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स्पेशल: तापमान, Oxygen और ग्लूकोज की कमी से दम तोड़ रहे बच्चे... - death of children in JK lone hospital

कोटा के जेके लोन अस्पताल में ज्यादातर नवजात की मौत तापमान, ऑक्सीजन और ग्लूकोज की कमी से हुई है. डॉक्टर के मुताबिक नवजात या तो प्री-मेच्योर होते हैं या जन्म से ही गंभीर बीमारी से ग्रसित होते हैं. ऐसे में उनकी मौत का कोई एक कारण नहीं होता है. लेकिन ज्यादातर ने हाइपोथर्मिया, हाइपोग्लाइसीमिया और हाइपोक्सिया की वजह से दम तोड़ा है.

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तापमान, ऑक्सीजन और ग्लूकोज की कमी की वजह से मर रहे हैं नवजात
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Published : Jan 2, 2020, 1:48 PM IST

कोटा. जिले का जेके लोन अस्पताल राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है. दिसंबर महीने में यहां पर 100 बच्चों की मौत हुई है. जिनमें 2 दिन में कभी 10, 11 या 9 आंकड़ा भी रहा है. इस मुद्दे को लेकर नेताओं में ट्वीटर पर भी जंग छिड़ी है.

तापमान, ऑक्सीजन और ग्लूकोज की कमी की वजह से मर रहे हैं नवजात

बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी ट्वीट कर राजस्थान सरकार को घेरा है. मायावती ने सीएम गहलोत के साथ ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी पर भी निशाना साधा है. मायावती ने यूपी में स्वार्थ सिद्धि के लिए राजनीति करने का आरोप लगाया. मायावती ने कांग्रेस पार्टी की सरकार रहते बच्चों की मौत में नहीं पहुंचने पर आपत्ति जताई है.

रेफर करने पर बढ़ती है समस्या...

जेके लोन अस्पताल के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एएएल बैरवा का कहना है, कि मृतकों में 70 से 80 प्रतिशत बच्चे न्यूबॉर्न होते हैं. इनमें सबसे ज्यादा संख्या उन बच्चों की होती है, जो दूसरी जगह से रेफर होकर आते हैं. मृत नवजात बच्चों में करीब 70 फीसदी बाहर से रेफर होकर आते हैं. डॉ. बैरवा ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, कि ठंड में बच्चों को दूसरी जगह से लाना खतरनाक है. इस ठंड में दूसरी जगह से आ रहे बच्चों को 3 तरह की समस्याएं सामने आती हैं.

यह भी पढ़ेंः नवजातों को 'निगलता' कोटा का जेके लोन अस्पताल, दो दिन में 9 और बच्चों की मौत ; आंकड़ा पहुंचा 100

कुछ ऐसे कर सकते हैं बचाव...

तापमान मेंटेन करने के लिए कंगारू मदर केयर कारगर

डॉ. बैरवा ने बताया, कि हाइपोथर्मिया बच्चे में तापमान की कमी की वजह से होता है, जिसे ट्रांसपोर्ट इनक्यूबेटर या कंगारू मदर केयर से मेंटेन किया जा सकता है. डिलीवरी के तत्काल बाद नवजात के लिए करीब 35 डिग्री तापमान जरूरी होता है. इससे कम तापमान में हाइपोथर्मिया का खतरा रहता है, जो बच्चे के लिए जानलेवा होता है.

आपस में बातचीत करते हुए चिकित्सक और अन्य

दूध पिलाएं, या ग्लूकोज

चिकित्सकों का कहना है, कि ग्लूकोज की कमी से बच्चों की मौत होती है. ऐसे में बच्चों को दूध पिलाते हुए ही लेकर आना चाहिए. यदि दूध नहीं पिला रहे हैं तो 10 परसेंट ग्लूकोज को फीड करके उसको पिलाएं. यानि ग्लूकोस पिला दें या फिर थोड़ी सी शक्कर का मीठा पानी भी उन्हें पिला सकते हैं.

यह भी पढ़ेंः मायावती ने साधा निशाना, कहा- UP की तरह कोटा की मांओं से भी मिलें प्रियंका​​​​​​​

कुछ बच्चे ही इनक्यूबेटर में शिफ्ट होकर पहुंचते हैं

डॉ. बैरवा का कहना है, कि राज्य सरकार ने सभी जिला अस्पतालों और पेरी-फेरी में इनक्यूबेटर दिए हुए हैं. ताकि नवजात बच्चे को जब भी रेफर करना हो तो उसे इनक्यूबेटर से भेजा जाए. उसमें तापमान और ऑक्सीजन मेंटेन रखने के संसाधन होते हैं. यह करीब एक से डेढ़ लाख रुपए के आते हैं. पूरे साल में मुश्किल से कुछ बच्चे इनक्यूबेटर में शिफ्ट होकर भेजे जाते हैं. जितने भी बच्चे रेफर होकर आते हैं. वह जीप या वैन से ही आ रहे हैं, जिसके चलते रास्ते में उनकी तबीयत और ज्यादा गंभीर हो जाती है.

कोटा. जिले का जेके लोन अस्पताल राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है. दिसंबर महीने में यहां पर 100 बच्चों की मौत हुई है. जिनमें 2 दिन में कभी 10, 11 या 9 आंकड़ा भी रहा है. इस मुद्दे को लेकर नेताओं में ट्वीटर पर भी जंग छिड़ी है.

तापमान, ऑक्सीजन और ग्लूकोज की कमी की वजह से मर रहे हैं नवजात

बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी ट्वीट कर राजस्थान सरकार को घेरा है. मायावती ने सीएम गहलोत के साथ ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी पर भी निशाना साधा है. मायावती ने यूपी में स्वार्थ सिद्धि के लिए राजनीति करने का आरोप लगाया. मायावती ने कांग्रेस पार्टी की सरकार रहते बच्चों की मौत में नहीं पहुंचने पर आपत्ति जताई है.

रेफर करने पर बढ़ती है समस्या...

जेके लोन अस्पताल के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एएएल बैरवा का कहना है, कि मृतकों में 70 से 80 प्रतिशत बच्चे न्यूबॉर्न होते हैं. इनमें सबसे ज्यादा संख्या उन बच्चों की होती है, जो दूसरी जगह से रेफर होकर आते हैं. मृत नवजात बच्चों में करीब 70 फीसदी बाहर से रेफर होकर आते हैं. डॉ. बैरवा ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, कि ठंड में बच्चों को दूसरी जगह से लाना खतरनाक है. इस ठंड में दूसरी जगह से आ रहे बच्चों को 3 तरह की समस्याएं सामने आती हैं.

यह भी पढ़ेंः नवजातों को 'निगलता' कोटा का जेके लोन अस्पताल, दो दिन में 9 और बच्चों की मौत ; आंकड़ा पहुंचा 100

कुछ ऐसे कर सकते हैं बचाव...

तापमान मेंटेन करने के लिए कंगारू मदर केयर कारगर

डॉ. बैरवा ने बताया, कि हाइपोथर्मिया बच्चे में तापमान की कमी की वजह से होता है, जिसे ट्रांसपोर्ट इनक्यूबेटर या कंगारू मदर केयर से मेंटेन किया जा सकता है. डिलीवरी के तत्काल बाद नवजात के लिए करीब 35 डिग्री तापमान जरूरी होता है. इससे कम तापमान में हाइपोथर्मिया का खतरा रहता है, जो बच्चे के लिए जानलेवा होता है.

आपस में बातचीत करते हुए चिकित्सक और अन्य

दूध पिलाएं, या ग्लूकोज

चिकित्सकों का कहना है, कि ग्लूकोज की कमी से बच्चों की मौत होती है. ऐसे में बच्चों को दूध पिलाते हुए ही लेकर आना चाहिए. यदि दूध नहीं पिला रहे हैं तो 10 परसेंट ग्लूकोज को फीड करके उसको पिलाएं. यानि ग्लूकोस पिला दें या फिर थोड़ी सी शक्कर का मीठा पानी भी उन्हें पिला सकते हैं.

यह भी पढ़ेंः मायावती ने साधा निशाना, कहा- UP की तरह कोटा की मांओं से भी मिलें प्रियंका​​​​​​​

कुछ बच्चे ही इनक्यूबेटर में शिफ्ट होकर पहुंचते हैं

डॉ. बैरवा का कहना है, कि राज्य सरकार ने सभी जिला अस्पतालों और पेरी-फेरी में इनक्यूबेटर दिए हुए हैं. ताकि नवजात बच्चे को जब भी रेफर करना हो तो उसे इनक्यूबेटर से भेजा जाए. उसमें तापमान और ऑक्सीजन मेंटेन रखने के संसाधन होते हैं. यह करीब एक से डेढ़ लाख रुपए के आते हैं. पूरे साल में मुश्किल से कुछ बच्चे इनक्यूबेटर में शिफ्ट होकर भेजे जाते हैं. जितने भी बच्चे रेफर होकर आते हैं. वह जीप या वैन से ही आ रहे हैं, जिसके चलते रास्ते में उनकी तबीयत और ज्यादा गंभीर हो जाती है.

Intro:ज्यादातर नवजात बच्चों की मौत हुई है. उनमें तापमान की वजह ऑक्सीजन की कमी और ग्लूकोज की कमी के कारण ही सामने आए हैं साथ ही उन्होंने कहा कि यह नवजात जिनकी मृत्यु हो रही है या तो प्रीमेच्योर होते हैं या जन्म से ही गंभीर बीमारी से ग्रसित होते हैं ऐसे में उनकी मौत का कोई एक कारण नहीं होता है लेकिन ज्यादातर में हाइपोथर्मिया, हाइपोग्लाइसीमिया और हाइपोक्सिया शामिल है.


Body:कोटा.
कोटा का जेके लोन अस्पताल राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है. दिसंबर महीने में यहां पर 100 बच्चों की मौत हुई है. जिनमें 2 दिन में कभी 10, 11 या 9 आकड़ा भी रहा है. इस मुद्दे को लेकर ट्वीट बार्बी नेताओं में छिड़ा हुआ है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी ट्वीट कर कर प्रदेश की कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री के साथ-साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी पर भी निशाना साधा है और यूपी में स्वार्थ सिद्धि के लिए राजनीति करने जाना, कोटा में उनकी सरकार के दौरान ही बच्चों की मौत में नहीं पहुंचने पर आपत्ति जताई है. हालांकि उपचार कर रहे चिकित्सकों का कहना है कि ज्यादातर नवजात बच्चों की मौत हुई है. उनमें तापमान की वजह ऑक्सीजन की कमी और ग्लूकोज की कमी के कारण ही सामने आए हैं साथ ही उन्होंने कहा कि यह नवजात जिनकी मृत्यु हो रही है या तो प्रीमेच्योर होते हैं या जन्म से ही गंभीर बीमारी से ग्रसित होते हैं ऐसे में उनकी मौत का कोई एक कारण नहीं होता है लेकिन ज्यादातर में हाइपोथर्मिया, हाइपोग्लाइसीमिया और हाइपोक्सिया शामिल है.

रेफर करने पर बढ़ती है समस्या
जेके लोन अस्पताल के शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एएएल बैरवा का कहना है कि या मरने वाले 70 से 80% बच्चे न्यूबॉर्न होते हैं. इनमें सबसे ज्यादा संख्या उन बच्चों की होती है, जो दूसरी जगह से रेफर होकर आते हैं. उन्होंने कहा कि मृत नवजात ओं में करीब 70 फ़ीसदी बाहर से रेफर होकर आते हैं. उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि ठंड में बच्चों को दूसरी जगह से लाना खतरनाक है, इस ठंड में दूसरी जगह से आ रहे बच्चों को तीन तरह की समस्याएं सामने होती है.


ये है बचाव के उपाय
तापमान मेंटेन करने के लिए कंगारू मदर केयर कारगर
डॉ. बैरवा ने बताया कि हाइपोथर्मिया बच्चे में तापमान की कमी की वजह से होता है. जिसे ट्रांसपोर्ट इनक्यूबेटर या कंगारू मदर केयर से मेंटेन किया जा सकता है. डिलीवरी के तत्काल बाद नवजात के लिए करीब 35 डिग्री तापमान जरूरी होता है इससे कम तापमान में हाइपोथर्मिया का खतरा रहता है जो बच्चे के लिए जानलेवा होता है.

दूध पिलाए, या ग्लूकोज
चिकित्सकों का कहना है कि ग्लूकोज की कमी सभी बच्चों की मौत होती है. ऐसे में बच्चों को दूध पिलाते हुए ही लेकर आना चाहिए. यदि दूध नहीं पिला रहे हैं, तो 10 परसेंट ग्लूकोज को फीड करके उसको पिलाए यानी कि ग्लूकोस पिला दे या फिर थोड़ी सी शक्कर का मीठा पानी भी उन्हें पिला सकते हैं.


Conclusion:यदा-कदा आते हैं इनक्यूबेटर में शिफ्ट होकर
डॉ. बैरवा का कहना है कि राज्य सरकार ने सभी जिला अस्पतालों और पेरीफेरी में इनक्यूबेटर दिए हुए हैं, ताकि नवजात बच्चे को जब भी रेफर करना हो तो उसे इनक्यूबेटर से भेजा जाए. उसमें तापमान और ऑक्सीजन मेंटेन रखने के संसाधन होते हैं. यह करीब एक से डेढ़ लाख रुपए के आते हैं. पूरे साल में मुश्किल से कुछ बच्चे इनक्यूबेटर में शिफ्ट होकर भेजे जाते हैं, लेकिन जितने भी बच्चे रेफर होकर आते हैं वह तो जीप या वैन से ही आ रहे हैं. जिसके चलते ही रास्ते में उनकी तबियत और ज्यादा गंभीर हो जाती है.



बाइट-- डॉ. एएएल बैरवा, एचओडी पीडियाट्रिक, कोटा मेडिकल कॉलेज

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