जयपुर. राजनीति में समय एक समान नहीं रहता. जिनकी कभी प्रदेश भाजपा की राजनीति में तूती बोला करती थी, अब उनमें से अधिकतर नेता विरान में कहीं गुम हो गए हैं. हम बात कर रहे हैं पिछली वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रहे उन नेताओं की जो आज पार्टी संगठन से जुड़ी गतिविधियों से लगभग गायब हैं. हालांकि, एक उजला पक्ष यह भी है कि इस बार संगठनात्मक रूप से कई नए चेहरों मौका दिया गया है, जिससे आम कार्यकर्ता खुश है.
बता दें, पिछली वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में ऐसे कई नेता थे, जिनका सत्ता और संगठन में पूरा दखल था. लेकिन समय के साथ उनमें से अधिकतर सियासी मैदान से गायब से हो गए हैं. इसके कई कारण हैं. पहला ये है कि कुछ ने तो प्रदेश स्तरीय राजनीतिक गतिविधियों से खुद ही दूरी बना ली है, तो कुछ नेता काम और जिम्मेदारी चाहते तो हैं, लेकिन प्रदेश संगठन में उन्हें इसके लिए कोई दायित्व नहीं मिल पा रहा है.
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आलम यह भी है कि पिछले दिनों पंचायत राज चुनाव और निकाय चुनाव के लिए संगठनात्मक रूप से अलग-अलग नेता और कार्यकर्ताओं को जो जिम्मेदारी दी गई थी, उस सूची से भी इनका नाम गायब था. अब जब प्रदेश में 90 नगर निकायों में चुनाव होने हैं, उसमें भी बतौर प्रभारी या अन्य दायित्वों की सूची से इन नेताओं को अलग रखा गया है.
इन नेताओं की भाजपा संघठन में चहलकदमी हुई कम
पिछली सरकार में परिवहन और पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे यूनुस खान, चिकित्सा मंत्री रहे कालीचरण सराफ, कृषि व पशुपालन मंत्री रहे प्रभु लाल सैनी, ऊर्जा मंत्री रहे पुष्पेंद्र सिंह, खेल मंत्री रहे गजेंद्र सिंह खींवसर, श्रम मंत्री जसवंत सिंह यादव, खाद्य मंत्री बाबूलाल वर्मा, राजस्व मंत्री अमराराम चौधरी, सहकारिता मंत्री अजय सिंह किलक के साथ ही मंत्री सुरेंद्र पाल टीटी और कमसा मेघवाल के नाम प्रमुख हैं. हालांकि, ये राजनेता अपने क्षेत्र में खुद के बलबूते राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहते हैं, लेकिन प्रदेश संगठन से जुड़े कामकाज में इनकी चहलकदमी नहीं के बराबर है.
इन पूर्व मंत्रियों के अनुभव का लिया जा रहा पूरा लाभ
ऐसा नहीं है सभी पूर्व मंत्रियों के अनुभव का लाभ प्रदेश संगठन को ना मिल रहा हो. मौजूदा समय में महिला व बाल विकास मंत्री रहीं भाजपा की विधायक अनिता भदेल को प्रदेश प्रवक्ता बनाकर उनके अनुभव का लाभ लिया जा रहा है. वहीं, पूर्व संसदीय सचिव रहे जितेंद्र गोठवाल को प्रदेश मंत्री और पूर्व मंत्री मदन दिलावर और सुशील कटारा को महामंत्री का दायित्व देकर उनके अनुभव का लाभ पार्टी ले रही है.
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इसके साथ ही पूर्व मंत्री रहे डॉ. अरुण चतुर्वेदी, वासुदेव देवनानी, गुलाबचंद कटारिया और राजेंद्र राठौड़ प्रदेश संगठन में भले ही संगठनात्मक रूप से किसी पद पर ना हों, लेकिन विभिन्न संगठनात्मक अभियान और होने वाले चुनाव में उन्हें पार्टी की ओर से कोई ना कोई दायित्व जरूर दिया जाता है और संगठन के कामकाज में भी उनकी सक्रियता देखते ही बनती है. हाल ही में पूर्व यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी को भी निकाय चुनाव में एक निकाय में प्रभारी बनाकर उनके अनुभव का लाभ लिया जा रहा है.
वसुंधरा खेमे से हैं अधिकतर पूर्व मंत्री
दरअसल, पिछली वसुंधरा सरकार के कार्यकाल में जो मंत्री थे वह अधिकतर आज भी वसुंधरा खेमे की ही माने जाते हैं और जिन पूर्व मंत्रियों की संगठनात्मक गतिविधियों में चहल कदमी कम है या फिर कहें उन्हें कोई दायित्व ना मिल पाया हो उनमें से भी अधिकतर वसुंधरा राजे समर्थक ही हैं.
नए चेहरों को संगठन में मिला मौका
राजनीति में नए को मौका देना और पुरानों को साथ में लेकर चलना पार्टी की रीति नीति में ही शामिल है. इस बार भी यही किया गया, लेकिन आम कार्यकर्ता इस बार बेहद खुश है, इसलिए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया और संगठन महामंत्री चंद्रशेखर ने इस बार संगठन में नए और ऊर्जावान कार्यकर्ताओं को मौका देने का बखूबी काम किया. साथ ही उन नेताओं को भी आगे लाने का प्रयास किया जो पिछले कई साल से अनुभवी होने के बावजूद सियासी ठंड में थे. आज चाहे प्रदेश भाजपा टीम हो या फिर हाल ही में हुए चुनाव में दी गई संगठनात्मक रूप से जिम्मेदारियां, इनमें नए चेहरों के साथ ही पुराने अनुभवी वे लोग, जो पिछले कई सालों से सियासी ठंड में थे, उनके अनुभव का फायदा लिया जा रहा है, जो प्रदेश भाजपा के लिए एक उजला पक्ष माना जा सकता है.