जोधपुर. जर्जर होते एक स्कूल में जहां बच्चे पढ़ने से डरते थे, हल्की सी बारिश होने पर अध्यापक छुट्टी कर देते थे. उस स्कूल पर 5 लाख खर्च कर एक भामाशाह ने काया पलट कर दी है. जोधपुर में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मंडी, साल 1919 में तत्कालीन महाराजा के प्रयासों से स्थापित किया गया था. शहर का एकमात्र बॉयज स्कूल है. स्कूल की बिल्डिंग में किसी तरह का काम नहीं हुआ, जिसके चलते जर्जर होती चली गई.
करीब डेढ़ साल पहले इस स्कूल में बतौर संस्कृत अध्यापक चंद्रा सिंघवी का स्थानांतरण हुआ था. यहां उन्होंने जॉइनिंग की तो हालात देखकर उन्हें रोना आ गया. बच्चे स्कूल में प्रवेश लेने तक से कतराते थे.
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बच्चों से जब ईटीवी भारत ने बात की तो कई पुराने बच्चे अपना अनुभव बताते नजर आए. विद्यार्थियों ने बताया कि पहले बच्चों के साथ साथ अध्यापक भी आने से डरते थे. जर्जर अवस्था को देखते हुए कोई नया एडमिशन भी नहीं होता था. हालात देखकर चंद्रा सिंघवी ने तय किया कि भामाशाह का सहयोग लेकर इस स्कूल को तैयार करवाएगी.
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इसे लेकर कई लोगों से उन्होंने बात की जब उन्हें पता चला कि उनके पिता के दोस्त संपत बाफना जिन्हें वो चाचा कहती थी, वो स्कूल बनाना चाहते हैं. चंद्रा एक नई उम्मीद लेकर उनके पास गई और उन्हें जर्जर होती स्कूल को तैयार करवाने के लिए राजी किया. चंद्रा की पहल पर संपत बाफना ने पहले 28 लाख रुपए स्कूल के लिए दिए और उसके बाद जरूरत पड़ने पर 23 लाख रुपए और दिए. ऐसे कुल मिलाकर 51 लाख स्कूल पर खर्च किए गए.
बाफना का कहना था कि उनके पिता कहा करते थे कि धन को समाज सेवा में भी लगाइए. अधिकारों के साथ-साथ हमारा कर्तव्य भी है, जिसकी पालना के लिए उन्होंने इस स्कूल पर राशि खर्च की. इस भवन को बनाने में जल संसाधन विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर गोविंद गोयल ने भी निशुल्क सेवाएं दी. स्कूल के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष में आयोजित समारोह में शहर विधायक मनीषा पंवार एवं सुनील परिहार ने भामाशाह संपत बाफना को सम्मानित भी किया.
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इस मौके पर खास बात यह भी है कि भीतरी शहर की इस स्कूल को इस वर्ष स्थापना के 100 साल हुए हैं. इस उपलक्ष्य में विद्यालय प्रबंधन द्वारा भामाशाह संपत बाफना और परिवार का अभिनंदन किया गया.