ETV Bharat / city

Special: लॉकडाउन में काम बंद, तो मजबूरी में छोटे कामगारों ने बदल लिया काम

author img

By

Published : Apr 8, 2020, 7:23 PM IST

कोटा में बहुत से मजदूरों को लॉकडाउन लॉकडाउन के चलते धंधा बदलना पड़ा है. ऐसे कई लोग हैं जिनको ईटीवी भारत ने शहर की सड़कों पर चलते हुए देखा और जब उनसे बातचीत की तो सामने आया कि वो पहले कोई और काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते वे अब बेरोजगार हो गए. ऐसे में उन्होंने अपना धंधा बदल दिया और अब वो फल या सब्जी बेच रहे हैं. पढ़ें पूरी स्टोरी...

wages in lockdown, मजदूरों पर स्पेशल स्टोरी
लॉकडाउन में छोटे कामगारों ने बदल लिया रोजगार

कोटा. कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया है. ये लॉकडाउन छोटे-मोटे कामगार मजदूरों पर भारी पड़ रहा है. अधिकांश लोग जो रोज कमा कर खाते थे, उनके सामने संकट आ गया है. हालांकि समाजसेवी लोगों की मदद कर रहे हैं. प्रशासन भी इन लोगों तक राशन पहुंचा रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी लोग आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं.

लॉकडाउन में छोटे कामगारों ने बदल लिया रोजगार

ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने अपना धंधा इस लॉकडाउन में बदल लिया है. वो पहले ऑटो चलाना, कटिंग की दुकान संचालित करना, फ्लावर डेकोरेशन या फिर रिक्शा चलाते थे, लेकिन अब वे ठेले पर सब्जी लेकर या फल फ्रूट लेकर निकल रहे हैं. ताकि उन्हें 250 से 500 के बीच मजदूरी मिल सके और वे अपने घर का गुजारा चला सके.

पढ़ें- ETV BHARAT पर जानिए क्या होता है 'लॉकडाउन', 'कर्फ्यू' और 'महा कर्फ्यू' में अंतर..

ऐसे कई लोग हैं जिनको ईटीवी भारत ने शहर की सड़कों पर चलते हुए देखा और जब उनसे बातचीत की तो सामने आया कि वो पहले कोई और काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते वे अब बेरोजगार हो गए. ऐसे में उन्होंने अपना धंधा बदल दिया और अब वह फल या सब्जी बेच रहे हैं. आधी ही हो रही है आमदनी पर मजबूरी है.

नगर निगम कॉलोनी निवासी त्रिलोक राठौर बैटरी वाला ऑटो रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालते हैं, लेकिन बीते 1 सप्ताह से वे कभी फल का ठेला लगाते हैं कभी फ्रूट्स का. इसके लिए त्रिलोक शहर की गली-गली भटकते हैं. शाम तक वे करीब 300 से 400 रुपये तक बचा पाते हैं, जबकि जब बैटरी संचालित ऑटो को चलाते थे तो 700 रुपये तक कमा लेते थे. उनका कहना है कि आमदनी आधी हो गई है, लेकिन जैसे तैसे गुजारा कर रहे हैं.

पढ़ें- SPECIAL: 320 लोगों को किडनी, 43 लोगों को लिवर और 21 लोगों को दिल की जरूरत...

इसी तरह से छावनी निवासी राकेश भी शादी समारोह में तंदूर चलाते थे, लॉकडाउन की वजह से सब कुछ बंद है, अब जेब की राशि भी खत्म हो गई. मजदूरी मिल नहीं रही, ऐसे में रोज ककड़ी बेचकर 200 से 300 रुपये का जुगाड़ कर लेते हैं. जिससे रोजी चल रही है.

कर्फ्यू ने रोका तो 10 किलोमीटर चला रहे हाथ ठेला

सूरजपोल दरवाजे के नजदीक फ्लावर डेकोरेशन की दुकान संचालित करने वाले गुमानपुरा बल्लभबाड़ी निवासी बंटी पोरवाल के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. रोज में करीब 10 किलोमीटर ठेले पर संतरे बेच रहे हैं, इसमें 500 रुपये रोज उन्हें मिल जाते हैं. बंटी पोरवाल का कहना है कि लॉकडाउन के चलते पूरा एरिया सील किया हआ है. घर में पूरे परिवार की जिम्मेदारी है. अगर कुछ पैसा नहीं आएगा, तो गुजारा नहीं चलेगा. अब जैसा भी है, काम करना पड़ रहा है. उन्होंने अपने भाई को भी इस काम में शामिल किया हुआ है, जो उनकी मदद कर रहा है.

घर में आटा नहीं बचा तो मजबूरी में बदला धंधा

नयागांव आवंली रोजड़ी निवासी सोनू लॉकडाउन के पहले ऑटो रिक्शा चलाते थे, अब घर गृहस्थी का खर्चा नहीं चल पा रहा है. वे परेशान हो गए. घर में आटा भी नहीं था. ऐसे में मां ने सलाह दी कि कोई ठेला ही चला लो, अब वो किसी मिलने वाले के संपर्क से एक ठेला चला रहे हैं. ठेला संचालक उन्हें सुबह माल देता है और 350 रुपए उनकी मजदूरी तय कर दी है. जितने रुपये बचेंगे वो ठेला संचालक के बचेंगे.

कोटा. कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया है. ये लॉकडाउन छोटे-मोटे कामगार मजदूरों पर भारी पड़ रहा है. अधिकांश लोग जो रोज कमा कर खाते थे, उनके सामने संकट आ गया है. हालांकि समाजसेवी लोगों की मदद कर रहे हैं. प्रशासन भी इन लोगों तक राशन पहुंचा रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी लोग आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं.

लॉकडाउन में छोटे कामगारों ने बदल लिया रोजगार

ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने अपना धंधा इस लॉकडाउन में बदल लिया है. वो पहले ऑटो चलाना, कटिंग की दुकान संचालित करना, फ्लावर डेकोरेशन या फिर रिक्शा चलाते थे, लेकिन अब वे ठेले पर सब्जी लेकर या फल फ्रूट लेकर निकल रहे हैं. ताकि उन्हें 250 से 500 के बीच मजदूरी मिल सके और वे अपने घर का गुजारा चला सके.

पढ़ें- ETV BHARAT पर जानिए क्या होता है 'लॉकडाउन', 'कर्फ्यू' और 'महा कर्फ्यू' में अंतर..

ऐसे कई लोग हैं जिनको ईटीवी भारत ने शहर की सड़कों पर चलते हुए देखा और जब उनसे बातचीत की तो सामने आया कि वो पहले कोई और काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते वे अब बेरोजगार हो गए. ऐसे में उन्होंने अपना धंधा बदल दिया और अब वह फल या सब्जी बेच रहे हैं. आधी ही हो रही है आमदनी पर मजबूरी है.

नगर निगम कॉलोनी निवासी त्रिलोक राठौर बैटरी वाला ऑटो रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालते हैं, लेकिन बीते 1 सप्ताह से वे कभी फल का ठेला लगाते हैं कभी फ्रूट्स का. इसके लिए त्रिलोक शहर की गली-गली भटकते हैं. शाम तक वे करीब 300 से 400 रुपये तक बचा पाते हैं, जबकि जब बैटरी संचालित ऑटो को चलाते थे तो 700 रुपये तक कमा लेते थे. उनका कहना है कि आमदनी आधी हो गई है, लेकिन जैसे तैसे गुजारा कर रहे हैं.

पढ़ें- SPECIAL: 320 लोगों को किडनी, 43 लोगों को लिवर और 21 लोगों को दिल की जरूरत...

इसी तरह से छावनी निवासी राकेश भी शादी समारोह में तंदूर चलाते थे, लॉकडाउन की वजह से सब कुछ बंद है, अब जेब की राशि भी खत्म हो गई. मजदूरी मिल नहीं रही, ऐसे में रोज ककड़ी बेचकर 200 से 300 रुपये का जुगाड़ कर लेते हैं. जिससे रोजी चल रही है.

कर्फ्यू ने रोका तो 10 किलोमीटर चला रहे हाथ ठेला

सूरजपोल दरवाजे के नजदीक फ्लावर डेकोरेशन की दुकान संचालित करने वाले गुमानपुरा बल्लभबाड़ी निवासी बंटी पोरवाल के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. रोज में करीब 10 किलोमीटर ठेले पर संतरे बेच रहे हैं, इसमें 500 रुपये रोज उन्हें मिल जाते हैं. बंटी पोरवाल का कहना है कि लॉकडाउन के चलते पूरा एरिया सील किया हआ है. घर में पूरे परिवार की जिम्मेदारी है. अगर कुछ पैसा नहीं आएगा, तो गुजारा नहीं चलेगा. अब जैसा भी है, काम करना पड़ रहा है. उन्होंने अपने भाई को भी इस काम में शामिल किया हुआ है, जो उनकी मदद कर रहा है.

घर में आटा नहीं बचा तो मजबूरी में बदला धंधा

नयागांव आवंली रोजड़ी निवासी सोनू लॉकडाउन के पहले ऑटो रिक्शा चलाते थे, अब घर गृहस्थी का खर्चा नहीं चल पा रहा है. वे परेशान हो गए. घर में आटा भी नहीं था. ऐसे में मां ने सलाह दी कि कोई ठेला ही चला लो, अब वो किसी मिलने वाले के संपर्क से एक ठेला चला रहे हैं. ठेला संचालक उन्हें सुबह माल देता है और 350 रुपए उनकी मजदूरी तय कर दी है. जितने रुपये बचेंगे वो ठेला संचालक के बचेंगे.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.