जोधपुर. एमबीबीएस कोर्स 2020 में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों पर साढ़े तीन साल की फीस की एवज में ली जा रही बैंक गारंटी लेने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर राजस्थान उच्च न्यायालय में गुरुवार को मामला सूचीबद्ध था, लेकिन मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत मोहंती की खंडपीठ ने मामले को शुक्रवार को वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढा की खंडपीठ में ही सुनवाई के लिए भेज दिया. पूर्व में वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढा की खंडपीठ ने ही इस मामले में अंतरिम आदेश पारित कर रखा था, इसीलिए मुख्य न्यायाधीश ने उसी खंडपीठ में शुक्रवार को सुनवाई के लिए भेजा है.
गौरतलब है कि एमबीबीएस कोर्स 2020 में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों पर साढ़े तीन साल की फीस की एवज में ली जा रही बैंक गारंटी लेने के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता दीपेश बेनीवाल ने एक याचिका पेश की थी. जिस पर वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढा की खंडपीठ ने 17 दिसम्बर 2020 को अंतरिम आदेश पारित करते हुए एमबीबीएस कोर्स 2020 में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों पर साढ़े तीन साल की फीस की एवज में ली जा रही बैंक गारंटी वसूलने पर रोक लगा दी थी. जिसके खिलाफ कुछ निजी मेडिकल कॉलेज ने सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दायर की थी, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने 24 दिसम्बर 2020 को अंतरिम आदेश पारित करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाई थी.
वहीं 04 जनवरी 2021 को सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए एसएलपी को तय करते हुए मामला दोबारा राजस्थान उच्च न्यायालय को एक सप्ताह में सुनवाई कर निस्तारित करने के निर्देश दिए हैं. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार मामला गुरुवार को सूचीबद्ध था, लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने मामला शुक्रवार को वरिष्ठ न्यायाधीश संगीत लोढा की खंडपीठ के समक्ष भेज दिया. क्योकि पूर्व में इसी खंडपीठ ने अंतरिम आदेश भी पारित कर रखा है.
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उच्च न्यायालय में अधिवक्ता व याचिकाकर्ता दीपेश बेनीवाल ने व्यापक जनहित को देखते हुए स्वयं के नाम से ही जनहित याचिका दायर की है. याचिकाकर्ता ने न्यायालय को बताया कि राज्य सरकार ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को एक साल की ट्यूशन फीस लेने के बाद शेष साढ़े तीन साल की फीस के लिए बैंक गारंटी लेने की छूट प्राइवेट कॉलेजों को दे रखी है. यदि कोई विद्यार्थी बैंक गारंटी नही देता है तो प्राइवेट मेडिकल कॉलेज इसके बदले एक या उससे अधिक वर्ष की अग्रिम फीस वसूल रहे हैं, जो कि करीब इन कॉलेजों के लिए 200 करोड़ रुपये के करीब बनती है. उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद नोटिस जारी करने के साथ ही निर्देश दिए थे कि विद्यार्थी से बैंक गारंटी वसूलने के लिए दबाव नहीं बनाया जाएगा और कोई बैंक गारंट की एवजं में बॉन्ड देता है तो उसे भी स्वीकार किया जाएगा.