कोटा. देश भर में अलग-अलग तरह से दशहरा पूरे देश में मनाया जाता है. कोटा में जेठी समाज पर्व पर एक अलग ही परंपरा का निर्वहन करता है. उनकी अनूठी परंपरा के अनुसार यह लोग मिट्टी के रावण को बनाते हैं और उसे पैरों से रौंदकर उसके अहंकार को मिट्टी में मिला देते हैं. बाद में उसी जगह पर कुश्ती का आयोजन किया जाता है. इससे पहले लिम्बजा माता मंदिर में पूजा-अर्चना होती है.
पूजन के दौरान समाज के बच्चों से लेकर बड़े लोग तक मौजूद रहते हैं. यह परंपरा सैकड़ों साल से कोटा में निभाई जा रही है जो नांता इलाके में रहने वाले जेठी समाज के लोग निभाते हैं. समाज के लोगों का कहना है कि रावण को बनाने के लिए यहां मिट्टी का उपयोग किया जाता है. मिट्टी का रावण बनाने में दूध, दही, शक्कर और शहद का प्रयोग किया जाता है. मिट्टी के रावण के मिटाने के बाद उस पर होने वाले कुश्ती के दंगल में पहलवानों को चोट नहीं लगे.
2 सप्ताह पहले से बनाना शुरू कर देते हैं रावण
जेठी समाज के लोग सैकड़ों परिवार गुजरात से पलायन कर कोटा में करीब 150 साल पहले आए थे. तभी से समाज की परंपरा के अनुसार लिम्बजा माता मंदिर स्थित अखाड़े में रावण को श्राद्ध पक्ष में बनाना शुरू करते हैं. कोटा में किशोरपुरा और नांता में इस तरह के रावण बनाए जाते हैं. रावण बनाने का कार्य अमावस्या तक पूरा भी हो जाता है. उसके बाद रावण के सिर और मुंह पर गेहूं के ज्वारे उगाए जाते हैं. वहीं नवरात्र के पूरे 9 दिनों में मंदिर का मुख्य द्वार बंद कर दिया जाता है. इसे नवमी के दिन ही खोला जाता है. मंदिर में केवल पुजारी और अन्य एक-दो लोग ही दूसरे रास्ते से जाकर पूजा करते हैं.
रणभेरी और जयकारों से गूंज उठता है मंदिर
मंदिर में पूजा के समय से ही ढोल व नगाड़ों की आवाज से साथ रणभेरी भी बजाई जाती है, ताकि युद्ध जैसा माहौल वहां बनाया जा सके. रावण की आवाज और उसके अहंकार की हंसी भी माइक के जरिए समाज के लोग ही निकालते हैं. रावण को कुचलते समय भगवान और माता लिम्बजा के जयकारे लगाते हैं. बताया जाता है कि समाज के अधिकांश लोग मल्लयुद्ध में पारंगत हुआ करते थे. ऐसे में कोटा रियासत के समय मल्लयुद्ध में पारंगत होने के चलते ही समाज के लिए अखाड़े मंदिर नांता व किशोरपुरा में बनाए गए थे.