ें- आज से शुरू होगा कोरोना के खिलाफ जन जागरूकता अभियान, सरकार हाथ जोड़कर मास्क लगाने के लिए करेगी जागरूक

उन्होंने भी अपना जीवन मातृभूमि को अर्पित करने की शपथ ली और किसान आंदोलनों से जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत की. 1939 का साल आते-आते वह प्रजामंडल से जुड़ गए और आजादी के लिए हाड़ौती में होने वाले आंदोलनों में शिरकत करने लगे. खांडेकर उस दौर में हाड़ौती का इलाका क्रांतिकारियों की शरण स्थली बना हुआ था. यहां के लोग उन्हें न सिर्फ छिपने के लिए जगह देते थे, बल्कि आर्थिक तौर पर भी पूरी मदद करते थे. सन 1942 में कोटा कोतवाली पर तीन दिन तक तिरंगा फहराने की घटना ने उनमें नई ऊर्जा भर दी और वह पहले से ज्यादा सक्रिय हो गए. उनका संघर्ष 15 अगस्त 1947 के बाद भी जारी रहा और वह गोवा मुक्ति आंदोलन से जुड़ गए। गोवा को आजाद कराने के लिए वह कई सालों तक वहीं डेरा जमाए रहे है. मुख्यमंत्री अशोक गहलाेत ने आनन्द लक्ष्मण खांडेकर के निधन पर व्यक्त किया है.

यह भी पढ़ें- सीएम गहलोत का BJP सरकार पर हमला, जब छिपाने की बात नहीं तो प्रियंका और राहुल गांधी को क्यों रोका

संवेदना संदेश में कहा कि देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा. दिवंगत की आत्मा की शांति और शोक संतृप्त परिजनों को यह आघात सहन करने की शक्ति प्रदान करें. इसी तरह लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने भी स्वतंत्रता सैनानी आनंद लक्ष्मण खांडेकर की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया है. उनके निधन को कोटा-बूंदी ही नहीं सम्पूर्ण राजस्थान को अपूरणीय क्षति बताया है.

शनिवार को होगा अंतिम संस्कार

खांडेकर का भरा पूरा परिवार हैं, जिनमें दो पुत्र यशवंत और जयंत और चार पुत्रियां सुषमा तमनकर, प्रतिभा चौधरी, वनिता, मंगला है. वहीं दो पौत्र विपुल और आदित्य है. उनकी अंतिम यात्रा शनिवार को निवास स्थान दादाबाड़ी से रवाना होगी. कांग्रेस नेता अरुण भार्गव, पंकज मेहता, रविंद्र त्यागी, रणबीर साहनी, यज्ञदत्त हाड़ा, रामपुरा व्यापार संघ के अजय गुप्ता, नरेंद्र जैन और अन्य लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की है. खांडेकर निराश्रित बच्चों से लेकर वृद्धों के लिए काम करने वाली श्रीकरनी नगर विकास समिति के अध्यक्ष रहे. साथ ही खादी संस्था के कर्मठ कार्यकर्ता और बाल उत्सव समिति के अध्यक्ष के रूप में भी इन्होंने कई कार्य किए हैं. खांडेकर हाड़ौती उत्सव आयोजन समिति के भी अध्यक्ष रहे.

वर्तमान हालात पर जताते थे चिंता

देश की दिशा से निराश एक माह पहले 93 वां बसंत देखने वाले आनंद लक्ष्मण खांडेकर देश के वर्तमान हालातों से खासे दुखी भी नजर आए और बोले कि सरकार और अफसरों पर सत्ता का नशा ऐसा चढ़ा है कि वह खुद को जनता का सेवक मानने के बजाय हिंदुस्तान का नया शासक समझने लगे हैं. निजी स्वार्थ लोगों पर इस कदर हावी हो चुके हैं कि राष्ट्रप्रेम काफी पीछे छूट गया है. वह कहते थे कि विषमताएं तो हमेशा रहेंगी, लेकिन इन सबके बावजूद आम आदमी के लिए आजादी को कितना बेहतर बना सकते हैं. इसके लिए सबको साझा प्रयास करना होगा, नहीं तो 73 साल पहले लड़ी गई लड़ाई और उसके लिए दी गई कुर्बानियां जाया चली जाएंगी.

कोटा. दादाबाडी निवासी स्वंतत्रता सेनानी आनंद लक्ष्मण खांडेकर का शुक्रवार को निधन हो गया. खांडेकर महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर जीवन यात्रा पूर्ण कर गांधी जयंती पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन पर प्रदेश के बड़े नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की और इसे बड़ी क्षति बताया है. खांडेकर का का जन्म 8 जून 1926 को बारां जिले में हुआ और इन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा ग्रहण की. खांडेकर ने अपना संपूर्ण जीवन समाज सेवा में व्यतीत किया। चाचा केशवराव से प्रेरित होकर समाज सेवा को जीवन का अंतिम लक्ष्य बनाया और उसको पूर्ण करते हुए खांडेकर ने 93 वर्ष में आखरी सांस ली. खाडेकर ने महज 13 साल की उम्र में ही खादी बाना ओढ़ लिया था. उन्होंने होश संभाला तो पूरा मुल्क मां भारती को अंग्रेज हुक्मरानों से आजाद कराने के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए लालायित था.

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उन्होंने भी अपना जीवन मातृभूमि को अर्पित करने की शपथ ली और किसान आंदोलनों से जुड़कर स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत की. 1939 का साल आते-आते वह प्रजामंडल से जुड़ गए और आजादी के लिए हाड़ौती में होने वाले आंदोलनों में शिरकत करने लगे. खांडेकर उस दौर में हाड़ौती का इलाका क्रांतिकारियों की शरण स्थली बना हुआ था. यहां के लोग उन्हें न सिर्फ छिपने के लिए जगह देते थे, बल्कि आर्थिक तौर पर भी पूरी मदद करते थे. सन 1942 में कोटा कोतवाली पर तीन दिन तक तिरंगा फहराने की घटना ने उनमें नई ऊर्जा भर दी और वह पहले से ज्यादा सक्रिय हो गए. उनका संघर्ष 15 अगस्त 1947 के बाद भी जारी रहा और वह गोवा मुक्ति आंदोलन से जुड़ गए। गोवा को आजाद कराने के लिए वह कई सालों तक वहीं डेरा जमाए रहे है. मुख्यमंत्री अशोक गहलाेत ने आनन्द लक्ष्मण खांडेकर के निधन पर व्यक्त किया है.

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शनिवार को होगा अंतिम संस्कार

खांडेकर का भरा पूरा परिवार हैं, जिनमें दो पुत्र यशवंत और जयंत और चार पुत्रियां सुषमा तमनकर, प्रतिभा चौधरी, वनिता, मंगला है. वहीं दो पौत्र विपुल और आदित्य है. उनकी अंतिम यात्रा शनिवार को निवास स्थान दादाबाड़ी से रवाना होगी. कांग्रेस नेता अरुण भार्गव, पंकज मेहता, रविंद्र त्यागी, रणबीर साहनी, यज्ञदत्त हाड़ा, रामपुरा व्यापार संघ के अजय गुप्ता, नरेंद्र जैन और अन्य लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित की है. खांडेकर निराश्रित बच्चों से लेकर वृद्धों के लिए काम करने वाली श्रीकरनी नगर विकास समिति के अध्यक्ष रहे. साथ ही खादी संस्था के कर्मठ कार्यकर्ता और बाल उत्सव समिति के अध्यक्ष के रूप में भी इन्होंने कई कार्य किए हैं. खांडेकर हाड़ौती उत्सव आयोजन समिति के भी अध्यक्ष रहे.

वर्तमान हालात पर जताते थे चिंता

देश की दिशा से निराश एक माह पहले 93 वां बसंत देखने वाले आनंद लक्ष्मण खांडेकर देश के वर्तमान हालातों से खासे दुखी भी नजर आए और बोले कि सरकार और अफसरों पर सत्ता का नशा ऐसा चढ़ा है कि वह खुद को जनता का सेवक मानने के बजाय हिंदुस्तान का नया शासक समझने लगे हैं. निजी स्वार्थ लोगों पर इस कदर हावी हो चुके हैं कि राष्ट्रप्रेम काफी पीछे छूट गया है. वह कहते थे कि विषमताएं तो हमेशा रहेंगी, लेकिन इन सबके बावजूद आम आदमी के लिए आजादी को कितना बेहतर बना सकते हैं. इसके लिए सबको साझा प्रयास करना होगा, नहीं तो 73 साल पहले लड़ी गई लड़ाई और उसके लिए दी गई कुर्बानियां जाया चली जाएंगी.

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