जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सरकारी कर्मचारी महिलाओं के मातृत्व अवकाश से जुड़ी राज्य सरकार की एक अहम अपील को खारिज करते हुए एकलपीठ के आदेश को यथावत रखते हुए कहा कि चाहें बच्चे का जन्म नियुक्ति के कुछ दिन पूर्व हुआ तो भी महिला कर्मचारी मातृत्व अवकाश की हकदार होगी.
राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत मोहंती और न्यायाधीश विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने राज्य सरकार बनाम नीरज के मामले में एकलपीठ की ओर से पारित आदेश को यथावत रखते हुए सरकार की अपील को खारिज कर दिया. राज्य सरकार ने एकलपीठ के न्यायाधीश दिनेश मेहता की ओर से 07 दिसम्बर 2020 को पारित आदेश के खिलाफ अपील पेश करते हुए बताया कि महिला कर्मचारी नीरज को 04 जून 2016 को शारीरिक शिक्षक के पद पर नियुक्त किया गया था और उसने 06 जून 2016 को उसने नियुक्ति ग्रहण करते हुए राजकीय सेवा में शामिल हुईं, जिसके बाद उसने 21 जून 2016 को मातृत्व अवकाश देने के लिए आवेदन दिया, जिसमें बताया कि उसने 15 मई 2016 को एक बच्चे को जन्म दिया है. बच्चे के जन्म के 21 दिन बाद वह राजकीय सेवा में शामिल हुई है.
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सरकार की ओर से बताया गया कि उसने 142 दिनों तक अनुपस्थित रहने के बाद 10 नवम्बर 2016 को वापस ड्यूटी ज्वॉइन कर ली थी. सरकार की ओर से कहा गया कि क्योंकि बच्चे का जन्म सरकारी नियुक्ति से पहले हो गया है, इसीलिए वह मातृत्व अवकाश की हकदार नहीं थी. महिला कर्मचारी की ओर से अधिवक्ता भावित शर्मा ने कहा कि भुगतान सहित मातृत्व अवकाश देने के अनुरोध को राज्य सरकार ने अस्वीकार कर दिया था, इसके अलावा दो साल का प्रोबेशन पीरियड पूरा होने के बावजूद उसके प्रोबेशन पीरियड की अवधि को 112 दिन बढ़ाते हुए 26 सितम्बर 2018 से स्थायीकरण किया गया है, जबकि स्थायीकरण 05 जून 2016 से ही प्रभावी होना था.
एकलपीठ ने भी अपने आदेश में माना है कि आरएसआर का नियम 103 कर्मचारी केन्द्रित है और इसका बच्चे के जन्म की तारीख के साथ कोई संबध नहीं है. उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सभी तर्कों को सुनने के बाद राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए एकलपीठ के निर्णय को ही यथावत रखा है.