कोटा. देश की सबसे बड़ी मेडिकल प्रवेश परीक्षा नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET UG 2022) जुलाई महीने में आयोजित हुई थी. इस परीक्षा में करीब 18 लाख विद्यार्थी शामिल हुए थे, जिसके परिणाम अगस्त माह में जारी हो सकते हैं. इसके बाद अभ्यर्थियों को मेडिकल कॉलेजों में नीट यूजी 2022 की ऑल इंडिया रैंक के आधार पर प्रवेश मिलेगा. केंद्र सरकार ने नेशनल मेडिकल बिल के आधार पर सभी प्राइवेट और डीम्ड यूनिवर्सिटी मेडिकल संस्थानों को मेमोरेंडम भेजा है. जिसके तहत इन कॉलेजों में कुल क्षमता की आधी सीटों पर राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों की फीस के आधार प्रवेश दिया जाएगा.
हालांकि, एक्सपर्ट की बात मानें तो यह संभव होता नजर नहीं आ रहा है. एक्सपर्ट के अनुसार सरकारी फीस पर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में पढ़ना स्टूडेंट्स के लिए दूर की कौड़ी नजर आता है. क्योंकि मेडिकल संस्थानों में खर्चा ही प्रति स्टूडेंट लाखों रुपये में होता है. ऐसे में वहां पर कुछ हजार रुपयों में स्टूडेंट को पढ़ा पाना मुश्किल होगा. जबकि सरकार इस संबंध में सब्सिडी भी जारी नहीं कर रही है. हालांकि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कम फीस होने के बाद भी सरकार खुद करोड़ों रुपयों की सालाना ग्रांट विद्यार्थियों की पढ़ाई के लिए जारी करती है.
कोटा के निजी कोचिंग संस्थान के एजुकेशन एक्सपर्ट परिजात मिश्रा ने बताया कि नेशनल मेडिकल कमिशन ने सभी स्टेट के डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन और डीम्ड यूनिवर्सिटी रजिस्ट्रार या कुलपति को मेमोरेंडम भेजा है. जिसके अनुसार अगले सत्र से मेडिकल संस्थान की क्षमता की आधी सीटों पर राज्य की फीस के समकक्ष प्रवेश दिया जाए. इस नियम को लागू करने के लिए उनको प्रस्ताव भेजा हुआ है. इसके इंप्लीमेंटेशन के लिए कुछ दिनों में सर्कुलर जारी किया जाएगा. यह आदेश भी नेशनल मेडिकल कमिशन की वेबसाइट पर जारी किया जाएगा.
एक मेडिकल स्टूडेंट पर 9 से 10 लाख का खर्च: एजुकेशन एक्सपर्ट परिजात मिश्रा का मानना है कि इसके लागू होने की संभावना कम है, क्योंकि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों का पूरा फंक्शन स्टूडेंट्स से मिलने वाली फीस पर ही निर्भर है. एक मेडिकल स्टूडेंट पर करीब 9 से 10 लाख का खर्चा आता है. सरकार इसमें सब्सिडी अप्लाई करती है, तो आराम से कॉलेज में कम फीस पर प्रवेश दिया जा सकता है. ऐसा नहीं होने पर कॉलेज की फंक्शनिंग में दिक्कत आएगी. गवर्नमेंट सब्सिडी पर यह नियम आसानी से लागू हो जाएगा, नहीं तो इसमें काफी मुश्किल होगी. इस मामले में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज न्यायालय की शरण में भी जा सकते हैं. इसका परिणाम काउंसलिंग पर पड़ेगा और प्रक्रिया में देरी होगी.
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50 से 55 हजार रुपये सालाना है फीस: देश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों की बात की जाए तो यहां फीस दो हजार रुपये से ही शुरू होती है. यह फीस अधिकांश मेडिकल कॉलेजों में डेढ़ लाख तक है. जबकि कुछ कॉलेजों में दो से तीन लाख रुपये सालाना भी है. महाराष्ट्र के एमजीआईएमएस वर्धा में 3 लाख रुपये सालाना फीस है. इससे ज्यादा फीस कहीं भी नहीं है. हालांकि राजस्थान सहित कई प्रदेशों के सरकारी मेडिकल कॉलेज में 50 से 55 हजार रुपये के आसपास की सालाना फीस है. दूसरी तरफ एम्स में करीब 6 से 8 हजार के बीच ही एमबीबीएस पूरी हो जाती है.
10 से लेकर 25 लाख सालाना तक है फीस: प्राइवेट कॉलेजों की बात की जाए तो देशभर के प्राइवेट कॉलेजों में फीस का औसत 10 लाख से ज्यादा है. केरल सरकार ने 6 से 13, मध्य प्रदेश में 8 से 12, कर्नाटक ने साढ़े 10 से 11, महाराष्ट्र में 6 से 14 और राजस्थान में 15 से 21 लाख रुपये सालाना फीस ली जाती है. जबकि देशभर के मेडिकल और डीम्ड यूनिवर्सिटीयों की बात की जाए तो यह 10 से 25 लाख रुपये तक है. इसमें सबसे कम फीस पुणे के सिंबोसिस मेडिकल कॉलेज की करीब 10 लाख और सबसे अधिक डीवाई पाटील मेडिकल कॉलेज की 25 लाख रुपये है. अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी अलग-अलग फीस है.
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इसीलिए सभी सरकारी सीट चाहते हैं: मेडिकल कॉलेज कोटा के प्रिंसिपल डॉक्टर विजय सरदाना का कहना है कि राज्य सरकार ही फीस तय करती है. 2001 से ही कॉलेजों की फीस कुछ हजार रुपये थी, जिसको राज्य सरकार ने 2017 में बढ़ा दिया था. यह फीस 30 हजार रुपये थी, जिसमें हर साल 10 फीसदी की दर से बढ़ाया जा रहा है. अब यह फीस बढ़कर करीब 50 हजार रुपये सालाना हो गई. साथ ही डॉ. सरदाना का कहना है कि यह फीस निश्चित तौर पर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों से काफी कम होती हैं. इसी के चलते सभी स्टूडेंट सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ही प्रवेश लेना चाहते हैं, ताकि कम फीस में ही उनकी एमबीबीएस हो जाए.
कम फीस में मेडिकल कॉलेज, अस्पताल चलाना मुश्किल: जयपुर के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (NIMS) की निदेशक डॉ शोभा तोमर का मानना है कि सरकार फीस कम करेगी तब परेशानियां आएगी. मेडिकल कॉलेज में एक बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए होता है. सैलरी का भी पूरा खर्च होता है. हॉस्पिटल को भी संचालित करना पड़ता है. इनमें काफी समस्या का सामना करना पड़ेगा. हालांकि उनका मानना है कि जैसा सरकार कहेगी, वैसा ही हम करेंगे.
सरकारी मेडिकल कॉलेज में खर्च होते हैं लाखों रुपये: सरकारी मेडिकल कॉलेजों की बात की जाए तो वहां भी एक स्टूडेंट पर लाखों रुपये का खर्चा सालाना पढ़ाई पर हो रहा है. यह पूरा खर्चा फीस के बाद राज्य सरकारें ही वहन करती हैं. जिस तरह से केंद्र सरकार एम्स और अन्य केंद्रीय संस्थानों में खर्च उठाती है, इस खर्चे में फैकल्टी, स्टाफ रिक्रूटमेंट, मेंटेनेंस, बिल्डिंग मेंटेनेंस, हॉस्पिटल ऑपरेशन, लाइब्रेरी, जर्नल्स, लैब स्थापित व संचालित करना शामिल है. इसके अलावा पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर भी शामिल है. जिनमें करोड़ों रुपये का खर्चा होता है.
एक सीट पर करोड़ों रुपये का बजट: कोटा मेडिकल कॉलेज की बात की जाए तो जब सरकार ने 100 सीटें बढ़ाई थी, तब 120 करोड़ रुपये का बजट जारी किया था, यानी कि 1 सीट एस्टेब्लिश करने पर करीब एक करोड़ का बजट जारी हुआ था. इसके अलावा जिला स्तर पर भी पूरे प्रदेश में कई जगह मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं. कोटा संभाग के ही बारां जिले की बात की जाए तो वहां पर मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए करीब 300 करोड़ रुपये का प्रारंभिक बजट जारी किया है. यहां पर करीब 100 सीटों का मेडिकल कॉलेज खोला जा रहा है. ऐसे में एक सीट के मेडिकल कॉलेज के लिए ही करीब 3 करोड़ रुपय का बजट है. जबकि सालाना खर्च अलग होगा.