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कचरे से अटी रहने वाली जोधपुर की विरासत 'तापी बावड़ी' में अब हो रहा जल संरक्षण

सूर्यनगरी में यूं तो प्राचीन जल संरक्षण के कई स्त्रोत नजर आते हैं, लेकिन उनमें सबसे खास है जोधपुर शहर की तापी बावड़ी. यह बावड़ी इसलिए भी खास है, क्योंकि इसका निर्माण विशेष तरीके से किया गया है.

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Published : Nov 16, 2019, 12:32 PM IST

जोधपुर. शहर की तापी बावड़ी अपने आप में खास पहचान रखती है, क्योंकि इसका निर्माण विशेष तरीके से किया गया है. इसी के चलते सर्दी और गर्मी में इसका पानी मौसम के अनुसार उपलब्ध होता है. करीब डेढ़ सौ फीट गहरी इस बावड़ी का निर्माण साल 1608 में तापो जी ने करवाया था, जिसके चलते इसका नाम तापी बावड़ी पड़ा और यह बावड़ी तापी बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गई.

जोधपुर की तापी बावड़ी जल संरक्षण का पर्याय बनी

बावड़ी की खास विशेषताएं भी है, इसका निर्माण इतना विशाल है कि चार बड़े दरवाजे जिन्हें पोल कहा जाता है, बनाए गए हैं. साथ ही अलग-अलग चार भागों में बावड़ी का निर्माण करवाया गया है. एक दौर ऐसा भी आया, जब यह बावड़ी पूरी तरह कचरा केंद्र बन गई. लेकिन करीब डेढ़ साल पहले एक आयरिश पर्यटक केरोन की नजर इस पर पड़ी तो उसने इसकी सफाई का जिम्मा उठाया.

केरोन की लगन देख स्थानीय युवा आगे आए. इसके बाद मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट और इंटेक्स चैप्टर जोधपुर ने मदद की. कई टन कचरा यहां से निकाला गया और बावड़ी के पानी को शुद्ध किया गया. आज बावड़ी का पानी पूरी तरह से शुद्ध है और लोग इसे घरों में भी काम में लेने लगे हैं. बता दें कि करीब डेढ़ हजार घरों में यहां का पानी जाता है.

जोधपुर शहर की बड़ी समस्या है भूजल स्तर में बढ़ोतरी, जिसके चलते जन स्वास्थ्य विभाग भी बावड़ी के पानी का दोहन करने लगा है. जिससे जलस्तर नहीं बढ़ सका. बावड़ी की सफाई में महती भूमिका निभाने वाले क्षेत्रीय युवा राहुल बोड़ा ने बताया कि आयरिश पर्यटक की पहल के चलते ही आज यह बावड़ी साफ हुई है और उसका पानी पीने योग्य है.

यह भी पढ़ें- निकाय चुनाव 2019: पहली बार वोट डाल रहे युवाओं ने बताया ऐसी होनी शहरी सरकार

कार्तिक पूर्णिमा पर इस वर्ष बावड़ी को एक बेहतरीन जल स्रोत के रूप में बताने के लिए दीपदान का आयोजन किया गया. जिसमें जनशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी शामिल हुए. शेखावत ने जल स्रोतों के संरक्षण की इस पहल को भी सराहा.

जोधपुर. शहर की तापी बावड़ी अपने आप में खास पहचान रखती है, क्योंकि इसका निर्माण विशेष तरीके से किया गया है. इसी के चलते सर्दी और गर्मी में इसका पानी मौसम के अनुसार उपलब्ध होता है. करीब डेढ़ सौ फीट गहरी इस बावड़ी का निर्माण साल 1608 में तापो जी ने करवाया था, जिसके चलते इसका नाम तापी बावड़ी पड़ा और यह बावड़ी तापी बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गई.

जोधपुर की तापी बावड़ी जल संरक्षण का पर्याय बनी

बावड़ी की खास विशेषताएं भी है, इसका निर्माण इतना विशाल है कि चार बड़े दरवाजे जिन्हें पोल कहा जाता है, बनाए गए हैं. साथ ही अलग-अलग चार भागों में बावड़ी का निर्माण करवाया गया है. एक दौर ऐसा भी आया, जब यह बावड़ी पूरी तरह कचरा केंद्र बन गई. लेकिन करीब डेढ़ साल पहले एक आयरिश पर्यटक केरोन की नजर इस पर पड़ी तो उसने इसकी सफाई का जिम्मा उठाया.

केरोन की लगन देख स्थानीय युवा आगे आए. इसके बाद मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट और इंटेक्स चैप्टर जोधपुर ने मदद की. कई टन कचरा यहां से निकाला गया और बावड़ी के पानी को शुद्ध किया गया. आज बावड़ी का पानी पूरी तरह से शुद्ध है और लोग इसे घरों में भी काम में लेने लगे हैं. बता दें कि करीब डेढ़ हजार घरों में यहां का पानी जाता है.

जोधपुर शहर की बड़ी समस्या है भूजल स्तर में बढ़ोतरी, जिसके चलते जन स्वास्थ्य विभाग भी बावड़ी के पानी का दोहन करने लगा है. जिससे जलस्तर नहीं बढ़ सका. बावड़ी की सफाई में महती भूमिका निभाने वाले क्षेत्रीय युवा राहुल बोड़ा ने बताया कि आयरिश पर्यटक की पहल के चलते ही आज यह बावड़ी साफ हुई है और उसका पानी पीने योग्य है.

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कार्तिक पूर्णिमा पर इस वर्ष बावड़ी को एक बेहतरीन जल स्रोत के रूप में बताने के लिए दीपदान का आयोजन किया गया. जिसमें जनशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी शामिल हुए. शेखावत ने जल स्रोतों के संरक्षण की इस पहल को भी सराहा.

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Body:जोधपुर। जोधपुर यूं तो सूर्य नगरी में प्राचीन जल सरंक्षण के कई स्त्रोत नजर आते हैं लेकिन उनमें सबसे खास है जोधपुर शहर की तापी बावड़ी यह बावड़ी इसलिए भी खास है क्योंकि इसका निर्माण विशेष तरीके से किया गया है जिसके चलते सर्दी व गर्मी में इसका पानी मौसम के अनुसार उपलब्ध होता है करीब डेढ़ सौ फीट गैरी इस बावड़ी का निर्माण 1608 में तापो जी ने करवाया था जिसके चलते इसका नाम तापी बावड़ी पड़ा और यह बावड़ी तापी बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गई बावड़ी की खास विशेषताएं भी है इसका निर्माण इतना विशाल है कि चार बड़े दरवाजे जिन्हें पोल कहा जाता है बनाए गए हैं और अलग-अलग चार भागों में बावड़ी का निर्माण करवाया गया । एक दौर ऐसा भी आया जब यह बावड़ी पूरी तरह कचरा केंद्र बन गई। लेकिन करीब डेढ़ साल पहले एक आयरिश पर्यटक केरोन की नजर इस पर पड़ी तो उसने इसकी सफाई का जिम्मा उठाया। केरोन की लगन देख स्थानीय युवा आगे आए। इसके बाद मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट एवं इंटेक्स चैप्टर जोधपुर ने मदद की कई टन कचरा यहां से निकाला गया और बावड़ी के पानी को शुद्ध किया गया आज बावड़ी का पानी पूरी तरह से शुद्ध है और लोग इसे घरों में काम भी लेने लगे हैं करीब डेढ़ हजार घरों में यहां का पानी जाता है । जोधपुर शहर की बड़ी समस्या है भूजल स्तर में बढ़ोतरी जिसके चलते जन स्वास्थ्य विभाग भी बावड़ी के पानी का दोहन करने लगा है जिससे कि जलस्तर नहीं बढ़ सके। बावड़ी की सफाई में महती भूमिका निभाने वाले क्षेत्रीय युवा राहुल वोडा बताते हैं कि आयरिश पर्यटक की पहल के चलते ही आज यह बावड़ी साफ हुई है और उसका पानी पीने योग्य है। कार्तिक पूर्णिमा पर इस वर्ष बावड़ी को एक बेहतरीन जल स्रोत के रूप में बताने के लिए दीपदान का आयोजन किया गया जिसमें जनशक्ति मंत्री गजल सिंह शेखावत भी शामिल हुए शेखावत ने जल स्रोतों के संरक्षण की इस पहल को भी सराहा था।
बाईट 1 राहुल बोड़ा, स्थानीय युवा
बाईट 2 शुभम पुरोहित, स्थानीय युवा
बाईट 3 राहुल बोड़ा, स्थानीय युवा।


Conclusion:
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