जोधपुर. राजस्थान उच्च न्यायालय ने महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्व विद्यालय उदयपुर द्वारा सहायक प्रोफेसर पद पर कार्यरत अधिकारी के वेतन से की जाने वाली करीब 27 लाख रुपये की वसूली पर रोक लगा दी है. याचिकाकर्ता डॉ. दीपाकर चक्रवर्ती की ओर से अधिवक्ता नरपतसिंह चारण ने राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर पैरवी की.
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अधिवक्ता ने बताया कि वर्ष 1993 में याचिकाकर्ता राजस्थान सरकार के कृषि विभाग में सहायक कृषि अनुसंधान अधिकारी के पद पर चयनित हुआ था. करीब 20 वर्षो के सेवाकाल के पश्चात वर्ष 2013 में याचिकाकर्ता का चयन महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय उदयपुर में सहायक प्रोफेसर प्लांट पेथोलोजी के पद पर हो गया. जहां याचिकाकर्ता ने अपने पुराने पद के वेतन को संरक्षित रखने की शर्त के साथ पदभार ग्रहण किया था. नियुक्ति पत्र के शर्तों के अनुसार विश्वविद्यालय द्वारा प्रार्थी के पूर्व पद के वेतन का संरक्षण करते हुए वर्ष 2015 में वेतन स्थिरीकरण के लाभ भी दे दिये गये थे.
परन्तु 25 फरवरी 2021 को विश्वविद्यालय ने एक आदेश जारी कर याचिकाकर्ता को पूर्व में दिये गये वेतन संरक्षण एवं वेतन स्थिरीकरण के आदेशो को एकतरफा निरस्त कर याचिकाकर्ता के वेतन एवं भविष्य में मिलने वाले सेवानिवृति लाभो से करीब 27 लाख रुपये की वसूली करने का आदेश जारी कर दिया गया जो कि ना केवल अवैधानिक है बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों के विरुद्ध है. न्यायाधीश दिनेश मेहता ने महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय उदयपुर के रजिस्ट्रार को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए याचिकाकर्ता से किसी भी प्रकार की वसूली करने पर रोक लगा दी है. साथ ही इस सम्बंध में याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई भी प्रपीडक कृत्य करने पर भी रोक लगा दी है.