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29 वर्ष से कार्यरत आयुर्वेद चिकित्सक को हाईकोर्ट से मिली राहत

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Published : Aug 8, 2020, 10:40 PM IST

राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी ने गत 29 वर्ष से कार्यरत आयुर्वेद चिकित्सक (कानूनी) के खिलाफ सीसीए रूल्स के नियम- 16 के तहत पेंडिंग अनुशासनात्मक कार्रवाई को समाप्त/ड्रॉप करने के आदेश जारी किए. साथ ही गत 29 वर्ष से पद्दोनति से वंचित याची को दो माह के भीतर सभी पारिणामिक परिलाभ सहित सभी देय पद्दोनति देने के भी आदेश देते हुए वरियता सूची को भी कंसीडर करने के दिए निर्देश दिए.

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आयुर्वेद चिकित्सक (कानूनी) के खिलाफ सीसीए रूल्स

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट की मुख्यपीठ जोधपुर ने बकाया परिलाभ नहीं मिलने की स्थिति में दोबारा हाइकोर्ट में रिट याचिका पेश करने के निर्देश दिए. आयुर्वेद चिकित्सक (कानूनी) पद पर कार्यरत डॉ. प्रमोद कुमार नायक की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने VC से पैरवी की. अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने रिट याचिका पेश कर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बहस करते हुए बताया कि याची 19 जनवरी 1991 में आयुर्वेद चिकित्सक पद पर नियुक्त हुए था. तब से वह विभिन्न आयुर्वेद औषधालयों में अपनी संतोषजनक सेवाएं दे रहा है.

आयुर्वेद चिकित्सक (कानूनी) के खिलाफ सीसीए रूल्स

वर्ष 2007 में उसे आयुर्वेद चिकित्सक (कानूनी) पद पर आयुर्वेद विभाग की ओर से वाद प्रभारी अधिकारी की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई और आज दिन तक अपनी सेवाएं हाइकोर्ट जोधपुर में विभाग की ओर से वाद प्रभारी अधिकारी के तौर पर दे रहा है. वर्ष 2015 में हाइकोर्ट में एक प्रकरण (मथुरालाल भील बनाम सरकार) 2 दिसंबर 2015 को निर्णित हुआ, जिसकी प्रमाणित प्रति और विधिक राय राजकीय अधिवक्ता से 8 जनवरी 2016 को प्राप्त होते ही याची ने 14 जनवरी 2016 को अजमेर स्थित आयुर्वेद निदेशालय को भेज दी. लेकिन आयुर्वेद निदेशालय ने उक्त प्रकरण में ढाई माह बाद 31 मार्च 2016 को यह निर्णय लिया कि उक्त फैसले की आगे अपील की जानी चाहिए. इस पर अप्रैल 2016 में याची को आदेशित किया कि उक्त फैसले की अपील की जानी चाहिए. ऐसे में याची ने बिना किसी विलंब के तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता के मार्फत अपील पेश कर दी.

यह भी पढ़ेंः जोधपुर: बालेसर में किसानों का अनिश्चितकालीन धरना तीसरे दिन भी जारी

याची की ओर से बताया कि अपील करने के लिए 60 दिन का समय होता है, लेकिन 75 दिन बाद आयुर्वेद निदेशालय, अजमेर ने फैसला किया कि अपील की जानी चाहिए. ऐसी स्थिति में याची की ओर से कोई गलती नहीं की. बावजूद इसके, फैसला भेजने में 46 दिन का डीले मानते हुए याची को ड्यूटी के प्रति लापरवाह मानकर 27 मार्च 2017 को चार्जशीट जारी कर दी, जो विधि विरुद्ध और गैर कानूनी है. अगर देरी हुई भी है तो ये याची का कोई दोष नहीं था. बल्कि राजकीय अधिवक्ता के कार्यालय और आयुर्वेद निदेशालय, अजमेर के स्तर पर हुआ है. लेकिन लॉ विभाग द्वारा अपील करने में देरी के लिए उत्तरदायी कार्मिक का उत्तरदायित्व निर्धारित करने हेतु निर्देश प्राप्त होने पर याची को बलि का बकरा बनाया गया है.

यह भी पढ़ेंः भगतासनी ग्राम पंचायत को जोधपुर नगर निगम क्षेत्र में शामिल करने के लिए सरकार करे उचित निर्णय: कोर्ट

फैसले के खिलाफ की गई अपील भी खंडपीठ से मेरिट पर खारिज हो चुकी है. अवैध चार्जशीट को याची ने रिट याचिका में वर्ष 2017 में चुनौती दी. प्रथम सुनवाई पर 11 जुलाई 2017 को उक्त चार्जशीट को हाइकोर्ट ने स्टे करते हुए याचिका विचाराधीन स्वीकार करते हुए नोटिस जारी किए थे. याची को नियमानुसार पदोन्नति नही देंने और् जूनियर कार्मिको को पद्दोनत कर देने पर उसने दूसरी रिट याचिका जनवरी 2020 में पेश की तो विभाग की ओर से जवाब दिया गया कि याची के विरुद्ध चार्जशीट पेन्डिंग होने के कारण उसे पद्दोनति नहीं दी जा सकती. इस पर हाइकोर्ट ने दोनों याचिकाओं की एक साथ सुनवाई की गई. याची की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता खिलेरी ने बताया कि याची नियमानुसार एडिशनल डायरेक्टर/अतिरिक्त निदेशक पद पर पदोन्नत हो चुका होता. लेकिन बिना किसी कारण के उसे पद्दोनति से वंचित किया गया है. याची वर्ष 1991 में नियुक्त होने के बावजूद उसे एक भी पदोन्नति नहीं दी गई है और उसका अगले साल 2021 में 31 जनवरी को रिटायरमेंट है.

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याची की ओर से यह भी बताया गया कि इसे वर्ष 1991 की नियुक्ति मानते हुए प्रथम और द्वितीय चयनित वेतनमान भी मिल चुका है. तृतीय वेतनमान 31.01.2021 को देय है. याची की ओर से बताया गया कि याची आयुर्वेद विभाग की ओर से हाइकोर्ट जोधपुर में आयुर्वेद विभाग की ओर से गत 13 साल से संतोषजनक सेवाएं दे रहा है और कभी भी लापरवाही नहीं बरती है. अपने कार्यकाल में करीब 600 प्रकरणो में अपनी ओर से जवाब पेशकर राजकीय अधिवक्ताओं को विभाग की ओर से पुख्ता पैरवी में सहयोग दे चुका है. कभी भी किसी भी राजकीय अधिवक्ता को कोई शिकायत का मौका नहीं दिया है. फिर भी दीया तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. चार्जशीट में एक मात्र चार्ज यह लगाया गया है कि उसने हाइकोर्ट के निर्णय की कॉपी 46 दिन देरी से भेजी. जबकि वस्तुतः उसने कॉपी और विधिक राय प्राप्त होते ही 6 दिन के भीतर ही आयुर्वेद निदेशालय, अजमेर को प्रेषित कर दी थी. ऐसी स्थिति में लगाया गया आरोप निराधार और बेतुका है. विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा किए गए देरी के लिए याची को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.

राजस्थान हाईकोर्ट में पार्श्वनाथ सिटी आवासीय योजना में पेयजल सुविधा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई हुई. हाईकोर्ट के न्यायाधीश संगीत लोढ़ा और रामेश्वर व्यास की खंडपीठ में जेडीए ने इस संबंध में अतिरिक्त शपथ पत्र पेश किया. कोर्ट ने अब इस मामले में अगली सुनवाई 21 अगस्त को मुकर्रर की है.

पार्श्वनाथ सिटी आवासीय योजना में सुनवाई

पिछली सुनवाई पर पीएचईडी की ओर से कोर्ट के ध्यान में लाया गया था, कि पेयजल कनेक्शन के लिए जेडीए को तीन करोड रुपये का एस्टीमेट भेज दिया गया है. अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. इस पर जेडीए की ओर से अधिवक्ता मनोज भंडारी ने अतिरिक्त शपथ पत्र के साथ जवाब पेश किया. जेडीए की ओर से बताया गया, कि सभी विकास कार्य पूरे कराने के लिए और बजट की जरूरत रहेगी. कोर्ट ने इस जवाब को रिकॉर्ड पर लेने के निर्देश देते हुए अगली सुनवाई 21 अगस्त को रखी है.

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट की मुख्यपीठ जोधपुर ने बकाया परिलाभ नहीं मिलने की स्थिति में दोबारा हाइकोर्ट में रिट याचिका पेश करने के निर्देश दिए. आयुर्वेद चिकित्सक (कानूनी) पद पर कार्यरत डॉ. प्रमोद कुमार नायक की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने VC से पैरवी की. अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने रिट याचिका पेश कर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बहस करते हुए बताया कि याची 19 जनवरी 1991 में आयुर्वेद चिकित्सक पद पर नियुक्त हुए था. तब से वह विभिन्न आयुर्वेद औषधालयों में अपनी संतोषजनक सेवाएं दे रहा है.

आयुर्वेद चिकित्सक (कानूनी) के खिलाफ सीसीए रूल्स

वर्ष 2007 में उसे आयुर्वेद चिकित्सक (कानूनी) पद पर आयुर्वेद विभाग की ओर से वाद प्रभारी अधिकारी की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई और आज दिन तक अपनी सेवाएं हाइकोर्ट जोधपुर में विभाग की ओर से वाद प्रभारी अधिकारी के तौर पर दे रहा है. वर्ष 2015 में हाइकोर्ट में एक प्रकरण (मथुरालाल भील बनाम सरकार) 2 दिसंबर 2015 को निर्णित हुआ, जिसकी प्रमाणित प्रति और विधिक राय राजकीय अधिवक्ता से 8 जनवरी 2016 को प्राप्त होते ही याची ने 14 जनवरी 2016 को अजमेर स्थित आयुर्वेद निदेशालय को भेज दी. लेकिन आयुर्वेद निदेशालय ने उक्त प्रकरण में ढाई माह बाद 31 मार्च 2016 को यह निर्णय लिया कि उक्त फैसले की आगे अपील की जानी चाहिए. इस पर अप्रैल 2016 में याची को आदेशित किया कि उक्त फैसले की अपील की जानी चाहिए. ऐसे में याची ने बिना किसी विलंब के तत्कालीन अतिरिक्त महाधिवक्ता के मार्फत अपील पेश कर दी.

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याची की ओर से बताया कि अपील करने के लिए 60 दिन का समय होता है, लेकिन 75 दिन बाद आयुर्वेद निदेशालय, अजमेर ने फैसला किया कि अपील की जानी चाहिए. ऐसी स्थिति में याची की ओर से कोई गलती नहीं की. बावजूद इसके, फैसला भेजने में 46 दिन का डीले मानते हुए याची को ड्यूटी के प्रति लापरवाह मानकर 27 मार्च 2017 को चार्जशीट जारी कर दी, जो विधि विरुद्ध और गैर कानूनी है. अगर देरी हुई भी है तो ये याची का कोई दोष नहीं था. बल्कि राजकीय अधिवक्ता के कार्यालय और आयुर्वेद निदेशालय, अजमेर के स्तर पर हुआ है. लेकिन लॉ विभाग द्वारा अपील करने में देरी के लिए उत्तरदायी कार्मिक का उत्तरदायित्व निर्धारित करने हेतु निर्देश प्राप्त होने पर याची को बलि का बकरा बनाया गया है.

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फैसले के खिलाफ की गई अपील भी खंडपीठ से मेरिट पर खारिज हो चुकी है. अवैध चार्जशीट को याची ने रिट याचिका में वर्ष 2017 में चुनौती दी. प्रथम सुनवाई पर 11 जुलाई 2017 को उक्त चार्जशीट को हाइकोर्ट ने स्टे करते हुए याचिका विचाराधीन स्वीकार करते हुए नोटिस जारी किए थे. याची को नियमानुसार पदोन्नति नही देंने और् जूनियर कार्मिको को पद्दोनत कर देने पर उसने दूसरी रिट याचिका जनवरी 2020 में पेश की तो विभाग की ओर से जवाब दिया गया कि याची के विरुद्ध चार्जशीट पेन्डिंग होने के कारण उसे पद्दोनति नहीं दी जा सकती. इस पर हाइकोर्ट ने दोनों याचिकाओं की एक साथ सुनवाई की गई. याची की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता खिलेरी ने बताया कि याची नियमानुसार एडिशनल डायरेक्टर/अतिरिक्त निदेशक पद पर पदोन्नत हो चुका होता. लेकिन बिना किसी कारण के उसे पद्दोनति से वंचित किया गया है. याची वर्ष 1991 में नियुक्त होने के बावजूद उसे एक भी पदोन्नति नहीं दी गई है और उसका अगले साल 2021 में 31 जनवरी को रिटायरमेंट है.

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याची की ओर से यह भी बताया गया कि इसे वर्ष 1991 की नियुक्ति मानते हुए प्रथम और द्वितीय चयनित वेतनमान भी मिल चुका है. तृतीय वेतनमान 31.01.2021 को देय है. याची की ओर से बताया गया कि याची आयुर्वेद विभाग की ओर से हाइकोर्ट जोधपुर में आयुर्वेद विभाग की ओर से गत 13 साल से संतोषजनक सेवाएं दे रहा है और कभी भी लापरवाही नहीं बरती है. अपने कार्यकाल में करीब 600 प्रकरणो में अपनी ओर से जवाब पेशकर राजकीय अधिवक्ताओं को विभाग की ओर से पुख्ता पैरवी में सहयोग दे चुका है. कभी भी किसी भी राजकीय अधिवक्ता को कोई शिकायत का मौका नहीं दिया है. फिर भी दीया तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. चार्जशीट में एक मात्र चार्ज यह लगाया गया है कि उसने हाइकोर्ट के निर्णय की कॉपी 46 दिन देरी से भेजी. जबकि वस्तुतः उसने कॉपी और विधिक राय प्राप्त होते ही 6 दिन के भीतर ही आयुर्वेद निदेशालय, अजमेर को प्रेषित कर दी थी. ऐसी स्थिति में लगाया गया आरोप निराधार और बेतुका है. विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा किए गए देरी के लिए याची को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.

राजस्थान हाईकोर्ट में पार्श्वनाथ सिटी आवासीय योजना में पेयजल सुविधा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई हुई. हाईकोर्ट के न्यायाधीश संगीत लोढ़ा और रामेश्वर व्यास की खंडपीठ में जेडीए ने इस संबंध में अतिरिक्त शपथ पत्र पेश किया. कोर्ट ने अब इस मामले में अगली सुनवाई 21 अगस्त को मुकर्रर की है.

पार्श्वनाथ सिटी आवासीय योजना में सुनवाई

पिछली सुनवाई पर पीएचईडी की ओर से कोर्ट के ध्यान में लाया गया था, कि पेयजल कनेक्शन के लिए जेडीए को तीन करोड रुपये का एस्टीमेट भेज दिया गया है. अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. इस पर जेडीए की ओर से अधिवक्ता मनोज भंडारी ने अतिरिक्त शपथ पत्र के साथ जवाब पेश किया. जेडीए की ओर से बताया गया, कि सभी विकास कार्य पूरे कराने के लिए और बजट की जरूरत रहेगी. कोर्ट ने इस जवाब को रिकॉर्ड पर लेने के निर्देश देते हुए अगली सुनवाई 21 अगस्त को रखी है.

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