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जन उपयोगी प्रावधानों में संशोधन के लिए जनहित याचिका, प्रदेश की 15 स्थाई लोक अदालत में अध्यक्ष का पद रिक्त...उच्च न्यायालय ने जारी किया नोटिस - revision petition

राजस्थान उच्च न्यायालय में जन उपयोगी सेवा के प्रावधानो में संशोधन करने एवं प्रदेश में 15 पूर्णकालिक स्थाई लोक अदालत में रिक्त चल रहे अध्यक्ष पद को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई.

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जन उपयोगी प्रावधानों में संशोधन के लिए याचिका
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Published : Sep 18, 2021, 10:27 PM IST

जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 22 के तहत जन उपयोगी सेवा के प्रावधानो में संशोधन करने एवं प्रदेश में 15 पूर्णकालिक स्थाई लोक अदालत में रिक्त चल रहे अध्यक्ष पद को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश रामेश्वर व्यास की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत सरकार, राज्य विधि विभाग के प्रमुख सचिव,राजस्थान उच्च न्यायालय व राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब तलब किया है.

याचिकाकर्ता एडवोकेट वीडी दाधीच की ओर से अधिवक्ता अनिल भंडारी ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि उपभोक्ता आयोगों में बढ़ते हुए प्रकरणों को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2002 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन करते हुए धारा 22 ए जोड़ते हुए जन उपयोगी सेवा के तहत 6 सेवाओं के बाबत प्रकरणों को 10 लाख रुपए तक की सीमा तक शामिल करते हुए इन्हें राजीनामा से निपटाने का प्रावधान किया और यह भी अधिकार दिया कि राजीनामा नहीं होने पर स्थाई लोक अदालत गुणावगुण आधार पर फैसला करेगी.

पढ़ें: Rajasthan High Court : कुरैशी राजस्थान के होंगे नए सीजे, महांति जाएंगे त्रिपुरा

उन्होंने कहा कि राज्य में पूर्व में हर जिले में अंशकालीन अदालतों का गठन किया गया जो कि माह में सिर्फ दो बार सुनवाई करती थी. वर्ष 2015 में अजमेर, भरतपुर, बीकानेर, जयपुर महानगर, जोधपुर महानगर, कोटा और उदयपुर में पूर्णकालीन स्थाई लोक अदालतों का गठन किया गया. तदोपरांत 13 और जगह इसका गठन किया गया. राज्य सरकार ने जनवरी 2015 में तीन और सेवाएं शामिल की. मार्च 2015 में भारत सरकार ने वित्तीय सीमा को दस लाख से बढाकर एक करोड़ रुपए कर दिया व 2016 में दो और सेवाओं को भारत सरकार ने इसमें शामिल किया.

पढ़ें: हाईकोर्ट फैसला : बिना अधिकारिता वेतन वृद्धि रोकने के आदेश पर कोर्ट ने लगाई रोक

अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि संशोधित अधिनियम 2002 की धारा 22 में न तो जवाब की समय सीमा और न ही प्रकरण निपटान की कोई अवधि तय की गई है जिससे प्रतिपक्ष 2 से तीन साल तक जवाब ही पेश नहीं करते हैं. इसी तरह इन अदालतों को डिक्री के निष्पादन का कोई अधिकार नहीं दिया गया है जिससे डिक्री धारक को एक से दूसरी अदालत के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की तरह जवाब और प्रकरण निपटाने की समय सीमा तथा डिक्री निष्पादन का अधिकार भी स्थाई लोक अदालत को दिया जाए.

पढ़ें: करोड़ों रुपए की कर चोरी के आरोपियों को हाईकोर्ट से राहत नहीं

अधिवक्ता ने कहा कि राज्य की आठ स्थाई लोक अदालत में अध्यक्ष के पद खाली है और विधिक सेवा प्राधिकरण अधिकारी ने 25 फरवरी 2021 को इस पद पर आवेदन मांगकर अब चुप्पी साध ली है. 7 जिलों में अध्यक्ष विस्तारित सेवा पर कार्यरत है और उनका कार्यकाल भी आते 6 माह में समाप्त हो जाएगा. अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि स्वीकृति के बावजूद इन अदालतों में रीडर नियुक्त नहीं किए जा रहे हैं.

जोधपुर महानगर में अध्यक्ष और दोनों सदस्यों के पद खाली होने से वर्ष 2016 के 10, 2017 के 58, 2018 के 125, 2019 के 261, 2020 के 237 और अगस्त 2021 तक के 175 यानी कुल 866 प्रकरण लंबित हो गए हैं जिससे स्थाई लोक अदालत के गठन का त्वरित न्याय का उद्देश्य ही समाप्त हो गया है. इन पदों को अविलंब भरा जाए जिससे प्रकरणों का समय पर निपटान हो सके. जोधपुर में प्रकरण को देखते हुए जोधपुर जिला में भी पूर्णकालिक स्थाई लोक अदालत का गठन किया जाए. उच्च न्यायालय ने अप्रार्थीगण को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह में जवाब तलब किया है.

जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 22 के तहत जन उपयोगी सेवा के प्रावधानो में संशोधन करने एवं प्रदेश में 15 पूर्णकालिक स्थाई लोक अदालत में रिक्त चल रहे अध्यक्ष पद को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश रामेश्वर व्यास की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत सरकार, राज्य विधि विभाग के प्रमुख सचिव,राजस्थान उच्च न्यायालय व राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब तलब किया है.

याचिकाकर्ता एडवोकेट वीडी दाधीच की ओर से अधिवक्ता अनिल भंडारी ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि उपभोक्ता आयोगों में बढ़ते हुए प्रकरणों को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2002 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन करते हुए धारा 22 ए जोड़ते हुए जन उपयोगी सेवा के तहत 6 सेवाओं के बाबत प्रकरणों को 10 लाख रुपए तक की सीमा तक शामिल करते हुए इन्हें राजीनामा से निपटाने का प्रावधान किया और यह भी अधिकार दिया कि राजीनामा नहीं होने पर स्थाई लोक अदालत गुणावगुण आधार पर फैसला करेगी.

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उन्होंने कहा कि राज्य में पूर्व में हर जिले में अंशकालीन अदालतों का गठन किया गया जो कि माह में सिर्फ दो बार सुनवाई करती थी. वर्ष 2015 में अजमेर, भरतपुर, बीकानेर, जयपुर महानगर, जोधपुर महानगर, कोटा और उदयपुर में पूर्णकालीन स्थाई लोक अदालतों का गठन किया गया. तदोपरांत 13 और जगह इसका गठन किया गया. राज्य सरकार ने जनवरी 2015 में तीन और सेवाएं शामिल की. मार्च 2015 में भारत सरकार ने वित्तीय सीमा को दस लाख से बढाकर एक करोड़ रुपए कर दिया व 2016 में दो और सेवाओं को भारत सरकार ने इसमें शामिल किया.

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अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि संशोधित अधिनियम 2002 की धारा 22 में न तो जवाब की समय सीमा और न ही प्रकरण निपटान की कोई अवधि तय की गई है जिससे प्रतिपक्ष 2 से तीन साल तक जवाब ही पेश नहीं करते हैं. इसी तरह इन अदालतों को डिक्री के निष्पादन का कोई अधिकार नहीं दिया गया है जिससे डिक्री धारक को एक से दूसरी अदालत के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की तरह जवाब और प्रकरण निपटाने की समय सीमा तथा डिक्री निष्पादन का अधिकार भी स्थाई लोक अदालत को दिया जाए.

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अधिवक्ता ने कहा कि राज्य की आठ स्थाई लोक अदालत में अध्यक्ष के पद खाली है और विधिक सेवा प्राधिकरण अधिकारी ने 25 फरवरी 2021 को इस पद पर आवेदन मांगकर अब चुप्पी साध ली है. 7 जिलों में अध्यक्ष विस्तारित सेवा पर कार्यरत है और उनका कार्यकाल भी आते 6 माह में समाप्त हो जाएगा. अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि स्वीकृति के बावजूद इन अदालतों में रीडर नियुक्त नहीं किए जा रहे हैं.

जोधपुर महानगर में अध्यक्ष और दोनों सदस्यों के पद खाली होने से वर्ष 2016 के 10, 2017 के 58, 2018 के 125, 2019 के 261, 2020 के 237 और अगस्त 2021 तक के 175 यानी कुल 866 प्रकरण लंबित हो गए हैं जिससे स्थाई लोक अदालत के गठन का त्वरित न्याय का उद्देश्य ही समाप्त हो गया है. इन पदों को अविलंब भरा जाए जिससे प्रकरणों का समय पर निपटान हो सके. जोधपुर में प्रकरण को देखते हुए जोधपुर जिला में भी पूर्णकालिक स्थाई लोक अदालत का गठन किया जाए. उच्च न्यायालय ने अप्रार्थीगण को नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह में जवाब तलब किया है.

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