जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने उम्र कैद की सजा काट रहे कैदी को संतान उत्पत्ति के लिए 15 दिन की पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था (Rajasthan HC Grants Parole To Father A child). ये फैसला देशभर में सुर्खियों में रहा. इस आदेश के साथ ही प्रदेश सरकार के सामने एक नई मुसीबत खड़ी हो गई. दरअसल, हाइकोर्ट के ऑर्डर के बाद राज्य सरकार के पास ऐसे कई कैदियों के आवेदन आने लगे जिसमें बच्चा पैदा करने के लिए जेल से आजादी की मांग थी.
जेल में सजा काट रहे कैदियों ने संतान के लिए पैरोल आवेदन करने शुरू कर दिए. इस नई परेशानी के समाधान के लिए ही राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली और आदेश को चुनौती दी. सरकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच में रखी गई है. फैसला सही है या गलत इस पर अब सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा (Parole To Have Child Order).
क्या है मामला?: 5 अप्रैल 2022 को राजस्थान हाईकोर्ट मुख्यपीठ के वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता और न्यायाधीश फरजंद अली की खंडपीठ ने अजमेर जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे नंदलाल को 15 दिन के लिए पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था. यह आदेश पत्नी से संबंध बनाकर संतान पैदा करने के लिए दिया गया था (Parole To Have Child Order). जजों ने माना था कि पत्नी की भी अपनी जरूरतें हैं, मां बनना उसका प्राकृतिक अधिकार है, इससे उसे वंचित नहीं किया जाना चाहिए. जजों ने वैदिक संस्कारों समेत दूसरे धर्मों की मान्यताओं का भी हवाला देते हुए कहा कि गर्भ धारण करना धार्मिक परंपराओं के हिसाब से भी बहुत अहम है.
पढ़ें-पिता बनने के लिए कैदी को मिली 15 दिन की पैरोल
पैरोल याचिका में क्या कहा हाईकोर्ट ने: 34 साल का नंदलाल भीलवाड़ा की सेशंस कोर्ट ने 2019 में एक मामले में उम्र कैद की सजा दी थी. उसके बाद से वह अजमेर की जेल में बंद है और उसकी पत्नी रेखा ने अजमेर की डिस्ट्रिक्ट पैरोल कमेटी के अध्यक्ष को आवेदन देकर यह मांग की थी कि उसके पति को पैरोल दी जाए जिससे वह मां बन सके. अजमेर के कलेक्टर जो कि पैरोल कमेटी के अध्यक्ष भी हैं, ने इस आवेदन को लंबित रखा. इस बीच यह मामला राजस्थान हाई कोर्ट पहुंच गया और वहां 2 जजों की बेंच ने यह कहा कि भले ही राज्य के पैरोल से जुड़े नियमों- 'राजस्थान प्रिजनर्स रिलीज ऑन पैरोल रूल्स' में पत्नी से संबंध बनाने के लिए कैदी की रिहाई का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन महिला के अधिकार को देखते हुए हम कैदी को रिहा करने का आदेश दे रहे हैं.