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Rajasthan Highcourt: कैट ही कर सकती है केन्द्रीय कार्मिकों के सेवा मामलों की सुनवाई

केंद्रीय सेवा में कार्यरत कार्मिकों के सेवा मामलों की सुनवाई का अधिकार केवल केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण को ही है. हाईकोर्ट में केंद्रीय कार्मिकों (Rajasthan Highcourt) की सेवा प्रकरण से जुड़ी याचिका पोषणीय नहीं है.

Rajasthan Highcourt
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Published : Sep 23, 2022, 7:42 PM IST

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई (Rajasthan Highcourt) करते हुए कहा कि केंद्रीय सेवा में कार्यरत कार्मिकों के सेवा मामलों (Service matters of central personnel) को विचारित करने का वैधानिक क्षेत्राधिकार केवल केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण को ही है, हाईकोर्ट में याचिका पोषणीय नहीं है. वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश फरजंद अली की खंडपीठ के समक्ष भारत सरकार के श्रम विभाग और क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने खंडपीठ के समक्ष स्पेशल अपील पेश की.

उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता प्रेमचंद देशांत्री क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग में कनिष्ठ लिपिक हैं और उसने हाईकोर्ट की एकलपीठ के समक्ष ' सेक्टर सुपरवाइजर' पद पर नियमित पद्दोनती चाहने के लिए याचिका दायर की. याचिका के नोटिस मिलने पर क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग के पैनल अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने याचिका पोषणीय नहीं होने और याचिका ख़ारिज करने के लिए वर्ष 2018 में प्रार्थना पत्र पेश किया.

पढ़ें. Rajasthan Highcourt : चारागाह भूमि आवंटन मामले में कलेक्टर सहित अधिकारियों को नोटिस जारी

इस प्रार्थना पत्र की सुनवाई के पश्चात एकलपीठ न्यायाधीश ने 1985 के तहत प्रदत्त वैधानिक उपचार को वैकल्पिक उपचार मानते हुए विभाग का प्रार्थना पत्र दिनांक 27 अप्रैल 2022 को ख़ारिज कर दी. एकलपीठ के आदेश के खिलाफ खंडपीठ के समक्ष अपील पेश की गई. अपील की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता खिलेरी ने बताया कि केंद्रीय/भारत सरकार ने प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम 1985 के अधिनियमित कर रखा है और भारत सरकार के श्रम विभाग सहित सभी अन्य विभागों में कार्यरत कार्मिकों के सेवा मामलों की सुनवाई के लिए अधिकरण को अधिकृत कर रखा है जो कि वैकल्पिक उपचार व्यवस्था नहीं होकर वैधानिक उपचार व्यवस्था है. ऐसे में कार्मिक विकल्प के रूप में सीधे हाइकोर्ट में याचिका दाखिल नहीं कर सकते हैं.

पढ़ें. Rajasthan High Court: दोनों निगम आयुक्त पेश होकर शहर की सफाई व्यवस्था के हालातों की दें जानकारी

अधिवक्ता खिलेरी ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता प्रेमचंद की ओर से याचिका दायर करते समय केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण जोधपुर पीठ अस्तित्व में थी और वर्तमान में भी कार्यरत हैं. कार्मिक ओरिजनल एप्लीकेशन (OA) पेश कर न्याय की मांग कर सकता है लेकिन याचिकाकर्ता ने कानून में प्रदत्त वैधानिक उपचार को नजरंदाज कर सीधे हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की है जो चलने योग्य नहीं हैं. 1985 के अधिनियम में हाइकोर्ट के क्षेत्राधिकार को बाधित किया है जिस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने भी भारत संघ बनाम दीपचंद पांडेय प्रकरण और भारत संघ बनाम परमानंद प्रकरण में प्रतिपादित किया है कि केंद्रीय सरकार के कार्मिकों के लिए वैधानिक उपचार अधिकरण के समक्ष ही है.

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह माना कि भारत संघ और क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग के अधिवक्ता की ओर से याचिका की पोषणीयता के सम्बन्ध में ली गई प्रारम्भिक आपत्ति सही है और याचिका पोषणीय नहीं है. न्याय हित में याचिका को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण को स्थानांतरित करने का आदेश दिया और साथ ही कार्मिक याचिकाकर्ता को समुचित प्रारूप में आवश्यक वाद पेश करने के लिए भी आदेशित करते हुए अपीलार्थी भारत संघ और क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग की स्पेशल अपील स्वीकार की गई.

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई (Rajasthan Highcourt) करते हुए कहा कि केंद्रीय सेवा में कार्यरत कार्मिकों के सेवा मामलों (Service matters of central personnel) को विचारित करने का वैधानिक क्षेत्राधिकार केवल केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण को ही है, हाईकोर्ट में याचिका पोषणीय नहीं है. वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश फरजंद अली की खंडपीठ के समक्ष भारत सरकार के श्रम विभाग और क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने खंडपीठ के समक्ष स्पेशल अपील पेश की.

उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता प्रेमचंद देशांत्री क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग में कनिष्ठ लिपिक हैं और उसने हाईकोर्ट की एकलपीठ के समक्ष ' सेक्टर सुपरवाइजर' पद पर नियमित पद्दोनती चाहने के लिए याचिका दायर की. याचिका के नोटिस मिलने पर क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग के पैनल अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने याचिका पोषणीय नहीं होने और याचिका ख़ारिज करने के लिए वर्ष 2018 में प्रार्थना पत्र पेश किया.

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इस प्रार्थना पत्र की सुनवाई के पश्चात एकलपीठ न्यायाधीश ने 1985 के तहत प्रदत्त वैधानिक उपचार को वैकल्पिक उपचार मानते हुए विभाग का प्रार्थना पत्र दिनांक 27 अप्रैल 2022 को ख़ारिज कर दी. एकलपीठ के आदेश के खिलाफ खंडपीठ के समक्ष अपील पेश की गई. अपील की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता खिलेरी ने बताया कि केंद्रीय/भारत सरकार ने प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम 1985 के अधिनियमित कर रखा है और भारत सरकार के श्रम विभाग सहित सभी अन्य विभागों में कार्यरत कार्मिकों के सेवा मामलों की सुनवाई के लिए अधिकरण को अधिकृत कर रखा है जो कि वैकल्पिक उपचार व्यवस्था नहीं होकर वैधानिक उपचार व्यवस्था है. ऐसे में कार्मिक विकल्प के रूप में सीधे हाइकोर्ट में याचिका दाखिल नहीं कर सकते हैं.

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अधिवक्ता खिलेरी ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता प्रेमचंद की ओर से याचिका दायर करते समय केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण जोधपुर पीठ अस्तित्व में थी और वर्तमान में भी कार्यरत हैं. कार्मिक ओरिजनल एप्लीकेशन (OA) पेश कर न्याय की मांग कर सकता है लेकिन याचिकाकर्ता ने कानून में प्रदत्त वैधानिक उपचार को नजरंदाज कर सीधे हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की है जो चलने योग्य नहीं हैं. 1985 के अधिनियम में हाइकोर्ट के क्षेत्राधिकार को बाधित किया है जिस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने भी भारत संघ बनाम दीपचंद पांडेय प्रकरण और भारत संघ बनाम परमानंद प्रकरण में प्रतिपादित किया है कि केंद्रीय सरकार के कार्मिकों के लिए वैधानिक उपचार अधिकरण के समक्ष ही है.

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह माना कि भारत संघ और क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग के अधिवक्ता की ओर से याचिका की पोषणीयता के सम्बन्ध में ली गई प्रारम्भिक आपत्ति सही है और याचिका पोषणीय नहीं है. न्याय हित में याचिका को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण को स्थानांतरित करने का आदेश दिया और साथ ही कार्मिक याचिकाकर्ता को समुचित प्रारूप में आवश्यक वाद पेश करने के लिए भी आदेशित करते हुए अपीलार्थी भारत संघ और क्षेत्रीय भविष्य निधि संगठन विभाग की स्पेशल अपील स्वीकार की गई.

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