जोधपुर. चांदी को धातु के रूप में समृद्धि का प्रतीक माना जाता है यही कारण है कि दीपावली पर हर घर में छोटा बड़ा चांदी का सिक्का या चांदी का सामान लाकर उसका लक्ष्मी पूजन में उपयोग किया जाता है. जोधपु में भी यह परंपरा बहुत पुरानी है. खासियत यह है कि यहां का देसी टच सालों से सिक्कों में डाला जाता है.
समय बदलने के साथ सिक्कों के साथ-साथ चांदी के नोट भी बनने लगे हैं. जोधपुर के सिक्कों की एक खासियत यह भी है कि यह 99% खरे होते हैं और इन सिक्कों को बाकायदा जोधपुर सर्राफा एसोसिएशन प्रमाणित भी करती है. जिसकी वजह से सिक्कों को अगर वापस बेचना पड़े तो भाव के अनुसार उनकी उतनी ही कीमत प्राप्त हो जाती है.
जोधपुर के सिक्कों में गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती का चित्र
एक खासियत यह भी है कि अन्य शहरों में जो सिक्के बनते हैं, उनमें गणेश और लक्ष्मी का ही चित्र होता है. जबकि जोधपुर के सिक्कों में त्रिमूर्ति गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती के चित्र अंकित किए जाते हैं. इसके अलावा सर्राफा एसोसिएशन का भी चित्र लगाया जाता है. इस बार सिक्कों की खपत कम होने का अंदाजा मांग के अनुसार लगाया जा रहा है.
करीब 40 साल से सिक्के बनाने वाले कमल सोनी बताया कि इस बार उनकी टकसाल से सिर्फ 400 किलो चांदी के ही सिक्के बनाने के आर्डर मिले हैं. उन्होंने बताया कि इस तरह की तीन टकसाल जोधपुर में हैं. कुल मिलाकर 12 क्विंटल सिक्के ही बाजार में आ पाएंगे. इसकी वजह से बाजार में मांग में कमी आई है. जबकि गत बार 3 टन चांदी के सिक्के बाजार में गए थे.
जोधपुर ज्वेलर्स एसोसिएशन के नवीन सोनी ने बताया कि चांदी के सिक्कों की सर्वाधिक खरीद दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस पर होती है. अभी मांग कम है. पुष्य नक्षत्र होने से बाजार में तेजी आई है. उम्मीद है कि धनतेरस तक अच्छा कारोबार होगा.
सौ ग्राम तक का सिक्का और नोट
टकसाल में 2, 5,10, 20, 50 और 100 ग्राम वजन तक सिक्का डाला जाता है. इसके अलावा इसी क्रम में नोट के आकार में भी चांदी डाली जाती है. यह काम नवरात्री शुरू होने के साथ शुरू हो जाता है.
मार्क से असली नकली का फर्क
बाजार में दिवाली पर चांदी के सिक्कों के साथ-साथ चांदी की तरह दिखने वाले मेटल के नकली सिक्के भी धड़ल्ले से बिकते हैं, लेकिन जोधपुर में सर्राफा एसोसिएशन के मार्क से ही असली सिक्के की पहचान होती है. इसके चलते लोगों को सही वजन व खरी चांदी के सिक्के मिल पाते हैं.