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Exclusive: जोधपुर के महापौर जिन्होंने 5 साल सरकारी वाहन उपयोग में नहीं लिया, वेतन भी समाज सेवा में लगाया - जोधपुर न्यूज

जोधपुर नगर निगम के महापौर और पूरे बोर्ड का कार्यकाल 25 नवंबर को समाप्त हो जाएगा. लेकिन निगम में अपना कार्यकाल पूरा करने वाले महापौर घनश्याम ओझा ने बहुत से ऐसे मापदंड स्थापित किए जो किसी के लिए भी आदर्श का केन्द्र बन सकते है.

Jodhpur Municipal Corporation, जोधपुर न्यूज
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Published : Nov 22, 2019, 3:39 PM IST

जोधपुर. शहर में मौजूद जोधपुर नगर निगम के महापौर और पूरे बोर्ड का कार्यकाल 25 नवंबर को समाप्त हो जाएगा. यह पहला मौका है कि जब एक महापौर किसी दूसरे महापौर को कार्यभार दिए बगैर ही इस पद से मुक्त हो जाएगा क्योंकि सरकार ने इस बार यह चुनाव टाल दिए हैं. साल 2014 में करीब 15 साल के अंतराल के बाद भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत से जोधपुर नगर निगम में अपना बोर्ड बनाया और इसकी कमान उद्योगपति घनश्याम ओझा को दी गई.

जोधपुर महापौर का आदर्श कार्यकाल

ओझा ने 5 सालों में नगर निगम की व्यवस्थाएं बनाने और कार्यशैली बदलने को लेकर कई प्रयोग किए. जिनमें कई जगह वे सफल भी हुए और कुछ जगह वे सफल नहीं हो पाए. ओझा एक ऐसे महापौर के रूप में भी याद किए जाएंगे जिन्होंने पूरे 5 साल तक नगर निगम का कोई भी सरकारी साधन काम में नहीं लिया. वहीं सरकारी प्रयोग नहीं करने को लेकर उनका कहना है कि कुछ अलग करने की इच्छा थी जिसके चलते उन्होंने यह तय किया था कि इसके चलते वाहन और संसाधन काम मे नहीं लिए.

ओझा का कहना है कि उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी सफलता निगम क्षेत्र के सभी 65 वार्डों में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण लागू करना रहा, जिसके प्रयास पिछले 15 सालों से चल रहे थे लेकिन कोई भी नहीं कर पाया. साथ ही उन्होंने रात्रिकालीन सफाई व्यवस्था भी लागू की. शहर की सभी लाइटों को एलइडी में बदलकर निगम को हर वर्ष 15 से 20 करोड़ की बचत करवाई.

महापौर ने अपने कार्यकाल से जुड़ी कई बातें की साझा

नाइट चौपाटी विकसित की. वहीं सर्व जातीय मोक्ष धाम बनवाया, वस्त्र बैंक स्थापित किया, साथ ही शहर से जुड़े 100 से अधिक बुद्धिजीवी स्वतंत्रता सेनानी समाजसेवी लोगों के नाम से मार्ग स्थापित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य ओझा ने अपने कार्यकाल के दौरान करवाए. महापौर का कहना है कि वह चाहते थे कि नगर निगम की पूरी कार्रवाई और औपचारिकताएं ऑनलाइन हो जाए, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए. इसके अलावा शहर के प्रमुख 3 नालों को खुलवाना था.

पढ़ें: अन्य सेवाओं के अफसरों को IAS बनाने का मामला: न्याय नहीं मिलने पर आरएएस एसोसिएशन खटखटाएगी कोर्ट का दरवाजा

इसमें से वे सिर्फ एक नाला ही खुलवा पाए. इसके अलावा बरसात के दिनों में शहर में कई जगह पर पानी भर जाता है उसके लिए नाले खोलने थे लेकिन वे एक ही नाला खुलवा पाए. घनश्याम ओझा को दोबारा महापौर बनने का मौका मिले तो क्या वह बनना पसंद करेंगे इस सवाल पर उनका कहना था कि पार्टी में और भी सक्षम लोग मौजूद हैं, उन्हें मौका मिलना चाहिए.

जोधपुर नगर निगम को सरकार द्वारा दो हिस्सों में बांट दिए जाने की घोषणा पर बेबाकी से उन्होंने कहा कि यह सही नहीं है. देश के कई बड़े नगरों में जो कि जोधपुर से कई गुना बड़े हैं वहां भी अभी एक ही नगर निगम है. जोधपुर के लिए यह सही नहीं है. ओझा ने अपने कार्यकाल में कई अच्छे मापदंड स्थापित किए तो वहीं दूसरी ओर उनका यह भी कहना है कि वे जानते है यदि फिर हमारा बोर्ड बनता है तो उनके बजाय पार्टी के ही किसी अन्य सक्षम व्यक्ति को मौका मिले, क्योंकि पार्टी में उनसे भी अच्छे लोग कार्य कर रहे हैं. इस प्रकार ओझा के व्यक्तित्व का आसानी से बोध किया जा सकता है.

जोधपुर. शहर में मौजूद जोधपुर नगर निगम के महापौर और पूरे बोर्ड का कार्यकाल 25 नवंबर को समाप्त हो जाएगा. यह पहला मौका है कि जब एक महापौर किसी दूसरे महापौर को कार्यभार दिए बगैर ही इस पद से मुक्त हो जाएगा क्योंकि सरकार ने इस बार यह चुनाव टाल दिए हैं. साल 2014 में करीब 15 साल के अंतराल के बाद भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत से जोधपुर नगर निगम में अपना बोर्ड बनाया और इसकी कमान उद्योगपति घनश्याम ओझा को दी गई.

जोधपुर महापौर का आदर्श कार्यकाल

ओझा ने 5 सालों में नगर निगम की व्यवस्थाएं बनाने और कार्यशैली बदलने को लेकर कई प्रयोग किए. जिनमें कई जगह वे सफल भी हुए और कुछ जगह वे सफल नहीं हो पाए. ओझा एक ऐसे महापौर के रूप में भी याद किए जाएंगे जिन्होंने पूरे 5 साल तक नगर निगम का कोई भी सरकारी साधन काम में नहीं लिया. वहीं सरकारी प्रयोग नहीं करने को लेकर उनका कहना है कि कुछ अलग करने की इच्छा थी जिसके चलते उन्होंने यह तय किया था कि इसके चलते वाहन और संसाधन काम मे नहीं लिए.

ओझा का कहना है कि उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी सफलता निगम क्षेत्र के सभी 65 वार्डों में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण लागू करना रहा, जिसके प्रयास पिछले 15 सालों से चल रहे थे लेकिन कोई भी नहीं कर पाया. साथ ही उन्होंने रात्रिकालीन सफाई व्यवस्था भी लागू की. शहर की सभी लाइटों को एलइडी में बदलकर निगम को हर वर्ष 15 से 20 करोड़ की बचत करवाई.

महापौर ने अपने कार्यकाल से जुड़ी कई बातें की साझा

नाइट चौपाटी विकसित की. वहीं सर्व जातीय मोक्ष धाम बनवाया, वस्त्र बैंक स्थापित किया, साथ ही शहर से जुड़े 100 से अधिक बुद्धिजीवी स्वतंत्रता सेनानी समाजसेवी लोगों के नाम से मार्ग स्थापित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य ओझा ने अपने कार्यकाल के दौरान करवाए. महापौर का कहना है कि वह चाहते थे कि नगर निगम की पूरी कार्रवाई और औपचारिकताएं ऑनलाइन हो जाए, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए. इसके अलावा शहर के प्रमुख 3 नालों को खुलवाना था.

पढ़ें: अन्य सेवाओं के अफसरों को IAS बनाने का मामला: न्याय नहीं मिलने पर आरएएस एसोसिएशन खटखटाएगी कोर्ट का दरवाजा

इसमें से वे सिर्फ एक नाला ही खुलवा पाए. इसके अलावा बरसात के दिनों में शहर में कई जगह पर पानी भर जाता है उसके लिए नाले खोलने थे लेकिन वे एक ही नाला खुलवा पाए. घनश्याम ओझा को दोबारा महापौर बनने का मौका मिले तो क्या वह बनना पसंद करेंगे इस सवाल पर उनका कहना था कि पार्टी में और भी सक्षम लोग मौजूद हैं, उन्हें मौका मिलना चाहिए.

जोधपुर नगर निगम को सरकार द्वारा दो हिस्सों में बांट दिए जाने की घोषणा पर बेबाकी से उन्होंने कहा कि यह सही नहीं है. देश के कई बड़े नगरों में जो कि जोधपुर से कई गुना बड़े हैं वहां भी अभी एक ही नगर निगम है. जोधपुर के लिए यह सही नहीं है. ओझा ने अपने कार्यकाल में कई अच्छे मापदंड स्थापित किए तो वहीं दूसरी ओर उनका यह भी कहना है कि वे जानते है यदि फिर हमारा बोर्ड बनता है तो उनके बजाय पार्टी के ही किसी अन्य सक्षम व्यक्ति को मौका मिले, क्योंकि पार्टी में उनसे भी अच्छे लोग कार्य कर रहे हैं. इस प्रकार ओझा के व्यक्तित्व का आसानी से बोध किया जा सकता है.

Intro:जोधपुर ।

प्रदेश के दूसरे बड़े महानगर जोधपुर के नगर निगम की महापौर व पूरे बोर्ड का कार्यकाल 25 नवंबर को समाप्त हो जाएगा और यह पहला मौका है जब एक महापौर किसी दूसरे महापौर को कार्यभार दिए बगैर इस पद से मुक्त भी होगा क्योंकि सरकार ने इस बार यह चुनाव डाल दिए हैं 2014 में करीब 15 वर्ष के अंतराल के बाद भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत से जोधपुर नगर निगम में अपना बोर्ड बनाया और इसकी कमान उद्योगपति घनश्याम ओझा को दी गई।  ओझा ने 5 सालों में नगर निगम की व्यवस्थाएं बनाने और कार्यशैली बदलने को लेकर कई प्रयोग किए जिनमें कई जगह व सफल भी हुए और कुछ जगह वे सफल नहीं हो पाए । ओझा एक ऐसे महापौर के रूप में भी याद किए जाएंगे जिन्होंने पूरे 5 साल तक नगर निगम का कोई भी संशोधन काम में नहीं लिया मैं वाहन ने कर्मचारी उनका कहना था कि कुछ अलग करने की इच्छा थी जिसके चलते मैंने यह तय किया था इसके चलते वाहन और संसाधन काम मे नही लिए।

ओझा का कहना है कि उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी सफलता निगम क्षेत्र के सभी 65 वार्डों में डोर टू डोर कचरा संग्रहण लागू करना रहा जिसके प्रयास पिछले 15 सालों से चल रहे थे लेकिन कोई भी नहीं कर पाया साथ ही उन्होंने रात्रिकालीन सफाई व्यवस्था भी लागू की, शहर की सभी लाइटों को एलइडी में बदलकर निगम को हर वर्ष 15 से 20 करोड़ की बचत करवाई नाइट चौपाटी विकसित की सर्व जातीय मोक्ष धाम बनाया , वस्त्र बैंक स्थापित किया। साथ ही शहर से जुड़े 100 से अधिक बुद्धिजीवी स्वतंत्रता सेनानी समाजसेवी लोगों के नाम से मार्ग स्थापित किए। महापौर का कहना है कि वह चाहते थे कि नगर निगम की पूरी कार्यवाही और औपचारिकताएं ऑनलाइन हो जाए लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए इसके अलावा शहर के प्रमुख 3 नालों को खुलवाना था इसमें से वे सिर्फ एक नाला ही खुलवा पाए। 

 





Body:इसके अलावा बरसात के दिनों में शहर में कई जगह पर पानी भर जाता है उसके लिए नाले खोलने थे लेकिन वे एक ही नाला खुलवा पाए। घनश्याम ओझा को दोबारा महापौर बनने का मौका मिले  तो क्या वह बनना पसंद करेंगे इस सवाल पर उनका कहना था कि  पार्टी में और भी सक्षम लोग मौजूद हैं उन्हें मौका मिलना चाहिए 

। जोधपुर नगर निगम को सरकार द्वारा दो हिस्सों में बांट दिए जाने की घोषणा पर बेबाकी से उन्होंने कहा कि यह सही नहीं है देश के कई बड़े नगरों में जोकि जोधपुर से कई गुना बड़े हैं वहां भी अभी एक ही नगर निगम है जोधपुर के लिए यह सही नहीं है। 





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