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सूचनाओं को छुपाना सूचना के अधिकार की मंशा के खिलाफ- अरुणा रॉय

12 अक्टूबर 2005 को राजस्थान में सूचना का अधिकार लागू हुआ था. जयपुर में आज इसकी 16वीं वर्षगांठ पर राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं, सूचना आयुक्तों और सरकारी अधिकारियों की मौजूदगी में एक संगोष्ठी आयोजित की गई.

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Published : Oct 12, 2021, 9:58 PM IST

Updated : Oct 12, 2021, 10:32 PM IST

सूचना के अधिकार
सूचना के अधिकार

जयपुर. राजस्थान में सूचना के अधिकार लागू हुए 16 साल पूरे हो गए. देश में राजस्थान ऐसा पहला राज्य था जिसने सबसे पहले सूचना के अधिकार को लागू किया. सूचना के अधिकार की वर्षगांठ पर मजदूर किसान शक्ति संगठन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि सूचनाओं को छुपाना और पारदर्शिता शासन का वादा करना दो अलग बातें हैं. पारदर्शिता के लिए जरूरी है कि सूचनाओं को छुपाया नहीं जाए, बल्कि समय पर उपलब्ध कराया जाए ताकि कानून की मूलभावनाओं का सम्मान हो सके.

12 अक्टूबर 2005 को राजस्थान में सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ था. इसकी वर्षगांठ पर राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं, सूचना आयुक्तों और सरकारी अधिकारियों की मौजूदगी में जयपुर में हुई संगोष्ठी में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि आज भले ही सूचना के अधिकार कानून को लागू हुए 16 साल हो गए हों, पर इसे लागू करने का संघर्ष कई सालों का है.

उन्होंने कहा कि आज इस कानून का असर नौकरशाही महसूस करती है. उन्हें इस कानून का भय है क्योंकि आरटीआई के तहत सूचनाएं देनी ही पड़ती हैं. उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार से आम नागरिक सशक्त हुआ है. सूचना के अधिकार ने आमजन को सवाल पूछने व सत्ताधारियों से जवाब मांगने की ताकत दी है.

इस मौके पर राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त डीबी गुप्ता ने कहा कि हमारा उद्देश्य है कि हम आरटीआई आवेदक को समय पर सूचना दिलवा पाएं, इसके लिए सूचना आयोग की पूरी टीम लगातार प्रयास कर रही है. करीब 1 साल पहले आयोग में 18 हजार अपीलें लंबित थीं, हमने सुनवाई की गति को तेज किया. आज करीब 8 हजार अपील लंबित है, जिनका निपटारा भी हम जल्द कर पाएंगे. आयोग लोक अदालत लगाकर सुनवाई कर रहा है. 25 सितबंर को लोक अदालत के जरिये 280 अपीलों में से 274 का निपटारा किया. सूचना के अधिकार की बेहतर क्रियान्वयन के लिए सामाजिक संस्थाओं और आरटीआई आवेदकों के साथ हर 3 माह में एक संवाद की शुरुआत की जाएगी.

RTI के बाद इस तरह खुली भ्रष्टाचार की कलई

राष्ट्रीय पर्व पर सरकारी विद्यालय में बच्चों को मिठाई वितरण में गबन का मामला तब सामने आया जब ग्राम पंचायत से बिल बॉउचर की सूचना ली गई. अवगत हुआ कि सरपंच ने फर्जी बिल लगा कर मिठाई के वजन का गलत वितरण दर्शा रखा है, इसके बाद पंचायत की सभी स्कूलों से राष्ट्रीय पर्व पर पंचायत की ओर से मिठाई वितरण की सूचना ली तो अवगत हुआ कि यहां तो मिठाई वितरण विद्यालय स्तर के अलावा नहीं हुआ है, इसके बाद उच्च अधिकारियों को शिकायत की गई. जांच में सरपंच सचिव दोषी पाए गए और रिकवरी हुई, सरपंच के गबन की राशि को राजकोष मे जमा जमा कराया गया.

पढ़ें- कोयला कंपनियों का कोई बकाया नहीं, सरकार कर रही है अग्रिम भुगतान - सीएम गहलोत

इसी तरह बीकानेर के नोखा निवासी पुखराज ने अपने गांव की एक आंगनबाड़ी केंद्र पर लाभ लेने वाले बच्चों की सूचना मांगी. सूचना से पता चला कि गांव की एक महिला ने एक वर्ष में तीन-तीन बच्चों को जन्म दिया है. वो आंगनबाड़ी पर पोषाहार भी ले रही है. ऐसी एक नहीं कई महिलाएं हैं, इसकी शिकायत की गई. जिला प्रशासन ने गड़बड़ी पकड़ी, जिसमें कार्रवाई चल रही है. इससे दूसरी आंगनबाड़ी की कार्यकर्ताओं को बड़ी सीख मिली. केवल एक गांव की ही नहीं, दूसरे गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी सही काम करने लगी हैं.

राज्य सरकार ने भी उठाए हैं सकारात्मक कदम

राज्य सरकार ने कानून की धारा 4 के क्रियान्वयन के लिए जन सूचना पोर्टल की शुरुवात की है. दो साल में ही जन सूचना पोर्टल के माध्यम से 115 विभाग की 254 सूचनाओं को आम जनता के लिए खोला गया है. राज्य सरकार के सूचना के अधिकार के ऑनलाइन पोर्टल पर में वर्तमान में 30000 से अधिक कार्यलयों में ऑनलाइन आवेदन कर नागरिक सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं.

चुनौतियां भी हैं सामने

सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने बताया कि सत्ता और समाज में बैठे निजी स्वार्थों ने इस कानून को कमज़ोर करने का लगातार प्रयास किया है. 2017 में केंद्र के BJP शासन ने इस कानून को संशोधित कर कमज़ोर किया. आज भी electoral bond और PM CARES में गोपनीयता लाते हुए केंद्रीय सरकार ने RTI को दबाया है और लोकतंत्र कमज़ोर किया है. राज्यों और आयोगों ने भी इस कानून को बहुत ढिलाई से लागू कर अपना कानूनी दायित्व नहीं निभाया है.

गोष्ठी में लिए गए प्रस्ताव

गोष्ठी में फैसला किया गया कि राजस्थान में प्रतिवर्ष 12 अक्टूबर को आरटीआई की स्थिति रिपोर्ट प्रकाशित करेंगे. यह एक सर्वेक्षण के माध्यम से शुरू होगा, जो लोगों द्वारा आरटीआई के उपयोग, पारदर्शिता के लिए सरकारी पहलों की स्थिति को देखेगा. साथ ही अधिकारी आरटीआई आवेदनों का तुरंत और प्रभावी ढंग से जवाब देते हैं, और राज्य में आरटीआई का उपयोग करने वाले नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं या नहीं, इसके अलावा, सर्वे/अध्ययन में सूचना आयोगों का मूल्यांकन होगा, जिसमें उनके लंबित मामलों, निपटारे की गुणवत्ता, वेबसाइट की पारदर्शिता, नागरिकों को आसानी से आयोग तक पहुंच शामिल है. सर्वे में नागरिक समूहों, राज्य और आयोगों द्वारा रचनात्मक पहलों को भी देखा जाएगा.

राज्य में आरटीआई उपयोगकर्ताओं के सामने आने वाले विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए 3 महीने में एक बार आरटीआई उपयोगकर्ताओं की एक राज्य स्तरीय बैठक की जाएगी. राजस्थान के सभी जिलों में आरटीआई मेलों का आयोजन किया जाएगा जिसमें आरटीआई के कार्यकर्ता का नेटवर्क और जागरूकता लाना, जिले विशेष के लोगों से संबंधित सामाजिक मुद्दों पर आरटीआई दाखिल करना शामिल होंगे. विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता वाले लोगों के सहयोग से सामाजिक क्षेत्र के कई मुद्दों पर सामाजिक अंकेक्षण आयोजित किया जाएगा. सर्वे से निकले विश्लेषण का उपयोग करते हुए सूचना आयोगों की एक वार्षिक जन सुनवाई/खुला मंच आयोजित की जाएगी.

पढ़ें- सोनिया-राहुल-प्रियंका यहां क्यों आएं ? BJP में मूर्ख लोगों को वास्विकता पता नहीं और बयानबाजी करते हैं - गहलोत

डिजिटल संवाद के माध्यम से जन सूचना पोर्टल, पारदर्शिता बोर्ड, और स्वतः प्रकटीकरण के विभिन्न उपायों को मजबूत करके हुए आरटीआई अधिनियम की धारा 4 को उसकी वास्तविक भावना में लागू करवाने के प्रयास होंगे. सूचना मांगने वालों में आपसी सहयोग का माहौल बनाने के प्रयास होंगे ताकि लोग बिना डर के आरटीआई दाखिल कर सकें. यदि सूचना मांगने वाले पर हमला होता है तो उसे विशेष सहायता प्रदान करवाई जाएगी और सामूहिक जिम्मेदारी से उस मुद्दे को उजागर करने का प्रयास किया जाएगा.

राज्य सरकार से मांग की गई है कि अपने घोषणा पत्र के अनुसार एक प्रभावी सामाजिक जवाबदेही कानून पारित करे, इसके लिए आरटीआई कार्यकर्ता जन आंदोलन करेंगे. राज्य में आरटीआई और पारदर्शिता व्यवस्था को मजबूत करने के लिए नियमित संवाद और आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए सरकार के विभिन्न विभागों और आयोगों के साथ जुड़ाव रखा जाएगा.

जयपुर. राजस्थान में सूचना के अधिकार लागू हुए 16 साल पूरे हो गए. देश में राजस्थान ऐसा पहला राज्य था जिसने सबसे पहले सूचना के अधिकार को लागू किया. सूचना के अधिकार की वर्षगांठ पर मजदूर किसान शक्ति संगठन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि सूचनाओं को छुपाना और पारदर्शिता शासन का वादा करना दो अलग बातें हैं. पारदर्शिता के लिए जरूरी है कि सूचनाओं को छुपाया नहीं जाए, बल्कि समय पर उपलब्ध कराया जाए ताकि कानून की मूलभावनाओं का सम्मान हो सके.

12 अक्टूबर 2005 को राजस्थान में सूचना का अधिकार कानून लागू हुआ था. इसकी वर्षगांठ पर राज्य के सामाजिक कार्यकर्ताओं, सूचना आयुक्तों और सरकारी अधिकारियों की मौजूदगी में जयपुर में हुई संगोष्ठी में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि आज भले ही सूचना के अधिकार कानून को लागू हुए 16 साल हो गए हों, पर इसे लागू करने का संघर्ष कई सालों का है.

उन्होंने कहा कि आज इस कानून का असर नौकरशाही महसूस करती है. उन्हें इस कानून का भय है क्योंकि आरटीआई के तहत सूचनाएं देनी ही पड़ती हैं. उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार से आम नागरिक सशक्त हुआ है. सूचना के अधिकार ने आमजन को सवाल पूछने व सत्ताधारियों से जवाब मांगने की ताकत दी है.

इस मौके पर राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त डीबी गुप्ता ने कहा कि हमारा उद्देश्य है कि हम आरटीआई आवेदक को समय पर सूचना दिलवा पाएं, इसके लिए सूचना आयोग की पूरी टीम लगातार प्रयास कर रही है. करीब 1 साल पहले आयोग में 18 हजार अपीलें लंबित थीं, हमने सुनवाई की गति को तेज किया. आज करीब 8 हजार अपील लंबित है, जिनका निपटारा भी हम जल्द कर पाएंगे. आयोग लोक अदालत लगाकर सुनवाई कर रहा है. 25 सितबंर को लोक अदालत के जरिये 280 अपीलों में से 274 का निपटारा किया. सूचना के अधिकार की बेहतर क्रियान्वयन के लिए सामाजिक संस्थाओं और आरटीआई आवेदकों के साथ हर 3 माह में एक संवाद की शुरुआत की जाएगी.

RTI के बाद इस तरह खुली भ्रष्टाचार की कलई

राष्ट्रीय पर्व पर सरकारी विद्यालय में बच्चों को मिठाई वितरण में गबन का मामला तब सामने आया जब ग्राम पंचायत से बिल बॉउचर की सूचना ली गई. अवगत हुआ कि सरपंच ने फर्जी बिल लगा कर मिठाई के वजन का गलत वितरण दर्शा रखा है, इसके बाद पंचायत की सभी स्कूलों से राष्ट्रीय पर्व पर पंचायत की ओर से मिठाई वितरण की सूचना ली तो अवगत हुआ कि यहां तो मिठाई वितरण विद्यालय स्तर के अलावा नहीं हुआ है, इसके बाद उच्च अधिकारियों को शिकायत की गई. जांच में सरपंच सचिव दोषी पाए गए और रिकवरी हुई, सरपंच के गबन की राशि को राजकोष मे जमा जमा कराया गया.

पढ़ें- कोयला कंपनियों का कोई बकाया नहीं, सरकार कर रही है अग्रिम भुगतान - सीएम गहलोत

इसी तरह बीकानेर के नोखा निवासी पुखराज ने अपने गांव की एक आंगनबाड़ी केंद्र पर लाभ लेने वाले बच्चों की सूचना मांगी. सूचना से पता चला कि गांव की एक महिला ने एक वर्ष में तीन-तीन बच्चों को जन्म दिया है. वो आंगनबाड़ी पर पोषाहार भी ले रही है. ऐसी एक नहीं कई महिलाएं हैं, इसकी शिकायत की गई. जिला प्रशासन ने गड़बड़ी पकड़ी, जिसमें कार्रवाई चल रही है. इससे दूसरी आंगनबाड़ी की कार्यकर्ताओं को बड़ी सीख मिली. केवल एक गांव की ही नहीं, दूसरे गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी सही काम करने लगी हैं.

राज्य सरकार ने भी उठाए हैं सकारात्मक कदम

राज्य सरकार ने कानून की धारा 4 के क्रियान्वयन के लिए जन सूचना पोर्टल की शुरुवात की है. दो साल में ही जन सूचना पोर्टल के माध्यम से 115 विभाग की 254 सूचनाओं को आम जनता के लिए खोला गया है. राज्य सरकार के सूचना के अधिकार के ऑनलाइन पोर्टल पर में वर्तमान में 30000 से अधिक कार्यलयों में ऑनलाइन आवेदन कर नागरिक सूचनाएं प्राप्त कर सकते हैं.

चुनौतियां भी हैं सामने

सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने बताया कि सत्ता और समाज में बैठे निजी स्वार्थों ने इस कानून को कमज़ोर करने का लगातार प्रयास किया है. 2017 में केंद्र के BJP शासन ने इस कानून को संशोधित कर कमज़ोर किया. आज भी electoral bond और PM CARES में गोपनीयता लाते हुए केंद्रीय सरकार ने RTI को दबाया है और लोकतंत्र कमज़ोर किया है. राज्यों और आयोगों ने भी इस कानून को बहुत ढिलाई से लागू कर अपना कानूनी दायित्व नहीं निभाया है.

गोष्ठी में लिए गए प्रस्ताव

गोष्ठी में फैसला किया गया कि राजस्थान में प्रतिवर्ष 12 अक्टूबर को आरटीआई की स्थिति रिपोर्ट प्रकाशित करेंगे. यह एक सर्वेक्षण के माध्यम से शुरू होगा, जो लोगों द्वारा आरटीआई के उपयोग, पारदर्शिता के लिए सरकारी पहलों की स्थिति को देखेगा. साथ ही अधिकारी आरटीआई आवेदनों का तुरंत और प्रभावी ढंग से जवाब देते हैं, और राज्य में आरटीआई का उपयोग करने वाले नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करते हैं या नहीं, इसके अलावा, सर्वे/अध्ययन में सूचना आयोगों का मूल्यांकन होगा, जिसमें उनके लंबित मामलों, निपटारे की गुणवत्ता, वेबसाइट की पारदर्शिता, नागरिकों को आसानी से आयोग तक पहुंच शामिल है. सर्वे में नागरिक समूहों, राज्य और आयोगों द्वारा रचनात्मक पहलों को भी देखा जाएगा.

राज्य में आरटीआई उपयोगकर्ताओं के सामने आने वाले विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने के लिए 3 महीने में एक बार आरटीआई उपयोगकर्ताओं की एक राज्य स्तरीय बैठक की जाएगी. राजस्थान के सभी जिलों में आरटीआई मेलों का आयोजन किया जाएगा जिसमें आरटीआई के कार्यकर्ता का नेटवर्क और जागरूकता लाना, जिले विशेष के लोगों से संबंधित सामाजिक मुद्दों पर आरटीआई दाखिल करना शामिल होंगे. विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता वाले लोगों के सहयोग से सामाजिक क्षेत्र के कई मुद्दों पर सामाजिक अंकेक्षण आयोजित किया जाएगा. सर्वे से निकले विश्लेषण का उपयोग करते हुए सूचना आयोगों की एक वार्षिक जन सुनवाई/खुला मंच आयोजित की जाएगी.

पढ़ें- सोनिया-राहुल-प्रियंका यहां क्यों आएं ? BJP में मूर्ख लोगों को वास्विकता पता नहीं और बयानबाजी करते हैं - गहलोत

डिजिटल संवाद के माध्यम से जन सूचना पोर्टल, पारदर्शिता बोर्ड, और स्वतः प्रकटीकरण के विभिन्न उपायों को मजबूत करके हुए आरटीआई अधिनियम की धारा 4 को उसकी वास्तविक भावना में लागू करवाने के प्रयास होंगे. सूचना मांगने वालों में आपसी सहयोग का माहौल बनाने के प्रयास होंगे ताकि लोग बिना डर के आरटीआई दाखिल कर सकें. यदि सूचना मांगने वाले पर हमला होता है तो उसे विशेष सहायता प्रदान करवाई जाएगी और सामूहिक जिम्मेदारी से उस मुद्दे को उजागर करने का प्रयास किया जाएगा.

राज्य सरकार से मांग की गई है कि अपने घोषणा पत्र के अनुसार एक प्रभावी सामाजिक जवाबदेही कानून पारित करे, इसके लिए आरटीआई कार्यकर्ता जन आंदोलन करेंगे. राज्य में आरटीआई और पारदर्शिता व्यवस्था को मजबूत करने के लिए नियमित संवाद और आपसी सहयोग बढ़ाने के लिए सरकार के विभिन्न विभागों और आयोगों के साथ जुड़ाव रखा जाएगा.

Last Updated : Oct 12, 2021, 10:32 PM IST
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