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राजस्थान सौर ऊर्जा में सिरमौर, फिर भी बिजली संकट...जानिए क्या है बड़ी वजह

गत दिनों ही राजस्थान कर्नाटक को पछाड़कर देशभर में सौर ऊर्जा में नंबर1 बन गया था. ऐसे में उम्मीद बनी थी कि बिजली संकट से निजात मिल जाएगी. लेकिन बिजली संकट का समाधान नहीं हुआ.

जयपुर न्यूज , jaipur news
सौर ऊर्जा संयत्र
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Published : Oct 8, 2021, 5:46 PM IST

Updated : Oct 8, 2021, 8:18 PM IST

जयपुर. कर्नाटक को पछाड़कर देशभर में सौर ऊर्जा में नंबर1 बने राजस्थान में बिजली संकट गहराया हुआ है. शहरी और ग्रामीण इलाकों में 3 से 4 घंटे बिजली कटौती करनी पड़ रही है. राज्य सरकार का कहना है कि केंद्र से पर्याप्त मात्रा में कोयला नहीं मिलने के कारण बिजली संकट पैदा हो गया है. बिजली संकट को लेकर राज्य में सियासत का पारा चढ़ा हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने राज्य में बिजली संकट के लिए गहलोत सरकार के कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है. ऊर्जा के विभिन्न माध्यमों में सौर ऊर्जा उत्पादन सबसे सस्ता होता है लेकिन राजस्थान को मिली इस उपलब्धि के बाद भी प्रदेश में बार-बार बिजली का संकट मंडराता रहता है. बिजली संकट पर राजनीति तो खूब होती है लेकिन इसके समाधान के सार्थक प्रयास नहीं हुए.

पढ़ें- विधानसभा उपचुनाव-2021 में एम-3 ईवीएम मशीनों का होगा इस्तेमाल

राजस्थान 7 हजार 738 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता उत्पन्न करके देश में प्रथम स्थान पर है. इससे लगने लगा कि राजस्थान में बिजली की कोई कमी नहीं रहेगी. लेकिन बिजली उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली नहीं मिल रही है. निर्बाध बिजली कीआपूर्ति भी नहीं हो पा रही है.

इस वजह से बिजली संकट के हालात बने

सरकारी स्तर पर सौर ऊर्जा उत्पादन की इकाइयां कम और बाहरी निवेशकों को प्रोत्साहन अधिक है. जिन निवेशकों को राजस्थान में सौर ऊर्जा के निवेश के लिए छूट दी गई उनसे सस्ती बिजली लेने की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए. कोयले से बनने वाली बिजली काफी महंगी होती है और इस पर लागत भी ज्यादा आती है. बावजूद इसके राजस्थान में अधिकतर बिजली उत्पादन की इकाइयां थर्मल पर ही आधारित है. कोयले की कमी के कारण बार-बार उत्पादन का काम प्रभावित होता है और केंद्र से हस्तक्षेप की गुहार लगाना पड़ती है. लगातार बिजली संकट बनने पर 15 से 20 रुपए प्रति यूनिट तक बिजली की खरीद की जा रही है. जिसका सीधा भार आम उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है.

कई सालों से महंगी बिजली खरीद के बावजूद प्रदेश में सौर ऊर्जा पर आधारित सरकारी क्षेत्र की बड़ी इकाइयां नहीं लगाई गई जिसका खामियाजा जनता भुगत रही है. बिजली कंपनियों के कुप्रबंधन के चलते डिस्कॉम का घाटा करीब 90 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है. घाटे की पूर्ती के लिए लगातार ब्याज पर ऋण लेना पड़ता है. जिसके चलते घाटा और बढ़ता जाता रहा है.

पढ़ें- उपचुनाव का रण: अब रूठों को मनाने की तैयारी...भाजपा के इन दिग्गजों को सौंपी गई जिम्मेदारी

बंद पड़ी कोयला आधारित इकाइयां

वर्तमान में कोयले की कमी के चलते राजस्थान राज्य बिजली उत्पादन निगम की 8 से अधिक इकाइयों में बिजली का उत्पादन पूरी तरह बंद है. कुछ इकाइयों में उत्पादन का कार्य प्रभावित हो रहा है.
सूरतगढ़ थर्मल में 250 यूनिट (प्रत्येक) क्षमता की 5 इकाइयों में उत्पादन बंद है. सूरतगढ़ की ही 660 मेगावाट की एक अन्य इकाई भी कोयले की कमी के चलते बंद है. इसी तरह छबड़ा की 250 मेगावाट (प्रत्येक) की इकाइयों में भी बिजली उत्पादन बंद है.

महंगी दरों पर बिजली खरीद

प्रदेश सरकार और बिजली कंपनियों ने केंद्र से कोयले की आपूर्ति समय पर नहीं होने का हवाला देकर अपनी समस्या तो जाहिर कर दी. जनता को राहत देने के लिए महंगी दरों पर बिजली की खरीद करने की बात भी कही जा रही है. मतलब साफ है की बिजली के संकट के दौरान 15 से 20 रुपए प्रति यूनिट तक की महंगी बिजली की खरीद राजस्थान करेगा. जिसका सीधा भार प्रदेश के आम उपभोक्ताओं पर पड़ना तय है.

जयपुर. कर्नाटक को पछाड़कर देशभर में सौर ऊर्जा में नंबर1 बने राजस्थान में बिजली संकट गहराया हुआ है. शहरी और ग्रामीण इलाकों में 3 से 4 घंटे बिजली कटौती करनी पड़ रही है. राज्य सरकार का कहना है कि केंद्र से पर्याप्त मात्रा में कोयला नहीं मिलने के कारण बिजली संकट पैदा हो गया है. बिजली संकट को लेकर राज्य में सियासत का पारा चढ़ा हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने राज्य में बिजली संकट के लिए गहलोत सरकार के कुप्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है. ऊर्जा के विभिन्न माध्यमों में सौर ऊर्जा उत्पादन सबसे सस्ता होता है लेकिन राजस्थान को मिली इस उपलब्धि के बाद भी प्रदेश में बार-बार बिजली का संकट मंडराता रहता है. बिजली संकट पर राजनीति तो खूब होती है लेकिन इसके समाधान के सार्थक प्रयास नहीं हुए.

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राजस्थान 7 हजार 738 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता उत्पन्न करके देश में प्रथम स्थान पर है. इससे लगने लगा कि राजस्थान में बिजली की कोई कमी नहीं रहेगी. लेकिन बिजली उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली नहीं मिल रही है. निर्बाध बिजली कीआपूर्ति भी नहीं हो पा रही है.

इस वजह से बिजली संकट के हालात बने

सरकारी स्तर पर सौर ऊर्जा उत्पादन की इकाइयां कम और बाहरी निवेशकों को प्रोत्साहन अधिक है. जिन निवेशकों को राजस्थान में सौर ऊर्जा के निवेश के लिए छूट दी गई उनसे सस्ती बिजली लेने की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए. कोयले से बनने वाली बिजली काफी महंगी होती है और इस पर लागत भी ज्यादा आती है. बावजूद इसके राजस्थान में अधिकतर बिजली उत्पादन की इकाइयां थर्मल पर ही आधारित है. कोयले की कमी के कारण बार-बार उत्पादन का काम प्रभावित होता है और केंद्र से हस्तक्षेप की गुहार लगाना पड़ती है. लगातार बिजली संकट बनने पर 15 से 20 रुपए प्रति यूनिट तक बिजली की खरीद की जा रही है. जिसका सीधा भार आम उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है.

कई सालों से महंगी बिजली खरीद के बावजूद प्रदेश में सौर ऊर्जा पर आधारित सरकारी क्षेत्र की बड़ी इकाइयां नहीं लगाई गई जिसका खामियाजा जनता भुगत रही है. बिजली कंपनियों के कुप्रबंधन के चलते डिस्कॉम का घाटा करीब 90 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है. घाटे की पूर्ती के लिए लगातार ब्याज पर ऋण लेना पड़ता है. जिसके चलते घाटा और बढ़ता जाता रहा है.

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बंद पड़ी कोयला आधारित इकाइयां

वर्तमान में कोयले की कमी के चलते राजस्थान राज्य बिजली उत्पादन निगम की 8 से अधिक इकाइयों में बिजली का उत्पादन पूरी तरह बंद है. कुछ इकाइयों में उत्पादन का कार्य प्रभावित हो रहा है.
सूरतगढ़ थर्मल में 250 यूनिट (प्रत्येक) क्षमता की 5 इकाइयों में उत्पादन बंद है. सूरतगढ़ की ही 660 मेगावाट की एक अन्य इकाई भी कोयले की कमी के चलते बंद है. इसी तरह छबड़ा की 250 मेगावाट (प्रत्येक) की इकाइयों में भी बिजली उत्पादन बंद है.

महंगी दरों पर बिजली खरीद

प्रदेश सरकार और बिजली कंपनियों ने केंद्र से कोयले की आपूर्ति समय पर नहीं होने का हवाला देकर अपनी समस्या तो जाहिर कर दी. जनता को राहत देने के लिए महंगी दरों पर बिजली की खरीद करने की बात भी कही जा रही है. मतलब साफ है की बिजली के संकट के दौरान 15 से 20 रुपए प्रति यूनिट तक की महंगी बिजली की खरीद राजस्थान करेगा. जिसका सीधा भार प्रदेश के आम उपभोक्ताओं पर पड़ना तय है.

Last Updated : Oct 8, 2021, 8:18 PM IST
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