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Parole To Father Child Case: SC ने राजस्थान HC के फैसले में हस्तक्षेप से किया इनकार, राज्य सरकार को दी सलाह - Parole To Father Child Case

सर्वोच्च न्यायालय ने संतान उत्पत्ति के लिए पैरोल (Parole To Have Child Order) मांगने के राजस्थान HC के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. हाईकोर्ट ने पत्नी से संबंध बनाकर पिता बनने के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक कैदी को 15 दिन के पैरोल की याचिका स्वीकृत कर ली थी जिसके खिलाफ प्रदेश सरकार ने SC से गुहार लगाई थी.

Parole To Father Child Case
SC ने राजस्थान HC के फैसले में हस्तक्षेप से किया इनकार
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Published : Aug 3, 2022, 10:23 AM IST

जोधपुर. सन्तान उत्पत्ति पैरोल मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले में दखल देने से देश की सर्वोच्च अदालत ने इनकार कर दिया है. राजस्थान हाईकोर्ट (जोधपुर मुख्यपीठ) ने एक कैदी को 15 दिन का आक्समिक पैरोल ग्रांट दिया था (SC on Rajasthan HC Verdict). इसके साथ एससी ने और भी कई टिप्पणियां की हैं. कहा है कि भविष्य में यदि ऐसा कोई मामला आए तो हाईकोर्ट उसे मेरिट पर तय करे. कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारों की भी बात की. कहा- राज्य सरकार को पूरा अधिकार है कि वो अपना पक्ष रखे. जरूरी नहीं कि एक जजमेंट के आधार पर हर बार आकस्मिक पैरोल ग्रांट की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर राजस्थान सरकार को हाईकोर्ट में ही अपील करने के निर्देश दिए हैं.

राजस्थान हाईकोर्ट ने अजमेर के नन्द लाल को सन्तान उत्पति के लिए 15 दिन की पैरोल मंजूर की थी (Parole To Have Child Order). हाईकोर्ट ने यह आदेश 05 अप्रैल 2022 को जारी किया था. जिसके बाद से ही राज्य सरकार की परेशानी बढ़ गई थी क्योंकि जेलो में बंद कैदियों ने सन्तान उत्पति के लिए आकस्मिक पैरोल के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया था. सूत्रों की मानें तो दो मामले हाईकोर्ट में सूचीबद्ध भी हुए लेकिन राज्य सरकार की ओर से सर्वोच्च अदालत में एसएलपी लम्बित होने के आधार पर सुनवाई को मुलतवी भी करवाया है.

पढ़ें-Parole To Have Child Order: पिता बनने के लिए पैरोल! राजस्थान सरकार ने HC के फैसले को SC में किया चैलेंज

सर्वोच्च अदालत के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने हाईकोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए माना कि कई ऐसे बिन्दू हैं जिसमें टिप्पणी की जा सकती है. कोर्ट ने आगे कहा कि भविष्य में राज्य सरकार को पूरा अधिकार है कि वो हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखे. ऐसे मामलो में यदि कोई ओर तीसरा व्यक्ति याचिकाएं पेश करता है तो हाईकोर्ट उसे मेरिट पर तय करेगा.

नंदलाल को पैरोल: 05 अप्रैल 2022 को राजस्थान हाईकोर्ट मुख्यपीठ के वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता और न्यायाधीश फरजंद अली की खंडपीठ ने अजमेर जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे नंदलाल को 15 दिन के लिए पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था. ये आदेश पत्नी से संबंध बनाकर संतान पैदा करने के लिए दिया गया था. जजों ने माना था कि पत्नी की भी अपनी जरूरतें हैं, मां बनना उसका प्राकृतिक अधिकार है, इससे उसे वंचित नहीं किया जाना चाहिए. जजों ने वैदिक संस्कारों समेत दूसरे धर्मों की मान्यताओं का भी हवाला देते हुए कहा कि गर्भ धारण करना धार्मिक परंपराओं के हिसाब से भी बहुत अहम है.

पैरोल याचिका पर हाईकोर्ट का फैसला: 34 साल के नंदलाल को भीलवाड़ा सेशंस कोर्ट ने 2019 में उम्र कैद की सजा दी थी. उसके बाद से वह अजमेर की जेल में बंद है. उसकी पत्नी रेखा ने अजमेर की डिस्ट्रिक्ट पैरोल कमेटी के अध्यक्ष को आवेदन देकर ये मांग की थी कि उसके पति को पैरोल दी जाए जिससे वह मां बन सके.अजमेर के कलेक्टर जो कि पैरोल कमेटी के अध्यक्ष भी हैं, ने इस आवेदन को लंबित रखा. इस बीच यह मामला राजस्थान हाई कोर्ट पहुंच गया और वहां 2 जजों की बेंच ने यह कहा कि भले ही राज्य के पैरोल से जुड़े नियमों- 'राजस्थान प्रिजनर्स रिलीज ऑन पैरोल रूल्स' में पत्नी से संबंध बनाने के लिए कैदी की रिहाई का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन महिला के अधिकार को देखते हुए हम कैदी को रिहा करने का आदेश दे रहे हैं.

जोधपुर. सन्तान उत्पत्ति पैरोल मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले में दखल देने से देश की सर्वोच्च अदालत ने इनकार कर दिया है. राजस्थान हाईकोर्ट (जोधपुर मुख्यपीठ) ने एक कैदी को 15 दिन का आक्समिक पैरोल ग्रांट दिया था (SC on Rajasthan HC Verdict). इसके साथ एससी ने और भी कई टिप्पणियां की हैं. कहा है कि भविष्य में यदि ऐसा कोई मामला आए तो हाईकोर्ट उसे मेरिट पर तय करे. कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारों की भी बात की. कहा- राज्य सरकार को पूरा अधिकार है कि वो अपना पक्ष रखे. जरूरी नहीं कि एक जजमेंट के आधार पर हर बार आकस्मिक पैरोल ग्रांट की जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर राजस्थान सरकार को हाईकोर्ट में ही अपील करने के निर्देश दिए हैं.

राजस्थान हाईकोर्ट ने अजमेर के नन्द लाल को सन्तान उत्पति के लिए 15 दिन की पैरोल मंजूर की थी (Parole To Have Child Order). हाईकोर्ट ने यह आदेश 05 अप्रैल 2022 को जारी किया था. जिसके बाद से ही राज्य सरकार की परेशानी बढ़ गई थी क्योंकि जेलो में बंद कैदियों ने सन्तान उत्पति के लिए आकस्मिक पैरोल के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया था. सूत्रों की मानें तो दो मामले हाईकोर्ट में सूचीबद्ध भी हुए लेकिन राज्य सरकार की ओर से सर्वोच्च अदालत में एसएलपी लम्बित होने के आधार पर सुनवाई को मुलतवी भी करवाया है.

पढ़ें-Parole To Have Child Order: पिता बनने के लिए पैरोल! राजस्थान सरकार ने HC के फैसले को SC में किया चैलेंज

सर्वोच्च अदालत के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने हाईकोर्ट के निर्णय में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए माना कि कई ऐसे बिन्दू हैं जिसमें टिप्पणी की जा सकती है. कोर्ट ने आगे कहा कि भविष्य में राज्य सरकार को पूरा अधिकार है कि वो हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखे. ऐसे मामलो में यदि कोई ओर तीसरा व्यक्ति याचिकाएं पेश करता है तो हाईकोर्ट उसे मेरिट पर तय करेगा.

नंदलाल को पैरोल: 05 अप्रैल 2022 को राजस्थान हाईकोर्ट मुख्यपीठ के वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता और न्यायाधीश फरजंद अली की खंडपीठ ने अजमेर जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे नंदलाल को 15 दिन के लिए पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया था. ये आदेश पत्नी से संबंध बनाकर संतान पैदा करने के लिए दिया गया था. जजों ने माना था कि पत्नी की भी अपनी जरूरतें हैं, मां बनना उसका प्राकृतिक अधिकार है, इससे उसे वंचित नहीं किया जाना चाहिए. जजों ने वैदिक संस्कारों समेत दूसरे धर्मों की मान्यताओं का भी हवाला देते हुए कहा कि गर्भ धारण करना धार्मिक परंपराओं के हिसाब से भी बहुत अहम है.

पैरोल याचिका पर हाईकोर्ट का फैसला: 34 साल के नंदलाल को भीलवाड़ा सेशंस कोर्ट ने 2019 में उम्र कैद की सजा दी थी. उसके बाद से वह अजमेर की जेल में बंद है. उसकी पत्नी रेखा ने अजमेर की डिस्ट्रिक्ट पैरोल कमेटी के अध्यक्ष को आवेदन देकर ये मांग की थी कि उसके पति को पैरोल दी जाए जिससे वह मां बन सके.अजमेर के कलेक्टर जो कि पैरोल कमेटी के अध्यक्ष भी हैं, ने इस आवेदन को लंबित रखा. इस बीच यह मामला राजस्थान हाई कोर्ट पहुंच गया और वहां 2 जजों की बेंच ने यह कहा कि भले ही राज्य के पैरोल से जुड़े नियमों- 'राजस्थान प्रिजनर्स रिलीज ऑन पैरोल रूल्स' में पत्नी से संबंध बनाने के लिए कैदी की रिहाई का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, लेकिन महिला के अधिकार को देखते हुए हम कैदी को रिहा करने का आदेश दे रहे हैं.

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