कोटा. चंबल के किनारे कुन्हाड़ी इलाके में प्राचीन प्रतिमाएं करीब 1100 साल पुरानी हैं. इनमें से अधिकांश को राजा महाराजाओं के समय में ही स्थापित किया गया था. साथ ही कुछ प्रतिमाएं तो ऐसी हैं जो कि संरक्षण योग्य हैं.
नगर विकास न्यास कोटा में 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत से रिवरफ्रंट का निर्माण करवा रहा है. ऐसे में धरोहर के संरक्षण का मुद्दा उठ खड़ा हुआ है. यहां मौजूद प्राचीन मूर्तियों में भगवान विष्णु के नौ स्वरूप हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि उनकी कई पीढ़ियां इन्हें पूजते आ रही है. इसके अलावा भगवान शंकर का एक पूरा प्राचीन मंदिर है. भगवान गणेश की भी प्राचीन मूर्ति है. अब इन्हें रिवरफ्रंट में दबाया जा रहा है.
सरकार सहेजे, ये धरोहर हैं
इन प्राचीन धरोहरों और देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को सहेजने की दरकार है. साथ ही इनका पुरातत्व महत्व भी है. साथ ही इसने स्थानीय लोगों की आस्था और जन भावना जुड़ी है. इलाके के पार्षद नगर विकास न्यास से कई बार मांग भी कर चुके हैं.
इन प्रतिमाओं को उठाकर ऊपर रखने की मांग भी की जा चुकी है. रिवर फ्रंट का निर्माण कर रही एजेंसी ने मंदिर में जाने वाली प्राचीन सीढ़ियों और रास्ते को बंद कर दिया है. अब लोग पूजा करने के लिए भी नीचे नहीं जा पाएंगे. हालांकि यहां पर आरसीसी की दीवारें बनाई जा रही हैं. जल्द ही यहां पर आरसीसी की बड़ी दीवार खड़ी कर दी जाएगी.
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एनीकट के चलते पानी भर जाएगा
रिवर फ्रंट बनने के बाद चंबल नदी में बैराज से लेकर नयापुरा तक पानी भरा रहेगा. इसके लिए एक छोटा एनीकट बनाया जा रहा है. इसके चलते नदी में साल भर पानी रहेगा. साथ ही नगर पुल के दोनों तरफ आरसीसी की ऊंची दीवारें बनाई जा रही हैं. ऐसे में जब यहां पर पानी भर जाएगा तो स्थानीय लोग नहीं जा पाएंगे और यह प्रतिमाएं भी डूब जाएंगी.
यूआईटी के अधिकारी नहीं दे रहे जवाब
इस संबंध में ईटीवी भारत ने नगर विकास न्यास के सचिव राजेश जोशी और सलाहकार आरडी मीणा से भी बात करने की कोशिश की. लेकिन उन्होंने कुछ भी जवाब देने से इनकार कर दिया है. इन प्रतिमाओं को ना तो निकाला गया है, ना कहीं और स्थापित करने का प्लान है. बल्कि सरिए की फेंसिंग कर दी गई है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि वे लोग कई बार यहां आए. उन्होंने कहा कि प्रतिमाओं को यूआईटी में रख दिया जाएगा. लेकिन काम लगातार चल रहा है और प्रतिमाएं दबती जा रही हैं. न तो इन्हें यहां से हटाया जा रहा है और न ही ऐसी परिस्थिति दिखाई दे रही है कि भविष्य में यहां स्थानीय लोग पूजा कर सकें. स्थानीय लोगों ने मंदिर को ऐतिहासिक और आस्था के स्थल के तौर पर विकसित करने की मांग की है.