जोधपुर. याचिकाकर्ता अधिवक्ता रितुराज सिंह ने कोर्ट को बताया गया कि राजस्थान फॉरेस्ट पॉलिसी के अनुसार (Resources Available as per Rajasthan Forest Policy) सरकार रेंज स्तर पर वाहन एवं अन्य संसाधन उपलब्ध कराने के प्रावधान हैं. याचिकाकर्ता द्वारा कंडम दोपहिया वाहनों की तस्वीरें दिखा बताया गया कि विभाग के वाहनों के संबंध में जवाब दायर कर जो आंकड़े पेश किए गए हैं, उनमें से कई दोपहिया वाहन नकारा चलने योग्य नहीं हैं.
प्रतिवादी वन विभाग के पेश जवाब एवं विभागीय दस्तावेजों में से ही बताया गया कि रेंज देवगढ़, बिजागुडा, झीलवाड़ा, बोखाडा, भीम उपरोक्त सभी रेंज कार्यालयों पर एक भी चार पहिया वाहन नहीं है. दोपहिया वाहन के संबंध में याचिकाकर्ता के दायर जवाब में बताया गया कि रेंज देवगढ़, बिजागुडा, झीलवाड़ा, भीम में एक भी दुपहिया वाहन नहीं है. याचिकाकर्ता ने बताया गया कि इसके विपरीत रणथंभौर के रेंज कार्यालयो तालेड़ा, कुंडेरा, खंडार, फलोदी, आदि पर विभाग द्वारा दो-दो चौपहिया वाहन उपलब्ध कराए गए हैं. विभाग के संसाधन बंटवारे को लेकर गैर बाघ परियोजनाओं एवं बाघ परियोजनाओं में असमानता बरती जा रही है.
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कुंभलगढ़ और टॉडगढ़ में कैमरा ट्रैप की स्थिति...
याचिका में बताया गया कि वाटर होल पद्धति से वन्यजीव गणना सटीक नहीं मानी जा सकती, इसलिए कैमरा ट्रैप पद्धति एवं अन्य वैज्ञानिक पद्धतियों से वन्यजीव गणना की जानी चाहिए. कुंभलगढ़ एवं टॉडगढ़ वन्यजीव अभयारण्य का क्षेत्र लगभग 1100 स्क्वायर किलोमीटर का है, जिसमें सरकारी दस्तावेज अनुरूप 38 कैमरा ट्रैक उपलब्ध कराए गए हैं, जबकि रणथंभौर का क्षेत्र लगभग 400 स्क्वायर किलोमीटर है. जिसमें 160 कैमरा ट्रैप उपलब्ध कराए गए हैं. क्योंकि रणथंभौर एवं मुकुंदरा बाघ परियोजना में संसाधनों का उपयोग बखूबी किया जा रहा है. इसलिए वहां पर ट्रैप कैमरों में शिकारियों की गतिविधियां (रणथंभौर के भैरूपुरा, मुकुंदरा के लक्ष्मीपुरा गांव) भी पकड़ में आई थी.
कुंभलगढ़ और टॉडगढ़ वन्यजीव रेस्क्यू घटनाएं...
याचिकाकर्ता ने बताया कि वन्य जीव अभयारण्य के पास सहवाज गांव में कुछ समय पूर्व एक भालू घुस गया था, लेकिन क्योंकि रेंज कार्यालय बीजा गुडा पर वाहन, पिंजरा आदि जरूरत के संसाधन उपलब्ध नहीं थे. इसलिए लगभग 120 किलोमीटर दूर जोधपुर से रेस्क्यू टीम बुलानी पड़ी, जिसमें 12 घंटे से ज्यादा का समय लग गया. इसी प्रकार जोजावर क्षेत्र में एक घायल सांभर की सूचना मिली, क्योंकि रेंज स्तर पर जरूरत के संसाधन उपलब्ध नहीं थे. इसलिए उदयपुर से संसाधनों के साथ टीम बुलानी पड़. पूरी प्रक्रिया में लगभग 1 दिन का समय गुजर गया इस वजह से घायल सांभर की मौत हो गई. कुछ समय पूर्व देसूरी तहसील के कोटडी गांव में एक कुएं में पैंथर गिर गया था, क्योंकि रेंज स्तर पर संसाधन मौजूद नहीं थे. इसलिए 130 किलोमीटर दूर जोधपुर से रेस्क्यू टीम बुलानी पड़ी.
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तेलंगाना वन विभाग का उदाहरण...
तेलंगाना वन विभाग के हाल ही में 100 नई ब्रांड महिंद्रा थार जीप स्टाफ को उपलब्ध कराई गई है. इसी प्रकार लगभग 2100 दो पहिया वाहन तेलंगाना वन विभाग ने खरीदे हैं. विभाग के उच्च अधिकारियों के लिए 24 स्कॉर्पियो, 20 होंडा सिटी/इनोवा एवं 6 टोयोटा फॉर्च्यूनर खरीदी गई है.
मुख्य न्यायाधीश अकील कुरैशी एवं मदन गोपाल व्यास की खंडपीठ ने सरकार द्वारा दायर किए गए जवाब को देखते हुए याचिका यह कह कर (Rajasthan High Court Order) निस्तारित की कि याचिकाकर्ता वन विभाग को संसाधन की कमी आदि के संबंध में अवगत करा सकता है एवं जरूरत अनुसार वन विभाग कार्रवाई कर सकता है.