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कोरोना काल में घरों में काम करने वाली महिलाओं पर रोजी-रोटी का संकट

कोरोना संक्रमण की दूसरी वेव से जिंदगी ठहर सी गई. लॉकडाउन की वजह से लोग घरों में कैद हुए. रोज कमाने-खाने वालों की मुसीबत बढ़ गई. घरों में काम करने वाली बाइयों के भी काम-धंधे छूट गए. घरों में झाड़ू-पोछा कर महीने में बमुश्किल 5 से 7 हजार रुपए कमाने वाली महिलाओं के सामने रोजी-रोटी का संकट है.

घरों में काम करने वाली महिलाओं पर रोजी-रोटी का संकट, crisis of livelihood on the women working in the houses
घरों में काम करने वाली महिलाओं पर रोजी-रोटी का संकट
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Published : Jun 3, 2021, 11:00 PM IST

कोटा. कोरोना संक्रमण की दूसरी वेव ने कहर बरपाया है. कई लोगों के काम-धंधे तक छूटने से वे बेरोजगार हो गए हैं. लोगों को गुजर-बसर के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. ऐसी ही कहानी घरों में झाड़ू पोछा करने वाली कामवाली बाईयों की भी है. घरों के मालिकों ने कोरोना संक्रमण के फैलने के डर से उनको काम से निकाल दिया है.

घरों में काम करने वाली महिलाओं पर रोजी-रोटी का संकट

कोटा शहर में पाश कॉलोनियों में घरों में झाड़ू-पोछा करने वाली महिलाओं को कोरोना संक्रमण के कहर से घरों पर बैठा दिया गया है. अब इन महिलाओं के सामने रोजी-रोटी का संकट है. कामवाली बाई के नहीं होने से गृहणियों की दिनचर्या भी बदल गई है. उन्हें सुबह जल्दी उठकर काम करना पड़ता है.

'काम मिलता भी है तो पुलिस जाने नहीं देती'

गीता बाई ने बताया कि 4 साल से घरों में झाड़ू पोछा कर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रहीं हैं. कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन लगा हुआ है. पुलिस जाने नहीं देती है. जिस घर में काम करते हैं, उन्होंने भी अभी आने से मना कर दिया है. कोरोना संक्रमण कम होने के बाद बुलाने का भरोसा दिया है.

यह भी पढ़ेंः गहलोत के मंत्रियों के लड़ने पर बोले Poonia, कहा- जुगाड़ की सरकार को सबक सिखाएगी जनता की अदालत

गीता बाई ने बताया कि पति बेलदारी का काम करते हैं लेकिन उनको भी कभी काम मिलता है और कभी नहीं मिलता. ऐसे में वह भी घर में ही रह रहे हैं. गीता बाई के 4 बच्चे हैं. अब खाने-पीने तक की चिंता सता रही है. अभी तो आस-पड़ोस से पैसे उधार लेकर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं. लेकिन लॉकडाउन लंबा चला तो भूखों मरने तक की नौबत आ जाएगी.

मंडी में आढ़त पर काम करने वाली बाई हुईं बेरोजगार

रावतभाटा रोड स्थित नया गांव निवासी 35 वर्षीय महिला चंद्रकला ने बताया कि वह करीब 2 साल से फल-सब्जी मंडी में आढ़त पर काम करती थी. लॉकडाउन लगने से काफी दिक्कतें आ रही थी. लिहाजा उसे भी काम पर आने से मना कर दिया गया. अब 2 महीने से घर में ही है. चार बेटे-बेटी हैं. उनका गुजर-बसर करना भारी पड़ रहा है.

न मदद मिली, न कोई पूछपरख

चंद्रकला ने बताया कि पिछले साल सरकार ने राशन सामग्री भी बांटी थी. लेकिन इस बार तो कोई आकर देख भी नहीं रहा. हालांकि अभी तो पड़ोसियों से मांग कर खा लेते हैं लेकिन अगर यह कोरोना संकट लंबा चला तो पड़ोसी भी मदद करने से इनकार कर देंगे.

आगे क्या होगा ?

नया गांव में ही रहने वाली शबाना ने बताया कि पति से तलाक के बाद करीब 2 साल से अपना और बच्चों का गुजर-बसर कर रहीं हैं. घरों में झाड़ू पोछा लगाकर खर्चा निकल जाता था. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कहर के बाद लोगों ने काम कराने से मना कर दिया. अब दिन-रात यही सोचते हैं कि आगे क्या होगा ? जितनी जमा पूंजी थी, वह भी धीरे-धीरे खत्म हो गई. शबाना फिलहाल अपनी मां के पास रहती हैं. मां की सेहत भी ठीक नहीं रहती है. बच्चों की पढ़ाई तक छूट चुकी है.

यह भी पढ़ेंः वैक्सीन बर्बादी बहाना, सरकार पर निशाना...गहलोत बोले- राजस्थान को बदनाम करने की कोशिश कर रही बीजेपी

सरकार ने पिछले साल कोरोना संक्रमण में राशन किट दिए थे. इस बार तो सरकार ने कोई सुविधाएं नहीं दी. ना ही कोई जनप्रतिनिधि ध्यान दे रहा है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो आगे क्या होगा?

कोटा शहर के 80% घरों में काम करती हैं कामवाली बाई

एजुकेशन सिटी कोटा में करीब 80% आबादी इलाकों के घरों में झाड़ू पोछा, बर्तन करने वाली महिलाएं काम करती हैं. गृहणियों का कहना है कि कोरोना संक्रमण के डर से कामवाली बाई को फिलहाल घर पर आने से मना किया है. हालांकि उनके राशन-पानी की व्यवस्था करवाते रहते हैं.

गृहणियों की बदली दिनचर्या

दादाबाड़ी निवासी ग्रहणी मीनू जैन ने बताया कि अब सुबह जल्दी उठना पड़ता है. पहले बाई आकर सब काम कर देती थी. अब घर के सभी लोग मिलकर काम करते हैं.

खलती है कमी

दादाबाड़ी निवासी इंदु जैन ने बताया कि काम करने आने वाली बाई के बिना शेड्यूल बदल गया है. घर के सभी सदस्य मिलकर घर का काम कर लेते हैं. पहले बाई सभी काम कर लेती थी. हमें सिर्फ खाना पकाना पढ़ता था.

यह भी पढ़ेंः राजस्थान में एक बार फिर कोरोना वैक्सीनेशन कार्यक्रम पर फिर सकता है पानी, जानें क्या है कारण...

दादाबाड़ी निवासी ग्रहणी साधना सिंह ने बताया कि मेरे यहां लगातार बाई काम करने आ रही है. पिछले 15 दिन पहले उसने कोरोना का टीका लगवा,या जिससे उसको बुखार आ गया इसलिए उसको घर पर ही रहने को कहा. उसके राशन की व्यवस्था भी की है.

हालांकि अभी कई घरों में झाड़ू पोछा करने महिलाएं आ रही हैं. झाड़ू पोछा करने वाली एक महिला अनिता बाई ने बताया कि वह लगातार घरों में झाड़ू पोछा कर रही है. घरों में जाने से पहले हाथों को सैनिटाइज करते हैं. मुंह पर मास्क लगाकर रखते हैं.

कोटा. कोरोना संक्रमण की दूसरी वेव ने कहर बरपाया है. कई लोगों के काम-धंधे तक छूटने से वे बेरोजगार हो गए हैं. लोगों को गुजर-बसर के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. ऐसी ही कहानी घरों में झाड़ू पोछा करने वाली कामवाली बाईयों की भी है. घरों के मालिकों ने कोरोना संक्रमण के फैलने के डर से उनको काम से निकाल दिया है.

घरों में काम करने वाली महिलाओं पर रोजी-रोटी का संकट

कोटा शहर में पाश कॉलोनियों में घरों में झाड़ू-पोछा करने वाली महिलाओं को कोरोना संक्रमण के कहर से घरों पर बैठा दिया गया है. अब इन महिलाओं के सामने रोजी-रोटी का संकट है. कामवाली बाई के नहीं होने से गृहणियों की दिनचर्या भी बदल गई है. उन्हें सुबह जल्दी उठकर काम करना पड़ता है.

'काम मिलता भी है तो पुलिस जाने नहीं देती'

गीता बाई ने बताया कि 4 साल से घरों में झाड़ू पोछा कर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रहीं हैं. कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन लगा हुआ है. पुलिस जाने नहीं देती है. जिस घर में काम करते हैं, उन्होंने भी अभी आने से मना कर दिया है. कोरोना संक्रमण कम होने के बाद बुलाने का भरोसा दिया है.

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गीता बाई ने बताया कि पति बेलदारी का काम करते हैं लेकिन उनको भी कभी काम मिलता है और कभी नहीं मिलता. ऐसे में वह भी घर में ही रह रहे हैं. गीता बाई के 4 बच्चे हैं. अब खाने-पीने तक की चिंता सता रही है. अभी तो आस-पड़ोस से पैसे उधार लेकर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं. लेकिन लॉकडाउन लंबा चला तो भूखों मरने तक की नौबत आ जाएगी.

मंडी में आढ़त पर काम करने वाली बाई हुईं बेरोजगार

रावतभाटा रोड स्थित नया गांव निवासी 35 वर्षीय महिला चंद्रकला ने बताया कि वह करीब 2 साल से फल-सब्जी मंडी में आढ़त पर काम करती थी. लॉकडाउन लगने से काफी दिक्कतें आ रही थी. लिहाजा उसे भी काम पर आने से मना कर दिया गया. अब 2 महीने से घर में ही है. चार बेटे-बेटी हैं. उनका गुजर-बसर करना भारी पड़ रहा है.

न मदद मिली, न कोई पूछपरख

चंद्रकला ने बताया कि पिछले साल सरकार ने राशन सामग्री भी बांटी थी. लेकिन इस बार तो कोई आकर देख भी नहीं रहा. हालांकि अभी तो पड़ोसियों से मांग कर खा लेते हैं लेकिन अगर यह कोरोना संकट लंबा चला तो पड़ोसी भी मदद करने से इनकार कर देंगे.

आगे क्या होगा ?

नया गांव में ही रहने वाली शबाना ने बताया कि पति से तलाक के बाद करीब 2 साल से अपना और बच्चों का गुजर-बसर कर रहीं हैं. घरों में झाड़ू पोछा लगाकर खर्चा निकल जाता था. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कहर के बाद लोगों ने काम कराने से मना कर दिया. अब दिन-रात यही सोचते हैं कि आगे क्या होगा ? जितनी जमा पूंजी थी, वह भी धीरे-धीरे खत्म हो गई. शबाना फिलहाल अपनी मां के पास रहती हैं. मां की सेहत भी ठीक नहीं रहती है. बच्चों की पढ़ाई तक छूट चुकी है.

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सरकार ने पिछले साल कोरोना संक्रमण में राशन किट दिए थे. इस बार तो सरकार ने कोई सुविधाएं नहीं दी. ना ही कोई जनप्रतिनिधि ध्यान दे रहा है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो आगे क्या होगा?

कोटा शहर के 80% घरों में काम करती हैं कामवाली बाई

एजुकेशन सिटी कोटा में करीब 80% आबादी इलाकों के घरों में झाड़ू पोछा, बर्तन करने वाली महिलाएं काम करती हैं. गृहणियों का कहना है कि कोरोना संक्रमण के डर से कामवाली बाई को फिलहाल घर पर आने से मना किया है. हालांकि उनके राशन-पानी की व्यवस्था करवाते रहते हैं.

गृहणियों की बदली दिनचर्या

दादाबाड़ी निवासी ग्रहणी मीनू जैन ने बताया कि अब सुबह जल्दी उठना पड़ता है. पहले बाई आकर सब काम कर देती थी. अब घर के सभी लोग मिलकर काम करते हैं.

खलती है कमी

दादाबाड़ी निवासी इंदु जैन ने बताया कि काम करने आने वाली बाई के बिना शेड्यूल बदल गया है. घर के सभी सदस्य मिलकर घर का काम कर लेते हैं. पहले बाई सभी काम कर लेती थी. हमें सिर्फ खाना पकाना पढ़ता था.

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दादाबाड़ी निवासी ग्रहणी साधना सिंह ने बताया कि मेरे यहां लगातार बाई काम करने आ रही है. पिछले 15 दिन पहले उसने कोरोना का टीका लगवा,या जिससे उसको बुखार आ गया इसलिए उसको घर पर ही रहने को कहा. उसके राशन की व्यवस्था भी की है.

हालांकि अभी कई घरों में झाड़ू पोछा करने महिलाएं आ रही हैं. झाड़ू पोछा करने वाली एक महिला अनिता बाई ने बताया कि वह लगातार घरों में झाड़ू पोछा कर रही है. घरों में जाने से पहले हाथों को सैनिटाइज करते हैं. मुंह पर मास्क लगाकर रखते हैं.

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