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JEE MAIN: गर्ल्स का 'इंजीनियरिंग' से मोहभंग, तीन साल में 50 हजार कम हो गई संख्या

देश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई मेन में गर्ल्स का रुझान कम हो रहा है. पिछले तीन साल में करीब 50 हजार छात्राएं इस एग्जाम (three years 50 thousand girls have decreased) में कम हो गई हैं.

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Published : Apr 15, 2022, 10:35 PM IST

girls students is decreasing in JEE Main exam
परीक्षार्थियों की तस्वीर

कोटा. देश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई मेन में गर्ल्स का रुझान कम हो रहा है. बीते तीन साल में 50 हजार छात्राएं एग्जाम (three years 50 thousand girls have decreased) में कम हो गई हैं. इस प्रवेश परीक्षा में फीमेल कैंडिडेट की संख्या वर्ष-2019 में 3 लाख 30 हजार थी. यह 2021 तक आते- आते घटकर 2 लाख 80 हजार रह गई है.

जहां 2019 में कुल रजिस्ट्रेशन का 35 फ़ीसदी छात्राओं का था. यह 2021 में 30 फीसदी ही रह गया है. इसमें 5 फ़ीसदी की गिरावट आई है. दूसरी तरफ 3 साल में करीब 15 फीसदी छात्राओं का रजिस्ट्रेशन कम हुआ है. जबकि छात्रों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही. यह छात्राओं से दोगुना ही है. कोटा के एजुकेशन एक्सपर्ट देव शर्मा ने बताया कि देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों आईआईटी व एनआईटी में फीमेल कैंडीडेट्स के लिए विशेष सुपरन्यूमैरेरी सीट्स का प्रावधान होने के बावजूद भी यह कमी चिंता का विषय है. वर्तमान समय में ऐसा महसूस होता है कि इंजीनियरिंग संस्थानों में फीमेल-कैंडीडेट्स के लिए सिर्फ सुपरन्यूमैरेरी-कोटा उपलब्ध कराना ही पर्याप्त नहीं है. इसकी जगह इंजीनियरिंग के संपूर्ण इको-सिस्टम को फीमेल-फ्रेंडली बनाने की आवश्यकता है.

पढ़े: JEE MAINS 2022: NTA ने बदली पहले सेशन की तारीख, CBSE सहित अन्य बोर्ड परीक्षाओं से हो रही थी क्लैश

छात्राओं को कम जॉब के अवसरः देव शर्मा ने बताया कि पिछले कुछ समय में फीमेल-कैंडीडेट्स का रुझान इंजीनियरिंग विषयों से हटकर अन्य विषयों की ओर बढ़ा है. भागीदारी में कमी का प्रथम-दृष्टया कारण यह नजर आता है कि इंजीनियरिंग कॅरियर में फीमेल-कैंडिडेट्स को अधिक जॉब के अवसर उपलब्ध नहीं होती है. कोर-इंजीनियरिंग विषयों इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, सिविल व केमिकल में फील्ड-जॉब उपलब्ध होते हैं. यह फीमेल-कैंडीडेट्स को रास नहीं आते. देव शर्मा ने बताया कि फीमेल-कैंडीडेट्स की शिकायत रहती है कि इंजीनियरिंग-संस्थानों में माहौल मेल-डोमिनेटेड होता है. ऐसी स्थिति में वे इंजीनियरिंग के 4-वर्षों में स्वयं को असहज महसूस करती हैं.

आईजीडीटीयूडब्लू जैसे संस्थानों की आवश्यकताः देव शर्मा ने बताया कि इंजीनियरिंग प्रोफेशन में फीमेल कैंडीडेट्स की भागीदारी बढ़ाने के लिए इंदिरा गांधी दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी फॉर वुमन (आईजीडीटीयूडब्लू) नई दिल्ली जैसे ओनली फीमेल इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूशंस की आवश्यकता है. केवल फीमेल इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूटशंस में फीमेल कैंडिडेट्स सहज महसूस करती हैं. इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट वर्क्स को एग्जीक्यूट करने की भी पूरी जिम्मेदारी फीमेल कैंडीडेट्स की ही होती है. ऐसे में उनकी इंजीनियरिंग फील्ड-वर्क, लीडरशिप-स्किल्स इंप्रूव और अपग्रेड होती है. कैंपस-प्लेसमेंट के दौरान ही फीमेल कैंडीडेट्स को बेहतर इंजीनियरिंग-कंपनी में जॉब-ऑफर हो जाते हैं.

कोटा. देश की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई मेन में गर्ल्स का रुझान कम हो रहा है. बीते तीन साल में 50 हजार छात्राएं एग्जाम (three years 50 thousand girls have decreased) में कम हो गई हैं. इस प्रवेश परीक्षा में फीमेल कैंडिडेट की संख्या वर्ष-2019 में 3 लाख 30 हजार थी. यह 2021 तक आते- आते घटकर 2 लाख 80 हजार रह गई है.

जहां 2019 में कुल रजिस्ट्रेशन का 35 फ़ीसदी छात्राओं का था. यह 2021 में 30 फीसदी ही रह गया है. इसमें 5 फ़ीसदी की गिरावट आई है. दूसरी तरफ 3 साल में करीब 15 फीसदी छात्राओं का रजिस्ट्रेशन कम हुआ है. जबकि छात्रों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही. यह छात्राओं से दोगुना ही है. कोटा के एजुकेशन एक्सपर्ट देव शर्मा ने बताया कि देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों आईआईटी व एनआईटी में फीमेल कैंडीडेट्स के लिए विशेष सुपरन्यूमैरेरी सीट्स का प्रावधान होने के बावजूद भी यह कमी चिंता का विषय है. वर्तमान समय में ऐसा महसूस होता है कि इंजीनियरिंग संस्थानों में फीमेल-कैंडीडेट्स के लिए सिर्फ सुपरन्यूमैरेरी-कोटा उपलब्ध कराना ही पर्याप्त नहीं है. इसकी जगह इंजीनियरिंग के संपूर्ण इको-सिस्टम को फीमेल-फ्रेंडली बनाने की आवश्यकता है.

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छात्राओं को कम जॉब के अवसरः देव शर्मा ने बताया कि पिछले कुछ समय में फीमेल-कैंडीडेट्स का रुझान इंजीनियरिंग विषयों से हटकर अन्य विषयों की ओर बढ़ा है. भागीदारी में कमी का प्रथम-दृष्टया कारण यह नजर आता है कि इंजीनियरिंग कॅरियर में फीमेल-कैंडिडेट्स को अधिक जॉब के अवसर उपलब्ध नहीं होती है. कोर-इंजीनियरिंग विषयों इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, सिविल व केमिकल में फील्ड-जॉब उपलब्ध होते हैं. यह फीमेल-कैंडीडेट्स को रास नहीं आते. देव शर्मा ने बताया कि फीमेल-कैंडीडेट्स की शिकायत रहती है कि इंजीनियरिंग-संस्थानों में माहौल मेल-डोमिनेटेड होता है. ऐसी स्थिति में वे इंजीनियरिंग के 4-वर्षों में स्वयं को असहज महसूस करती हैं.

आईजीडीटीयूडब्लू जैसे संस्थानों की आवश्यकताः देव शर्मा ने बताया कि इंजीनियरिंग प्रोफेशन में फीमेल कैंडीडेट्स की भागीदारी बढ़ाने के लिए इंदिरा गांधी दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी फॉर वुमन (आईजीडीटीयूडब्लू) नई दिल्ली जैसे ओनली फीमेल इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूशंस की आवश्यकता है. केवल फीमेल इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूटशंस में फीमेल कैंडिडेट्स सहज महसूस करती हैं. इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट वर्क्स को एग्जीक्यूट करने की भी पूरी जिम्मेदारी फीमेल कैंडीडेट्स की ही होती है. ऐसे में उनकी इंजीनियरिंग फील्ड-वर्क, लीडरशिप-स्किल्स इंप्रूव और अपग्रेड होती है. कैंपस-प्लेसमेंट के दौरान ही फीमेल कैंडीडेट्स को बेहतर इंजीनियरिंग-कंपनी में जॉब-ऑफर हो जाते हैं.

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