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टीबी मुक्त भारत मिशन पर कोरोना महामारी ने लगाया 'ब्रेक', देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट

कोविड-19 संक्रमण के चलते अब दूसरी बीमारियों का इलाज प्रभावित हो रहा है. ऐसे कई मामले कोटा जिले में देखने को मिले हैं. डॉक्टरों का मानना है कि जो लोग टीबी की चपेट में हैं, उन्हें जल्द से जल्द इलाज लेना चाहिए. लेकिन कोविड के डर की वजह से इन दिनों टीबी से ग्रसित मरीज अस्पताल ही नहीं पहुंच रहे हैं. ऐसे में उनमें टीबी का खतरा बढ़ रहा है.

कोटा समाचार,  side effect of corona virus , कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट्स
टीबी मुक्त भारत मिशन पर कोरोना का ब्रेक
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Published : Sep 25, 2020, 1:32 PM IST

कोटा: कोरोना महामारी (corona virus) ने पूरी दुनिया में दहशत फैलाई हुई है. भारत में संक्रमितों की संख्या 57 लाख को पार कर गई है. आज पूरा देश कोरोना महामारी से लड़ रहा है. अधिकतर अस्पतालों को कोविड वार्ड में तब्दील कर दिया गया है. देशभर के डॉक्टर कोविड मरीजों की देखभाल में लगे हुए हैं. ऐसे में कोरोना से परे दूसरी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को काफी दिकक्तें आ रही हैं. कोविड-19 संक्रमण के चलते अब दूसरी बीमारियों का इलाज प्रभावित हो रहा है. ऐसे कई मामले कोटा जिले में देखने को मिले हैं.

टीबी मुक्त भारत मिशन पर कोरोना का ब्रेक

केंद्र सरकार ने 2025 तक देश से टीबी खत्म करने का संकल्प लिया है. लेकिन अब कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के चलते अन्य बीमारियों की तरह इस अभियान पर भी असर साफ नजर आने लगा है. बीते 5 महीने में कोटा की ही बात की जाए तो 35 फ़ीसदी कम केस सामने आए हैं. जबकि टीबी के मरीज कम्युनिटी में बीमारी को स्प्रेड कर रहे हैं. मरीजों के कम सामने आने के चलते जो कम्युनिटी में टीबी का फैलाव है. उन मरीजों की स्थिति गंभीर होती जा रही है. साथ ही ऐसे मरीजों में कोविड-19 का खतरा भी बढ़ जाता है. लेकिन कोरोना के डर की वजह से टीबी के मरीज अस्पतालों में इलाज करवाने नहीं पहुंच रहे हैं.

कोटा समाचार,  side effect of corona virus , कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट्स
2025 तक टीबी मुक्त भारत की मुहिम की थमी रफ्तार

टीबी मरीजों के फेफड़े पहले से खराब, ऐसे में खतरा ज्यादा

कोटा मेडिकल कॉलेज में टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र ताखर का कहना है कि टीबी से ग्रसित मरीजों के फेफड़े पहले से ही कमजोर होते हैं. टीबी की वजह से भी उनके फेफड़ों में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. मरीजों की इम्युनिटी पहले से काफी कम होती है.

आमतौर पर कोरोना वायरस इंफेक्शन स्वस्थ व्यक्ति में होता है, तो बिना किसी ज्यादा तकलीफ के वे ठीक हो जाते हैं, लेकिन टीबी के मरीजों के लिए यह बीमीर और भी ज्यादा घातक हो जाती है, क्योंकि जिनके फेफड़े पहले से खराब हो रखे हैं, उनमें कोरोना का इंफेक्शन जानलेवा साबित हो सकता है. डॉक्टरों का कहना है कि जो भी व्यक्ति टीबी से ग्रसित हैं, उन्हें अपना खास ख्याल रखना चाहिए.

कोटा समाचार,  side effect of corona virus , कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट्स
कोरोना का टीबी के मरीजों पर भी पड़ा प्रभाव

विभाग कह रहा मरीज डरे हुए, लेकिन जांच भी पूरी नहीं हो रही

क्षय रोग अधिकारी डॉ. आरसी मीणा का कहना है कि मरीजों में पिछले साल से काफी अंतर आया है. यह सब कोविड-19 की वजह से ही हुआ है. अप्रैल और मई में संपूर्ण लॉकडाउन था. मरीज घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे. ऐसे में लोग जांच कराने नहीं पहुंचे. अब अनलॉक हो चुका है. इसके बाद भी मरीज डरे हुए हैं. अभी भी मरीज अस्पताल नहीं आ रहे हैं.

पढ़ें: Special: बूंदी में सड़कों का हाल खस्ताहाल, धूमिल हो रही 'छोटी काशी' की छवि

मीणा का कहना है कि मेडिकल स्टाफ और टेक्नीशियनों की ड्यूटी भी कोविड-19 के नमूने लेने और अन्य कार्यों में लगा दी गई है. ऐसे में अस्पतालों का आउटडोर भी कम हो रहा है. जिस से भी बलगम की जांच कम हुई है. लेकिन अब इसको बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं.

हर साल 3000 से ज्यादा मामले

कोटा जिले में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी बलगम की जांच हो जाती है. जिसे टीबी की प्रारंभिक जांच कहते हैं. इसके बाद इसमें टीबी के लक्षण नजर आने पर उन मरीजों को टीबी क्लीनिक में बुलाया जाता है और यहां पर सीबी नोट मशीन के जरिए उनके बलगम की जांच की जाती है. इसके बाद उनका उपचार शुरू किया जाता है. करीब 3000 से ज्यादा नए मामले हर साल कोटा जिले में डिटेक्ट होते हैं.

कोटा समाचार,  side effect of corona virus , कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट्स
कम संख्या में ही मरीज पहुंच रहे अस्पताल

मेडिकल कॉलेज में बंद हो गई जांच

मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में भी टीबी की जांच के लिए सीबीनोट मशीन लगाई गई है, लेकिन अभी उस मशीन का उपयोग कोविड-19 की जांच के लिए किया जा रहा है. ऐसे में जितने भी नमूने क्षय रोग के आ रहे हैं, वह मेडिकल कॉलेज की जगह अब टीबी क्लीनिक में ही आते हैं. वहां जांच बंद होने से भी टीबी मरीजों का इलाज नहीं हो रहा है. यही कारण है कि बीते साल अप्रैल से अगस्त तक 1345 नए टीबी मरीज सामने आए थे, जबकि इस साल इन्हीं महीनों में महज 872 केस मिले हैं.

सरकार ने दिए फाइंडिंग सर्वे के निर्देश

टीबी मरीजों के अस्पताल ना पहुंचने से चिंतित सरकार ने अब 3 से 16 अक्टूबर तक एक्टिव केस फाइंडिंग सर्वे करवाने के निर्देश दिए हैं. इसके तहत आशा वर्कर्स को घर-घर भेजा जाएगा और वह कम्युनिटी में जाकर सिंप्टोमेटिक व्यक्ति की जांच की जाएगी. जिससे जो केस इस बार डिटेक्ट नहीं हो पाए हैं. उन्हें पहचान कर उनका इलाज शुरू करवाया जाए. वहीं टीबी क्लीनिक के डॉक्टरों का कहना है कि यह सर्वे ऐसी जगह भी होगा, जहां पर पॉपुलेशन और मेडिकल डिपार्टमेंट नहीं पहुंच रहे हैं. उन लोगों की भी जांच करवाई जाएगी.

कोटा समाचार,  side effect of corona virus , कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट्स
टेस्टिंग लैब पड़े हैं खाली

पढ़ें: Special: राष्ट्रपति भवन के वास्तुकार एडविन लुटियंस ने ही बनाया था अजमेर के तोपदड़ा स्कूल का भी नक्शा

मास्क रोक रहा क्षय रोग का संक्रमण

टीबी रोग विशेषज्ञ डॉ. एसएन मीणा का कहना है कि खांसी आने पर टीबी के मरीजों को हमेशा मास्क या मुंह पर कपड़ा लगाने की सलाह दी जाती थी, लेकिन अब लोग को भी कोविड-19 संक्रमण के चलते मास्क लगा रहे हैं. ऐसे में टीबी के स्प्रेड का खतरा कम हो गया है. हालांकि उनका मानना है कि जो मरीज इलाज देरी से करवा रहे हैं. उनसे घर के दूसरे लोगों को भी खतरा है, क्योंकि अगर उन्हें इंफेक्शन है तो दूसरे लोगों में फैल जाएगा. ऐसे में उनके रोग की भी गंभीरता बढ़ जाएगी.

कोटा: कोरोना महामारी (corona virus) ने पूरी दुनिया में दहशत फैलाई हुई है. भारत में संक्रमितों की संख्या 57 लाख को पार कर गई है. आज पूरा देश कोरोना महामारी से लड़ रहा है. अधिकतर अस्पतालों को कोविड वार्ड में तब्दील कर दिया गया है. देशभर के डॉक्टर कोविड मरीजों की देखभाल में लगे हुए हैं. ऐसे में कोरोना से परे दूसरी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को काफी दिकक्तें आ रही हैं. कोविड-19 संक्रमण के चलते अब दूसरी बीमारियों का इलाज प्रभावित हो रहा है. ऐसे कई मामले कोटा जिले में देखने को मिले हैं.

टीबी मुक्त भारत मिशन पर कोरोना का ब्रेक

केंद्र सरकार ने 2025 तक देश से टीबी खत्म करने का संकल्प लिया है. लेकिन अब कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के चलते अन्य बीमारियों की तरह इस अभियान पर भी असर साफ नजर आने लगा है. बीते 5 महीने में कोटा की ही बात की जाए तो 35 फ़ीसदी कम केस सामने आए हैं. जबकि टीबी के मरीज कम्युनिटी में बीमारी को स्प्रेड कर रहे हैं. मरीजों के कम सामने आने के चलते जो कम्युनिटी में टीबी का फैलाव है. उन मरीजों की स्थिति गंभीर होती जा रही है. साथ ही ऐसे मरीजों में कोविड-19 का खतरा भी बढ़ जाता है. लेकिन कोरोना के डर की वजह से टीबी के मरीज अस्पतालों में इलाज करवाने नहीं पहुंच रहे हैं.

कोटा समाचार,  side effect of corona virus , कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट्स
2025 तक टीबी मुक्त भारत की मुहिम की थमी रफ्तार

टीबी मरीजों के फेफड़े पहले से खराब, ऐसे में खतरा ज्यादा

कोटा मेडिकल कॉलेज में टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र ताखर का कहना है कि टीबी से ग्रसित मरीजों के फेफड़े पहले से ही कमजोर होते हैं. टीबी की वजह से भी उनके फेफड़ों में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. मरीजों की इम्युनिटी पहले से काफी कम होती है.

आमतौर पर कोरोना वायरस इंफेक्शन स्वस्थ व्यक्ति में होता है, तो बिना किसी ज्यादा तकलीफ के वे ठीक हो जाते हैं, लेकिन टीबी के मरीजों के लिए यह बीमीर और भी ज्यादा घातक हो जाती है, क्योंकि जिनके फेफड़े पहले से खराब हो रखे हैं, उनमें कोरोना का इंफेक्शन जानलेवा साबित हो सकता है. डॉक्टरों का कहना है कि जो भी व्यक्ति टीबी से ग्रसित हैं, उन्हें अपना खास ख्याल रखना चाहिए.

कोटा समाचार,  side effect of corona virus , कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट्स
कोरोना का टीबी के मरीजों पर भी पड़ा प्रभाव

विभाग कह रहा मरीज डरे हुए, लेकिन जांच भी पूरी नहीं हो रही

क्षय रोग अधिकारी डॉ. आरसी मीणा का कहना है कि मरीजों में पिछले साल से काफी अंतर आया है. यह सब कोविड-19 की वजह से ही हुआ है. अप्रैल और मई में संपूर्ण लॉकडाउन था. मरीज घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे. ऐसे में लोग जांच कराने नहीं पहुंचे. अब अनलॉक हो चुका है. इसके बाद भी मरीज डरे हुए हैं. अभी भी मरीज अस्पताल नहीं आ रहे हैं.

पढ़ें: Special: बूंदी में सड़कों का हाल खस्ताहाल, धूमिल हो रही 'छोटी काशी' की छवि

मीणा का कहना है कि मेडिकल स्टाफ और टेक्नीशियनों की ड्यूटी भी कोविड-19 के नमूने लेने और अन्य कार्यों में लगा दी गई है. ऐसे में अस्पतालों का आउटडोर भी कम हो रहा है. जिस से भी बलगम की जांच कम हुई है. लेकिन अब इसको बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं.

हर साल 3000 से ज्यादा मामले

कोटा जिले में प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी बलगम की जांच हो जाती है. जिसे टीबी की प्रारंभिक जांच कहते हैं. इसके बाद इसमें टीबी के लक्षण नजर आने पर उन मरीजों को टीबी क्लीनिक में बुलाया जाता है और यहां पर सीबी नोट मशीन के जरिए उनके बलगम की जांच की जाती है. इसके बाद उनका उपचार शुरू किया जाता है. करीब 3000 से ज्यादा नए मामले हर साल कोटा जिले में डिटेक्ट होते हैं.

कोटा समाचार,  side effect of corona virus , कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट्स
कम संख्या में ही मरीज पहुंच रहे अस्पताल

मेडिकल कॉलेज में बंद हो गई जांच

मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में भी टीबी की जांच के लिए सीबीनोट मशीन लगाई गई है, लेकिन अभी उस मशीन का उपयोग कोविड-19 की जांच के लिए किया जा रहा है. ऐसे में जितने भी नमूने क्षय रोग के आ रहे हैं, वह मेडिकल कॉलेज की जगह अब टीबी क्लीनिक में ही आते हैं. वहां जांच बंद होने से भी टीबी मरीजों का इलाज नहीं हो रहा है. यही कारण है कि बीते साल अप्रैल से अगस्त तक 1345 नए टीबी मरीज सामने आए थे, जबकि इस साल इन्हीं महीनों में महज 872 केस मिले हैं.

सरकार ने दिए फाइंडिंग सर्वे के निर्देश

टीबी मरीजों के अस्पताल ना पहुंचने से चिंतित सरकार ने अब 3 से 16 अक्टूबर तक एक्टिव केस फाइंडिंग सर्वे करवाने के निर्देश दिए हैं. इसके तहत आशा वर्कर्स को घर-घर भेजा जाएगा और वह कम्युनिटी में जाकर सिंप्टोमेटिक व्यक्ति की जांच की जाएगी. जिससे जो केस इस बार डिटेक्ट नहीं हो पाए हैं. उन्हें पहचान कर उनका इलाज शुरू करवाया जाए. वहीं टीबी क्लीनिक के डॉक्टरों का कहना है कि यह सर्वे ऐसी जगह भी होगा, जहां पर पॉपुलेशन और मेडिकल डिपार्टमेंट नहीं पहुंच रहे हैं. उन लोगों की भी जांच करवाई जाएगी.

कोटा समाचार,  side effect of corona virus , कोरोना वायरस के साइड इफेक्ट्स
टेस्टिंग लैब पड़े हैं खाली

पढ़ें: Special: राष्ट्रपति भवन के वास्तुकार एडविन लुटियंस ने ही बनाया था अजमेर के तोपदड़ा स्कूल का भी नक्शा

मास्क रोक रहा क्षय रोग का संक्रमण

टीबी रोग विशेषज्ञ डॉ. एसएन मीणा का कहना है कि खांसी आने पर टीबी के मरीजों को हमेशा मास्क या मुंह पर कपड़ा लगाने की सलाह दी जाती थी, लेकिन अब लोग को भी कोविड-19 संक्रमण के चलते मास्क लगा रहे हैं. ऐसे में टीबी के स्प्रेड का खतरा कम हो गया है. हालांकि उनका मानना है कि जो मरीज इलाज देरी से करवा रहे हैं. उनसे घर के दूसरे लोगों को भी खतरा है, क्योंकि अगर उन्हें इंफेक्शन है तो दूसरे लोगों में फैल जाएगा. ऐसे में उनके रोग की भी गंभीरता बढ़ जाएगी.

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