जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर मुख्यपीठ में अहम मामले पर सुनवाई के बाद तीन जजेज की वृहद पीठ ने फैसले में कहा कि राज्य सरकार की ओर से संशोधन की तारीख को यदि कोई मामला विचाराधीन था या समक्ष स्तर पर लम्बित था, उन मामलों में पुराने नियमों की बाध्यता नहीं रहेगी. विवाहित पुत्री को भी अनुकम्पा नियुक्ति का लाभ दिया (Compassionate appointment to married daughter) जाएगा. इससे पूर्व यदि किसी को लाभ दिया गया है, तो उसके साथ अब छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता, न्यायाधीश विजय विश्नोई व न्यायाधीश अरूण भंसाली की वृहतपीठ में सुमेर कंवर, वंदना शर्मा और क्षमा देवी के मामले में यह मामला रेफर किया गया था कि क्या विवाहित पुत्री भी मृतक आश्रित अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार है?.
राज्य सरकार की ओर से नियम 2सी में 28 अक्टूबर, 2021 को किए गए संशोधन को कब से लागू माना जाए. क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के विपरीत नहीं है. राज्य सरकार ने अनुकम्पा नियुक्ति के सेवा नियम 2सी के तहत संशोधन करते हुए विवाहित पुत्री को भी आश्रित मान लिया. हाईकोर्ट के समक्ष लम्बित मामलों में ऐसे सवाल उठे तो यह मामला वृहद पीठ के समक्ष रेफर किया गया था. तीन जजेज की वृहतपीठ के समक्ष लम्बी सुनवाई के दौरान मंगलवार को इस मामले में फैसला सुनाया गया. वृहद पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के संशोधन से पूर्व जो भी लाभ दिया गया, अब उसे नहीं छेड़ा जाएगा. संशोधन की तारीख तक कोर्ट में या सक्षम स्तर पर लम्बित मामलों में विवाहित पुत्री को भी अनुकम्पा नियुक्ति के लिए कंसीडर किया जाए. वहीं कोर्ट ने कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सभी मापदंडो का पालन किया जाएगा.
इन्होंने की पैरवी: राजस्थान हाईकोर्ट खंडपीठ की ओर से वृहद पीठ के समक्ष इस मामले को 12 जनवरी, 2022 को रेफर किया गया कि क्या नियम 2 सी जिसे संशोधित किया है वो आर्टिकल 14 व 16 के विपरीत तो नहीं हैं. वहीं तीन अलग-अलग खंडपीठों ने तीन केस में दिए गए निर्णय को लेकर वृहद पीठ में मामला भेजा गया. बार की ओर से विनय जैन, डॉ नुपूर भाटी, हरीश पुरोहित, एमएस पुरोहित, विकास बिजरानिया, विवेक माथुर सहित कई अधिवक्ताओं ने इस पर पक्ष रखा, तो वहीं सरकार की ओर से एएजी मनीष व्यास, एएजी सुनील बेनीवाल, एएजी सुधीर टांक और अविन छंगाणी आदि अधिवक्ताओं ने पैरवी की.
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सरकार की ओर से क्या कहा गया: राज्य सरकार की ओर से एएजी मनीष व्यास ने पैरवी करते हुए कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति के लिए राज्य सरकार की ओर से अधिनियम बना हुआ है. अधिनियम में संशोधन कर देने से वैधानिक अधिकार पर प्रभाव इसीलिए नहीं पड़ सकता क्योंकि अनुकम्पा व अधिकार दोनों शब्द परस्पर विपरीत हैं. यहा अनुकम्पात्मक नियुक्ति बिना किसी परीक्षा के दी जाती है. वहीं अधिकारों के तहत नियुक्ति सार्वजनिक परीक्षा प्रणाली के अर्न्तगत होती है. अनुकम्पात्मक नियुक्ति राजकीय सेवा में कार्यरत व्यक्ति के मरणोपरान्त अनुकम्पा व योग्यता के आधार पर दी जाती है. ऐसे में संविधानिक अधिकारों के अतिलंघन से इसका कोई सरोकार होना प्रतीत नहीं होता है. वर्तमान राज्य सरकार ने अनुकम्पात्मक नियुक्ति के नियमों में शिथिलता देते हुए संशोधन कर विवाहित पुत्री को भी आश्रित की श्रेणी में मानते हुए अनुकम्पा नियुक्ति का हक दिया है.