कोटा. परिवहन विभाग ने कोटा में लाइसेंस बनवाने के लिए ट्रायल प्रक्रिया (Driving Licence Trial Test) को पारदर्शी बना दिया गया है. कोई व्यक्ति ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक (Trial on Automated Driving Track) पर सटीक वाहन नहीं चला पाएगा, तो उसे लाइसेंस नहीं मिलेगा. क्योंकि अब कैमरों से ही इस पूरे ट्रायल की निगरानी की जाने लगी है. अब शहर में ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के जरिए ट्रायल शुरू किया है. अब मैन्युअल की बजाय कम्प्यूटर सिस्टम बताएगा कि ट्रायल देने वाला पास हुआ या फेल.
ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक के चलते नए लाइसेंस बनवाने वाले या फिर रिन्युअल (Driving Licence Renewal) करवाने वाले लोगों के ट्रायल तो कम हो गए हैं, लेकिन अब बिना ट्रायल के लाइसेंस नहीं बन रहे हैं. ऐसे में वाहन चालक को लाइसेंस लेने के लिए अब ट्रायल ट्रैक पर सटीक 8 और H बनाना होगा. इसकी मॉनिटरिंग कैमरों के जरिए ही की जा रही है. इसके लिए करीब डेढ़ दर्जन कैमरे लगाए गए हैं. साथ ही पूरे ट्रैक को कंप्यूटराइज्ड सिस्टम पर मॉनिटर किया जाता है.
सॉफ्टवेयर ही करेगा फेल और पास
जिला परिवहन अधिकारी (District Transport Officer) रजनीश विद्यार्थी का कहना है कि पहले लोगों को पूरी तरह से ड्राइविंग ट्रैक की जानकारी एक वीडियो फिल्म के जरिए दे देते हैं. अब पूरी तरह से विदाउट मेन ऑपरेटिंग सिस्टम आ गया है. ड्राइविंग ट्रैक पर कोई व्यक्ति मौजूद नहीं रहता है. ट्रायल रूम से ही कैमरों के जरिए ट्रायल पर नजर रखी जाती है. ट्रायल के अनुसार कम्प्यूटर सिस्टम पर ग्राफ बनता है. इस तरह सिस्टम ही सॉफ्टवेयर के जरिए बताता है कि ट्रायल देने वाला फेल हुआ या पास.
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फेल होने पर दोबारा देनी होगी ट्रायल
प्रादेशिक परिवहन अधिकारी ज्ञानदेव विश्वकर्मा ने बताया कि करोड़ों रुपए की लागत से ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रेक स्थापित हो चुका है. इसका संचालन टेंडर के जरिए फर्म से शुरू कर दिया है. अब ट्रायल देने वाले व्यक्ति की योग्यता का परीक्षण इसी के जरिए होगा. उसको नवीन ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक से गुजरना होगा. यदि उस व्यक्ति का वाहन संचालन नियमों के अंतर्गत तय मापदंड से है, तो वह पास होगा. अन्यथा उसको दोबारा ट्रायल देना होगा.
पहले डिसीजन पर होता था विवाद, अब सबकुछ सामने
डीटीओ का कहना है कि पहले ट्रायल के दौरान कई बार विवाद की स्थिति बन जाती थी. क्योंकि सभी डिसीजन मैनुअली लिए जाते थे. उसमें गाड़ी चलाने वाले पर नजर ट्रायल लेने वाला व्यक्ति ही रखता था. अब गाड़ी चलाने वाला गलती कर रहा है, यह तीसरी आंखें यह कैमरे से नजर रखती है. इसमें सबकुछ पारदर्शी हो गया. इसमें किसी व्यक्ति को जबरन पास या फेल भी नहीं किया जा सकता है.
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ट्रायल के चार फेज, ड्राइविंग का बनता है ग्राफ
ऑटोमेटेड ड्राइविंग ट्रैक पर ट्रायल के चार फेज होते हैं. पहले गाड़ी को रिवर्स में लेना होता है. उसके बाद उसे पार्किंग के लिए बनाई गई जगह पर खड़ा करना होता है. इसके बाद गाड़ी चलाते हुए 8 बनाना होता है. बाद में एच बनाना होता है. इसके बाद ग्रेडियंट यानी फ्लाईओवर जैसे ट्रैक पर जाना होता है. इसके साथ ही यह भी नजर रखी जाती है कि ट्रायल दे रहे व्यक्ति ने इंडिकेटर का उपयोग किया है या नहीं. इस पूरी ट्रायल के कर्व का ग्राफ भी बनता है. सीट बेल्ट बांधने, इंडिकेटर देने, सिग्नल पर रुकने से लेकर पार्किंग लाइट के उपयोग की मॉनिटरिंग होती है. हालांकि इस ट्रैक पर ट्रायल के दौरान पांच छोटी गलतियों को सॉफ्टवेयर के जरिए ऑटोमेटिक माफ किया जाता है.