जयपुर. हर वर्ष 26 अगस्त के दिन महिला समानता दिवस मनाया जाता है. इस दिन दुनिया भर में महिलाओं की समानता के अधिकारों (Women Equality Day 2022) को लेकर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. राजस्थान में सरकार के स्तर पर महिला समानता को लेकर पांच दिवसीय कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. महिला अधिकारों पर काम करने वाले सामाजिक संगठन इस (Opinion of women social organizations) बात पर जोर देते हैं कि जिस संसद और विधानसभा से नीति नियम बनते हैं, उसी जगह पर महिलाओं को आरक्षण नहीं है, तो समानता का अधिकार कैसे मिलेगा? .
अपनी कोख से बेटी को जन्म देने का अधिकार भी नहीं हैः सामाजिक कार्यकर्ता निशा सिद्धू कहती हैं कि पुरूष प्रधान समाज में, महिलाओं के समान अधिकार की बात स्वप्न सी लगती है. महिलाएं अपने दम-खम पर हर उस क्षेत्र तक पहुंची हैं, जहां कभी पुरुषों का वर्चस्व रहा है. दूसरे शब्दों में महिलाएं अपनी प्रतिभा के बल पर ना केवल पुरुषों की बराबरी पर पहुंची, बल्कि कई क्षेत्रों में उन्हें भी पछाड़कर आगे निकली हैं.
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राजस्थान में महिलाओं के अधिकारों के लिए कानून बने हुए हैं. लेकिन उन कानून का सही इंप्लीमेंट नहीं होने से महिलाओं को उनकी समानता के अधिकार नहीं मिल रहे हैं. निशा सिद्ध कहती हैं कि राजस्थान की महिलाओं को तो अपनी कोख से बेटी को जन्म देने का अधिकार भी नहीं है. उन्होंने कहा कि राजस्थान के कई जिलों में आज भी बेटियों को जन्म लेने से पहले ही या जन्म लेने के बाद मार दिया जाता है. उन्होंने कहा कि यह सही है कि पहले की तुलना में अब कुछ सुधार हुआ है , लेकिन जिस समानता की बात हम करते हैं वह आज भी नहीं मिल रही है.
संसद और विधानसभा में कम प्रतिनिधित्वः निशा सिद्धू कहती हैं कि महिला समानता कि हम जब बात कर रहे हैं तो हमें संसद और विधानसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को भी देखना होगा कि क्या वाकई वहां पर कलरफुल है. जिस जगह पर महिलाओं के अधिकारों, उनकी सुरक्षा के लिए कानून बनते हैं, वहां पर क्या वाकई महिलाओं की पुरुषों की तुलना में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है. उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि जब तक हम संसद और विधानसभा में महिलाओं के अधिकारों को बराबरी पर नहीं लाएंगे , तब तक हम हमारे समाज से इस समानता की बात कैसे कर सकते हैं?. उन्होंने कहा कि लोकसभा और राज्यसभा के साथ विधानसभा चुनाव में भी महिलाओं के लिए आरक्षण रिजर्व होना चाहिए. जब महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व होगा तो वहां से बेहतर तरीके से नीति नियमन के निकलेंगे.
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महिलाओं के साथ महिलाएं करती हैं असमानताः दलित महिलाओं पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सुमन देवठिया कहती हैं कि आज के दिन हम महिला समानता की बात कर रहे हैं. लेकिन राजस्थान में आजादी के 75 साल बाद भी इस विषय पर चर्चा करना पड़े इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है?. उन्होंने कहा कि महिलाओं की समानता तो दूर राजस्थान में तो महिलाओं-महिलाओं में ही असमानता है. उन्होंने बड़ा दावा करते हुए कहा कि आज भी दलित महिलाओं को सामान्य वर्ग की महिलाओं के बराबरी में ना खड़ा होने का अधिकार है और ना ही खाने पीने का. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में इन महिलाओं को छुआछूत का सामना करना पड़ता है.
उन्होंने कहा कि आंकड़े बताते हैं कि किस तरह से प्रदेश में दलित महिलाओं पर अत्याचार होते हैं और किस तरह से उन्हें न्याय में भी निराशा का सामना करना पड़ता है. सुमन कहती हैं कि राजस्थान में जातिगत महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के आंकड़े कम होने की जगह लगातार बढ़ते जा रहे हैं. 2020 से 2022 तक के स्टेट क्राइम ब्यूरो के आंकड़े देखें तो वह बताते हैं कि किस तरीके से साल दर साल इन मामलों में वृद्धि हुई है.
क्या है महिला समानता दिवस?: एक समय था, जब दुनिया भर में महिलाओं को दोयम दर्जे की नागरिक माना जाता था. इसे लेकर सबसे पहले आवाज उठाई अमेरिका और न्यूजीलैंड की महिलाओं ने. 26 अगस्त 1920 में अमेरिकी संविधान में 19वें अमेंडमेंट के जरिये महिलाओं को पुरुषों के समान मतदान का अधिकार मिला. धीरे-धीरे विश्व भर की महिलाओं में यह जागरुकता आती गई, और आज दुनिया के अधिकांश देशों में 26 अगस्त को महिला समानता दिवस मनाया जाता है.