ETV Bharat / city

Special : मुंबई के लालबाग की तर्ज पर कोटा में रामपुरा के राजा, गरीब गणेश अब नगर सेठ बन लाते हैं समृद्धि - Rajasthan Hindi News

कोटा में मुंबई के लालबाग के राजा के गणेश की तर्ज पर रामपुरा के राजा का आयोजन (Rampur ke Raja of Kota) किया जाता है. यहां पिछले दो दशकों से इसी प्रकार की मूर्ति स्थापित की जाती है. साथ ही नगर सेठ में गणपति की बेठी हुई मुद्रा की प्रतिमा विराजमान है. जिसको लेकर मान्यता है कि ये नगर में समृद्धि लेकर आते हैं.

Ganesh Festival 2022
कोटा में रामपुरा के राजा
author img

By

Published : Sep 5, 2022, 8:00 PM IST

कोटा. पूरे देश में गणेश महोत्सव धूम-धाम से मनाया जाता है. ऐसे ही मुंबई के लालबाग के राजा के गणपति के तर्ज पर कोटा में भी रामपुरा के राजा का आयोजन किया जाता है. दोनों की (Ganesh Festival in Kota) थीम में बिल्कुल बदलाव नहीं किया जाता. सालों से मूर्ति एक जैसी ही रहती है. इसमें लाखों रुपए का खर्चा चंदे के जरिए आता है. इससे ही पूरे 10 दिन तक अलग-अलग आयोजन किए जाते हैं. जिस तरह से मुंबई में लालबाग के राजा के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ होती है, उसी तरह से कोटा में रामपुरा के राजा के लिए शहर भर से श्रद्धालु उमड़ते हैं. इसी तरह से रामपुरा इलाके में ही नगर सेठ का भी पंडाल स्थापित किया जाता है. यहां गणेशजी की प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में है. मान्यता है कि नगर सेठ जी समृद्धि लेकर आते हैं.

लालबाग की तर्ज पर नहीं बदलता है मूर्ति का स्वरूप : मुंबई के लालबाग में जिस तरह से मूर्ति का (Rampur ke Raja of Kota) स्वरूप नहीं बदला जाता है. केवल वहां पर सिंहासन और बैकग्राउंड में बदलाव किया जाता है. इसी तरह से कोटा के रामपुरा के राजा का भी केवल सिंहासन ही बदला जाता है. यहां पर दो दशक से एक ही तरह की मूर्ति बिठाई जा रही है. शिव शक्ति मंडल के अध्यक्ष देव खंडेलवाल बल्लू का कहना है कि जिस तरह से किसी साम्राज्य का राजा होता है, वैसे ही भगवान गणपति रामपुरा के राजा हैं. इसीलिए उन्हें इस स्वरूप में हम हर साल विराजित करते हैं. कोविड-19 के 2 साल में भी छोटा आयोजन किया था. एक कटले में ही छोटे आकार की मूर्ति लाकर स्थापित की गई थी. साल 1994 में दंगे के बाद अनंत चतुर्दशी के जुलूस का रास्ता बदल दिया था, जिसे 2006 में वापस रामपुरा होकर निकाला गया. इसी दौरान हमने यह आयोजन शुरू कर दिया. यह 16 साल से किया जा रहा है. पहले छोटे स्तर पर होता था, लेकिन अब इसे भव्यता से किया जाने लगा है.

पढ़ें. Sundari Vinayak Mandir: यहां 12 भुजाओं वाले गणपति हैं विराजमान, नाभि में स्थापित हैं सुंदरी माता

30 साल पहले गरीब गणेश और अब नगर सेठ : नगर सेठ पंडाल आयोजित करने वाले गणपति सेवा समिति नवयुवक (Nagar Seth Ganesh Ji) मंडल रघुनाथ चौक रामपुरा के अध्यक्ष विशाल साहू का कहना है कि हम 30 साल से इस आयोजन को कर रहे हैं. पहले छोटे रूप में किया जाता था और अब भव्य रूप से किया जा रहा है. पहले गरीब गणेश के नाम से जाना जाता था, आज नगर सेठ के नाम से जाना जाता है. हर रोज अलग-अलग श्रृंगार होता है. पहले से 10 दिन तक के फोटो में वह अंतर नजर आ जाता है.

केवल 12 फीट की मूर्ति की मिली अनुमति : शिव शक्ति मंडल के मनीष पावा का कहना है कि प्रशासन ने इस बार 12 फीट की मूर्ति की ही अनुमति दी है. जबकि हम इससे पहले 15 फीट तक की मूर्ति लगा चुके हैं. इस मूर्ति का वजन 500 किलोग्राम से ज्यादा है. ऐसे में इस मूर्ति को क्रेन की मदद से ही लाया जाता है. विसर्जन के दिन भी इसे क्रेन के जरिए ही उठाया जाता है. सबसे अंतिम गणेश मूर्ति यही होती है, जिसे जुलूस में शामिल किया जाता है. भगवान का रोज नया श्रृंगार होता है, उनकी वेशभूषा बदलती है, जिससे उनका मनमोहक रूप निखर कर आता रहता है.

लाखों रुपए का खर्चा, सब कुछ दानदाताओं के भरोसे : नगर सेठ और रामपुरा के राजा के पंडाल कोटा में (Celebration of Ganesh Festival 2022) होते हैं. दोनों जगहों पर ही लाखों रुपए का खर्चा होता है. यह खर्चा 20 से 35 लाख रुपए तक होता है. इसमें पहले पंडाल से जुड़े कार्यकर्ता ही राशि एकत्रित करते हैं और खुद का डोनेशन देते हैं. इसके बाद अन्य दानदाताओं से यह राशि ली जाती है. नगर सेठ पंडाल आयोजन के अध्यक्ष विशाल साहू का कहना है कि वे करीब डेढ़ महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं. इस पंडाल को ही तैयार होने में 7 से 8 दिन लगते हैं. विशाल पंडाल बनाया जाता है. टेंट, लाइट और फूलों की साज-सज्जा से लेकर सब व्यवस्थाएं की जाती हैं.

पढ़ें. Garh Ganesh Temple : विश्व का एक मात्र ऐसा गणेश मंदिर जहां हैं बिना सूंड वाले गणेश जी

हजारों किलो चढ़ता है प्रसाद : गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक 10 दिनों तक गणेश पंडाल में रोज शाम को महाआरती की जाती है. इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद होते हैं. शिव शक्ति मंडल के अध्यक्ष देव खंडेलवाल बल्लू का कहना है कि रामपुरा के राजा के दर्शन के लिए रोज करीब 25 हजार श्रद्धालु आते हैं. शाम 7:00 बजे से ही काफी संख्या में लोगों का हुजूम उमड़ता है. इन श्रद्धालुओं को रोज प्रसाद बांटा जाता है. साथ ही अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह आरती होती है और इसके बाद करीब 4000 किलो प्रसाद बांटा जाता है. इनमें 2500 किलो पूरी और 1500 किलो पेठा होता है. यह परंपरा लंबे समय से चल रही है.

51 बाजे और ढोल से भी होती है आरती : विशाल साहू का कहना है कि यह कार्यक्रम काफी भव्य रूप में आयोजित होने लगा है. आयोजन में पूरे 10 दिन अलग-अलग कार्यक्रम होते हैं. इनमें सुंदरकांड, भजन संध्या, फैंसी ड्रेस व डांस कंपटीशन, ढोल प्रोग्राम व 51 बाजों का प्रोग्राम रखा जाता है. कार्यक्रम में 51 बाजों से भी आरती की जाती है. इसके अलावा भी अलग-अलग तरीके से आरती आयोजित की जाती है. इसके अलावा आतिशबाजी का भी एक बड़ा कार्यक्रम किया जाता है. इसमें करीब 35 लाख का खर्चा होता है. इसके अलावा बाजार के व्यापारी और निवासी भी इसमें सहयोग करते हैं. बाजार के करीब 50 दुकानदार विशेष सहयोग इसमें देते हैं. हजारों लोगों को प्रसादी अनंत चतुर्दशी पर खिलाते हैं.

कोटा. पूरे देश में गणेश महोत्सव धूम-धाम से मनाया जाता है. ऐसे ही मुंबई के लालबाग के राजा के गणपति के तर्ज पर कोटा में भी रामपुरा के राजा का आयोजन किया जाता है. दोनों की (Ganesh Festival in Kota) थीम में बिल्कुल बदलाव नहीं किया जाता. सालों से मूर्ति एक जैसी ही रहती है. इसमें लाखों रुपए का खर्चा चंदे के जरिए आता है. इससे ही पूरे 10 दिन तक अलग-अलग आयोजन किए जाते हैं. जिस तरह से मुंबई में लालबाग के राजा के दर्शन के लिए लोगों की भीड़ होती है, उसी तरह से कोटा में रामपुरा के राजा के लिए शहर भर से श्रद्धालु उमड़ते हैं. इसी तरह से रामपुरा इलाके में ही नगर सेठ का भी पंडाल स्थापित किया जाता है. यहां गणेशजी की प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में है. मान्यता है कि नगर सेठ जी समृद्धि लेकर आते हैं.

लालबाग की तर्ज पर नहीं बदलता है मूर्ति का स्वरूप : मुंबई के लालबाग में जिस तरह से मूर्ति का (Rampur ke Raja of Kota) स्वरूप नहीं बदला जाता है. केवल वहां पर सिंहासन और बैकग्राउंड में बदलाव किया जाता है. इसी तरह से कोटा के रामपुरा के राजा का भी केवल सिंहासन ही बदला जाता है. यहां पर दो दशक से एक ही तरह की मूर्ति बिठाई जा रही है. शिव शक्ति मंडल के अध्यक्ष देव खंडेलवाल बल्लू का कहना है कि जिस तरह से किसी साम्राज्य का राजा होता है, वैसे ही भगवान गणपति रामपुरा के राजा हैं. इसीलिए उन्हें इस स्वरूप में हम हर साल विराजित करते हैं. कोविड-19 के 2 साल में भी छोटा आयोजन किया था. एक कटले में ही छोटे आकार की मूर्ति लाकर स्थापित की गई थी. साल 1994 में दंगे के बाद अनंत चतुर्दशी के जुलूस का रास्ता बदल दिया था, जिसे 2006 में वापस रामपुरा होकर निकाला गया. इसी दौरान हमने यह आयोजन शुरू कर दिया. यह 16 साल से किया जा रहा है. पहले छोटे स्तर पर होता था, लेकिन अब इसे भव्यता से किया जाने लगा है.

पढ़ें. Sundari Vinayak Mandir: यहां 12 भुजाओं वाले गणपति हैं विराजमान, नाभि में स्थापित हैं सुंदरी माता

30 साल पहले गरीब गणेश और अब नगर सेठ : नगर सेठ पंडाल आयोजित करने वाले गणपति सेवा समिति नवयुवक (Nagar Seth Ganesh Ji) मंडल रघुनाथ चौक रामपुरा के अध्यक्ष विशाल साहू का कहना है कि हम 30 साल से इस आयोजन को कर रहे हैं. पहले छोटे रूप में किया जाता था और अब भव्य रूप से किया जा रहा है. पहले गरीब गणेश के नाम से जाना जाता था, आज नगर सेठ के नाम से जाना जाता है. हर रोज अलग-अलग श्रृंगार होता है. पहले से 10 दिन तक के फोटो में वह अंतर नजर आ जाता है.

केवल 12 फीट की मूर्ति की मिली अनुमति : शिव शक्ति मंडल के मनीष पावा का कहना है कि प्रशासन ने इस बार 12 फीट की मूर्ति की ही अनुमति दी है. जबकि हम इससे पहले 15 फीट तक की मूर्ति लगा चुके हैं. इस मूर्ति का वजन 500 किलोग्राम से ज्यादा है. ऐसे में इस मूर्ति को क्रेन की मदद से ही लाया जाता है. विसर्जन के दिन भी इसे क्रेन के जरिए ही उठाया जाता है. सबसे अंतिम गणेश मूर्ति यही होती है, जिसे जुलूस में शामिल किया जाता है. भगवान का रोज नया श्रृंगार होता है, उनकी वेशभूषा बदलती है, जिससे उनका मनमोहक रूप निखर कर आता रहता है.

लाखों रुपए का खर्चा, सब कुछ दानदाताओं के भरोसे : नगर सेठ और रामपुरा के राजा के पंडाल कोटा में (Celebration of Ganesh Festival 2022) होते हैं. दोनों जगहों पर ही लाखों रुपए का खर्चा होता है. यह खर्चा 20 से 35 लाख रुपए तक होता है. इसमें पहले पंडाल से जुड़े कार्यकर्ता ही राशि एकत्रित करते हैं और खुद का डोनेशन देते हैं. इसके बाद अन्य दानदाताओं से यह राशि ली जाती है. नगर सेठ पंडाल आयोजन के अध्यक्ष विशाल साहू का कहना है कि वे करीब डेढ़ महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं. इस पंडाल को ही तैयार होने में 7 से 8 दिन लगते हैं. विशाल पंडाल बनाया जाता है. टेंट, लाइट और फूलों की साज-सज्जा से लेकर सब व्यवस्थाएं की जाती हैं.

पढ़ें. Garh Ganesh Temple : विश्व का एक मात्र ऐसा गणेश मंदिर जहां हैं बिना सूंड वाले गणेश जी

हजारों किलो चढ़ता है प्रसाद : गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक 10 दिनों तक गणेश पंडाल में रोज शाम को महाआरती की जाती है. इसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद होते हैं. शिव शक्ति मंडल के अध्यक्ष देव खंडेलवाल बल्लू का कहना है कि रामपुरा के राजा के दर्शन के लिए रोज करीब 25 हजार श्रद्धालु आते हैं. शाम 7:00 बजे से ही काफी संख्या में लोगों का हुजूम उमड़ता है. इन श्रद्धालुओं को रोज प्रसाद बांटा जाता है. साथ ही अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह आरती होती है और इसके बाद करीब 4000 किलो प्रसाद बांटा जाता है. इनमें 2500 किलो पूरी और 1500 किलो पेठा होता है. यह परंपरा लंबे समय से चल रही है.

51 बाजे और ढोल से भी होती है आरती : विशाल साहू का कहना है कि यह कार्यक्रम काफी भव्य रूप में आयोजित होने लगा है. आयोजन में पूरे 10 दिन अलग-अलग कार्यक्रम होते हैं. इनमें सुंदरकांड, भजन संध्या, फैंसी ड्रेस व डांस कंपटीशन, ढोल प्रोग्राम व 51 बाजों का प्रोग्राम रखा जाता है. कार्यक्रम में 51 बाजों से भी आरती की जाती है. इसके अलावा भी अलग-अलग तरीके से आरती आयोजित की जाती है. इसके अलावा आतिशबाजी का भी एक बड़ा कार्यक्रम किया जाता है. इसमें करीब 35 लाख का खर्चा होता है. इसके अलावा बाजार के व्यापारी और निवासी भी इसमें सहयोग करते हैं. बाजार के करीब 50 दुकानदार विशेष सहयोग इसमें देते हैं. हजारों लोगों को प्रसादी अनंत चतुर्दशी पर खिलाते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.