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जोधपुर में क्लोन चेक बनाकर 1.98 लाख रुपए निकालने का प्रयास, मामला दर्ज

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Published : Feb 2, 2021, 5:43 PM IST

जोधपुर के रातानाड़ा थाने में क्लोन चेक बनाकर बैंक से 1.98 लाख रुपए निकालने के प्रयास से जुड़ा एक मामला दर्ज हुआ है. यह मामला बैंक ऑफ बड़ौदा की यूनिवर्सिटी ब्रांच का है. फिलहाल मामले की जांच की जा रही है.

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क्लोन चेक बनाकर 1.98 लाख रुपए निकालने का प्रयास

जोधपुर. शहर के रातानाड़ा थाने में क्लोन चेक बनाकर बैंक से रुपए निकालने के प्रयास से जुड़ा एक मामला दर्ज हुआ है. बैंक की सजगता के चलते ग्राहक के खाते में लाखों रुपए की सेंध लगते लगते रह गई. पुलिस के अनुसार बैंक ऑफ बड़ौदा की यूनिवर्सिटी ब्रांच में मुकेश माहेश्वरी का खाता है. इस खाते से उन्होंने 3 लाख का एक चेक संख्या 449 मनीषा माहेश्वरी के नाम से जारी किया था. यह चेक 21 दिसंबर 2019 को क्लियर हो गया, जिसकी राशि 3 लाख रुपए थी, लेकिन 15 जनवरी को मुकेश के पास बैंक ऑफ बड़ौदा से इसी चेक नंबर से चेक जारी होने की जानकारी मिली, जिसमें बताया गया कि आप द्वारा जारी किए गए चेक की राशि एक लाख 98000 है.

क्लोन चेक बनाकर 1.98 लाख रुपए निकालने का प्रयास

इस पर मुकेश चौक गए उन्होंने कहा कि यह चेक तो एक साल पहले ही कट चुका है और इसका भुगतान भी हो चुका है. इसके बाद बैंक ने चेक का स्टॉप पेमेंट कर दिया. बाद में मुकेश ने बैंक जाकर पूरी पड़ताल की तो सामने आया कि 449 नंबर का चेक एक लाख 98 हजार रुपए किसी खोडल फार्मास्युटिकल्स के नाम से क्लियरिंग के लिए आया था. थाने के उपनिरीक्षक चतुराराम के अनुसार बैंक अधिकारियों ने उस अकाउंट के बारे में भी पड़ताल की, तो पता चला कि गुड़गांव के सेंट्रल बैंक में खोडल फार्मास्युटिकल्स नाम से वो अकाउंट भी कुछ समय पहले ही खोला गया था.

2 लाख रुपए से अधिक की राशि पर ली जाती है सहमति

आज-कल बैंक दो लाख रुपए से ज्यादा के चेक की क्लियरिंग से पहले खाताधारक से पुष्टि के लिए कॉल करते हैं. साथ ही आवश्यकता पड़ने पर शाखा प्रबंधक अपने स्तर पर इससे कम की राशि के चेक के लिए भी अतिरिक्त सतर्कता बरतने के लिहाज से ग्राहकों से पुष्टि करते हैं. 15 जनवरी को माहेश्वरी के खाते में क्लियरिंग के लिए आए 1.98 लाख के चेक के बारे में फोन कर पूछा गया, तब पता चला की चेक फर्जी था.

यह बी पढ़ें- फर्जी डिग्री प्रकरण में ED की बड़ी कार्रवाई...194.17 करोड़ की संपत्ति अटैच

हूबहू बनाया चेक

बैंक ऑफ बड़ौदा के नाम से जो चेक बनाया गया है, वह बिल्कुल ओरिजिनल चेक की कॉपी था, जिसे अपराध की दुनिया में क्लोनिंग कहा जाता है. इसे देखकर बैंक का कोई भी कर्मचारी या नहीं कह सकता कि एक नकली है. यह तो गनीमत रही कि बैंक द्वारा कॉल करने पर इस फर्जीवाड़े का पता चला. अन्यथा यह राशि चली जाती और एक और साइबर क्राइम हो जाता.

जोधपुर. शहर के रातानाड़ा थाने में क्लोन चेक बनाकर बैंक से रुपए निकालने के प्रयास से जुड़ा एक मामला दर्ज हुआ है. बैंक की सजगता के चलते ग्राहक के खाते में लाखों रुपए की सेंध लगते लगते रह गई. पुलिस के अनुसार बैंक ऑफ बड़ौदा की यूनिवर्सिटी ब्रांच में मुकेश माहेश्वरी का खाता है. इस खाते से उन्होंने 3 लाख का एक चेक संख्या 449 मनीषा माहेश्वरी के नाम से जारी किया था. यह चेक 21 दिसंबर 2019 को क्लियर हो गया, जिसकी राशि 3 लाख रुपए थी, लेकिन 15 जनवरी को मुकेश के पास बैंक ऑफ बड़ौदा से इसी चेक नंबर से चेक जारी होने की जानकारी मिली, जिसमें बताया गया कि आप द्वारा जारी किए गए चेक की राशि एक लाख 98000 है.

क्लोन चेक बनाकर 1.98 लाख रुपए निकालने का प्रयास

इस पर मुकेश चौक गए उन्होंने कहा कि यह चेक तो एक साल पहले ही कट चुका है और इसका भुगतान भी हो चुका है. इसके बाद बैंक ने चेक का स्टॉप पेमेंट कर दिया. बाद में मुकेश ने बैंक जाकर पूरी पड़ताल की तो सामने आया कि 449 नंबर का चेक एक लाख 98 हजार रुपए किसी खोडल फार्मास्युटिकल्स के नाम से क्लियरिंग के लिए आया था. थाने के उपनिरीक्षक चतुराराम के अनुसार बैंक अधिकारियों ने उस अकाउंट के बारे में भी पड़ताल की, तो पता चला कि गुड़गांव के सेंट्रल बैंक में खोडल फार्मास्युटिकल्स नाम से वो अकाउंट भी कुछ समय पहले ही खोला गया था.

2 लाख रुपए से अधिक की राशि पर ली जाती है सहमति

आज-कल बैंक दो लाख रुपए से ज्यादा के चेक की क्लियरिंग से पहले खाताधारक से पुष्टि के लिए कॉल करते हैं. साथ ही आवश्यकता पड़ने पर शाखा प्रबंधक अपने स्तर पर इससे कम की राशि के चेक के लिए भी अतिरिक्त सतर्कता बरतने के लिहाज से ग्राहकों से पुष्टि करते हैं. 15 जनवरी को माहेश्वरी के खाते में क्लियरिंग के लिए आए 1.98 लाख के चेक के बारे में फोन कर पूछा गया, तब पता चला की चेक फर्जी था.

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हूबहू बनाया चेक

बैंक ऑफ बड़ौदा के नाम से जो चेक बनाया गया है, वह बिल्कुल ओरिजिनल चेक की कॉपी था, जिसे अपराध की दुनिया में क्लोनिंग कहा जाता है. इसे देखकर बैंक का कोई भी कर्मचारी या नहीं कह सकता कि एक नकली है. यह तो गनीमत रही कि बैंक द्वारा कॉल करने पर इस फर्जीवाड़े का पता चला. अन्यथा यह राशि चली जाती और एक और साइबर क्राइम हो जाता.

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