कोटा. कोविड के कारण लगे लॉकडाउन के बाद बंद पड़े शिक्षण संस्थाओं को खोल दिया गया है. सरकार ने 100 फीसदी क्षमता के साथ शिक्षण संस्थाओं को चलाने के लिए निर्देशित भी कर दिया है. कोटा में कोचिंग संस्थान (Covid effect on Kota Coaching) भी पूरी तरह से चालू हो चुके हैं, लेकिन अभी बच्चे नहीं पहुंच पाए हैं. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि अगले सेशन में ही बच्चे आ पाएंगे.
माना जा रहा है कि मार्च-अप्रैल में ही कोटा पूरी क्षमता के साथ शिक्षण व्यवस्था के रूप में आगे बढ़ पाएगा. लॉकडाउन के दौरान कोटा की कोचिंग एरिया में बाजार पूरी तरह से बंद रहा. करीब 7 से 8 फीसदी ही व्यापार चल पा रहा था. लेकिन केस में आई कमी और बाजार खुलने के साथ ही व्यापार अब बढ़कर 60 फीसदी तक पहुंच गया है. इससे व्यापारियों की आजीविका तो शुरू हो गई, लेकिन व्यापार अभी पहले वाली रफ्तार नहीं पकड़ (business suffer in Kota) पाया है. इसका बड़ा कारण है कि कोटा में अभी पहले की संख्या के मुताबिक बच्चे नहीं पहुंच पाए हैं.
कोटा में 10 बड़े कोचिंग संस्थानों में करीब 2 लाख बच्चे पढ़ते थे. इस साल अब तक 85 हजार बच्चे ही पहुंचे हैं. पहले जहां कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री 5,000 करोड़ से ज्यादा की थी. वह अभी महज 3,000 करोड़ के आसपास ही बनी हुई है. कोटा में कोटा में कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों से राजीव गांधी नगर, कोरल पार्क, लैंडमार्क सिटी, महावीर नगर, जवाहर नगर, न्यू राजीव गांधी नगर, तलवंडी, केशवपुरा, विज्ञान नगर, इलेक्ट्रॉनिक कॉम्प्लेक्स आदि भरे रहते थे लेकिन वर्तमान में बच्चों की संख्या पहले की तरह नहीं होने के कारण कई हॉस्टल से लेकर अन्य स्थानों तक में कमरे खाली पड़े हैं. लॉकडाउन के बाद जब कोचिंग संस्थानों को खोलने की अनुमति मिली तो कोचिंग संस्थानों ने कोविड-19 से बचाव के लिए पूरे प्रयत्न किए.
हॉस्टल्स और अन्य व्यापारियों ने भी इसमें सहयोग किया था. इसके लिए मानक संचालन प्रक्रिया बनाई है. जिसके तहत हॉस्टल्स में आइसोलेशन रूम भी बनाए गए हैं. यहां तक की कोचिंग संस्थानों में अल्ट्रावायलेट सैनिटाइज की व्यवस्था की गई है, जो कि क्लास खत्म होते ही पूरी तरह से क्लासरूम को सैनिटाइज कर देता है. इसके अलावा हॉस्टल व मैस में भी किस तरह से बच्चों की केयर करनी है, उसकी भी एसओपी बनी है.
आमदनी कम हुई, रोजगार भी घटा
कोटा कोचिंग संस्थानों की बात की जाए तो इनसे हॉस्टल्स, मैस, जनरल स्टोर, किराना, स्टेशनरी, फास्टफूड, रेडीमेड शॉप से लेकर कई तरह के व्यापार जुड़े हुए हैं. बच्चे अधिकांश बाहर के है, ऐसे में वह पूरी तरह से कोटा के मार्केट पर ही निर्भर होते हैं. जिससे इन व्यापारियों का आजीविका भी चलती है. साथ ही कोटा शहर का भी रेवेन्यू बढ़ता है. कोटा कोचिंग से जुड़े व्यवसाय (business depend on Kota Coaching) में करीब 50 हजार से ज्यादा लोग कार्यरत हैं. इनमें इलेक्ट्रीशियन से लेकर सलून चलाने वाला व्यक्ति तक शामिल है. लेकिन अभी महज 35 से 40 हजार के बीच ही लोगों को रोजगार मिला है.
पलायन करने वाले नहीं लौटे वापस
कोटा कोचिंग संस्थान (Coaching institutes in Kota) मई 2019 में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के भी कई जिलों से लोग व्यापार करने के लिए आए थे. यह लोग अपने मैस यहां पर संचालित करते थे. ऐसे में बाहर से यहां पर रहने वाले बच्चों को उन्हीं की टेस्ट का खाना मिल जाता था. लेकिन कोविड-19 के दौरान सब कुछ बंद रहा और अब हालात ऐसे हैं कि मैस संचालित करने वाले लोग भी अपने गांव की तरफ पलायन कर गए जो कि वापस नहीं लौटे हैं. इस तरह के अधिकांश मैस अभी बंद ही हैं.
पहले से नहीं मिल रहा किराया, अंतर बढ़कर हुआ करोड़ों में
कई इलाकों में हॉस्टल में पूरा किराया नहीं मिल पा रहा है. यहां तक कि पीजी भी खाली हैं. पहले जहां पर करीब 10 से 12 हजार रुपए में एक हॉस्टल का कमरा मिलता था. अब यह दाम 7 से 8 हजार ही रह गए हैं. जबकि महंगाई बढ़ गई है. पीजी की बात की जाए तो कई इलाकों में पीजी खाली है. क्योंकि हॉस्टल्स के किराए कम होने के चलते स्टूडेंट्स पीजी की जगह हॉस्टल्स में शिफ्ट हो गए हैं. हॉस्टल संचालकों का कहना है कि अभी जो किराया मिल रहा है, उससे अधिकांश हॉस्टल वाले पहले का लिया हुआ लोन ही चुका रहे हैं, बचत थोड़ी सी ही शुरू हो पाई है. ऐसे में करोड़ों रुपए का नुकसान पीजी मालिकों को हो रहा है. साथ ही हॉस्टल की भी कमाई कम हो गई है. कोटा शहर में जहां पर 3200 से ज्यादा हॉस्टल हैं ऐसे में उन में करीब 1.50 लाख सिंगल रूम है. लेकिन अधिकांश हॉस्टल खाली हैं. यहां तक कि कई मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में 1-बीएचके के फ्लैट भी हैं जहां पर बच्चे पैरंट्स के साथ रहते थे. अब उनमें भी ज्यादातर खाली ही हैं.
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अगले सेशन के लिए अभी से होना होगा तैयार, बढ़ेंगे बच्चे
पूरे शहर के हिसाब से बात की जाए तो हॉस्टल्स में ऑक्युपेंसी 60 फीसदी ही है. कुछ हॉस्टल जरूर फूल हो गए हैं या फिर कुछ एरिया में जहां पर हॉस्टल कम है और बच्चे ज्यादा. वहां पर पूरी तरह से हॉस्टल फूल नजर आएंगे, लेकिन सभी जगह यह हालात नहीं हैं. हालांकि कोचिंग संचालकों का दावा है कि जब कोविड-19 के तुरंत बाद सब लोग डरे हुए थे, तब भी कोटा में इतने बच्चे पहुंच गए हैं. ऐसे में अगले साल मार्च-अप्रैल में बच्चों की संख्या काफी ज्यादा बढ़ जाएगी. उसके लिए कोटा को तैयार भी होना पड़ेगा. अब कोटा पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहेगा. कोटा को महामारी की वजह से थोड़ा पिछड़ना पड़ा है. कोचिंग संचालकों का कहना है कि माना जाता था कि हेल्थ और एजुकेशन सेक्टर कभी नहीं पिछड़ सकते, लेकिन पहली बार एजुकेशन सेक्टर को भी धक्का लगा है. अब अगले सेशन के लिए कोटा को अभी से तैयार होना होगा.
निर्माण कार्य की वजह से भी प्रभावित हो रहे हैं हॉस्टल
हॉस्टल संचालक नीरज जैन का कहना है कि ऑक्सीजोन और फ्लाईओवर का कार्य जारी है. इसके चलते रास्ते बंद हैं. वहां पर नाला खुदाई के चलते आवागमन का रास्ता भी नहीं है. इससे भी हॉस्टल्स में कम बच्चे आ रहे हैं. झालावार रोड पर इंडस्ट्रियल एरिया के नजदीक जो कोचिंग संस्थान स्थित हैं. वहां से राजीव गांधी नगर या न्यू राजीव गांधी नगर की तरफ स्टूडेंट नहीं आ पा रहे हैं. इसका भी खामियाजा हॉस्टल संचालकों को उठाना पड़ रहा है.
केवल गुजारा ही कर पा रहे, फिर भी ठीक
मैस चलाने वाले जसपाल सिंह का कहना है कि कोटा में जहां पर करीब 1800 से ज्यादा ओपन मैस हैं. इनमें से आधे ही अभी संचालित हो पाए हैं. अधिकांश में भी पूरे बच्चे नहीं आ रहे हैं, कोविड के पहले जहां पर उनके इंद्र विहार स्थित में मैस पर 500 से ज्यादा बच्चे आते थे, अब यह संख्या 300 के आसपास रह गया है. इसी तरह से फास्ट फूड की थड़ी चलाने वाले हेमराज सिंह का कहना है कि पहले थोड़ा सा ठीक चल रहा था. अब काम धंधा चल तो रहा है, लेकिन पहले जैसा नहीं है. केवल गुजारा ही कर पा रहे हैं. अभी बच्चे भी काफी कम हैं. पहले जहां पर 15 से 20 हजार रुपए की रोज सेल हो जाया करती थी, अब यह कम होकर 10 से 12 हजार ही रह गई है.